धर्म

हज़रत मुहम्मद (स०) की दुआ, तायफ़ के हादसे के बाद…By-Farooque Rasheed Farooquee

Farooque Rasheed Farooquee
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. हज़रत मुहम्मद (स०) की दुआ तायफ़ के हादसे के बाद!

“ऐ अल्लाह! मैं तुझ ही से अपनी कमज़ोरी, बेबसी और लोगों के नज़दीक अपनी बे-क़द्री की शिकायत करता हूॅं। ऐ सबसे बड़े रहम करने वाले! तू कमज़ोरों का रब है और तू ही मेरा भी रब है। तू मुझे किन लोगों के हवाले कर रहा है? क्या किसी बेगाने के हवाले जो मेरे साथ सख़्ती से पेश आए? या किसी दुश्मन के हवाले जिसे तूने मेरे मामले का मालिक बना दिया है? अगर मुझ पर तेरा ग़ज़ब नहीं है तो मुझे कोई परवाह नहीं। लेकिन तेरी आफ़ियत मेरे लिए ज़्यादा फैलाव रखती है। मैं तेरे उस नूर की पनाह चाहता हूॅं जिससे अंधेरे रोशन हो गए और जिससे दुनिया और आख़िरत के मामले ठीक हो गए कि तू मुझ पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करे या तेरा ग़ुस्सा मुझ पर नाज़िल हो। मैं तेरी ही रंज़ामंदी चाहता हूॅं यहाॅं तक कि तू ख़ुश हो जाए और तेरे बग़ैर कोई ज़ोर और ताक़त नहीं।”
नोट : — हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम की ज़िन्दगी में मौत से पहले तायफ़ का दिन सबसे ज़्यादा तकलीफ़ का दिन था। उस दिन तायफ़ के लोगों ने दीन की दावत के बदले में उन पर पत्थर फेंके थे। इस हादसे के बाद ग़मज़दा होकर उन्होंने अल्लाह से यह दुआ की। मौत का दिन हमारे पैग़म्बर सललल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम की ज़िन्दगी का सबसे ज़्यादा तकलीफ़-देह दिन था। उन पर करोंड़ों दुरूदो-सलाम! यह दुआ ‘ख़ुत्बात-ज-मोहम्मदी’ और एक मशहूर किताब ‘तायफ़ का मुबल्लिग़’ से ली गई है।

حضرت محمد (ص) کی دعا طائف کے حادثے کے بعد

“اے اللہ! میں تجھ ہی سے اپنی کمزوری و بے بسی اور لوگوں کے نزدیک اپنی بے قدری کا شکوہ کرتا ہوں۔ یا الرحمر راحمین! تو کمزوروں کا رب ہے۔اور تو ہی میرا بھی رب ہی۔ تو مجھے کس کے حوالے کر رہا ہے؟ کیا کسی بیگانے کے جو میرے ساتھ تندی سے پیش آئے؟ یا کسی دشمن کے جسے تو نے میرے معاملے کا مالک بنا دیا ہے۔؟ اگر مجھ پر تیرا غضب نہیں ہے تو مجھے کوئی پروا نہیں۔ لیکن تیری عافیت میرے لئے زیادہ کشادہ ہے۔ میں تیرے اس نور کی پناہ چاہتا ہوں جس سے تاریکیاں روشن ہو گئیں اور جس پر دنیا اور آخرت کے معاملات درست ہوئے کہ تو مجھ پر اپنا غضب نازل کرے یا تیرا عتاب مجھ پر وارد ہو۔ تیری ہی رضا مطلوب ہے۔ یہاں تک کہ تو خوش ہو جائے اور تیرے بغیر کوئی طاقت نہیں۔”
نوث ؛ — حضرت محمد صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی زندگی میں موت سے پہلے طائف کا دن سب سے زیادہ تکلیف دہ دن تھا۔ اس دن طائف کے لوگوں نے دین کی دعوت کے بدلے میں ہمارے نبی صلی اللہ علیہ وسلم پر پتھر پھینکے تھے۔ اس حادثے سے غمزدہ ہو کر انہوں نے یہ دعا کی۔ موت کا دن ہمارے نبی (ص) کی زندگی کا سب سے زیادہ تکلیف دہ دن تھا۔ ان پر کروڑوں درود و سلام! یہ دعا ‘خطبات محمدی’ اور ایک مشہور کتاب ‘طائف کا مبلغ’ سے ماخوذ ہے