धर्म

#सफ़ा_पहाड़ी पर खुली दावत : #SiratunNabiSeries Part-6

मोहम्मद सलीम
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#सफा_पहाड़ी पर खुली #दावत
#SiratunNabiSeries Post-6
कुछ दिनों के बाद हुजूर सल्ल० सफा पहाड़ी पर चढ़ गये और ऊंची आवाज से एक-एक कबीले का नाम ले कर पुकारना शुरू किया।
हुजूर सल्ल० की आवाज सुनते ही तमाम कबीलों के सरदार, रईस, अमीर-गरीब जमा हो गये।
अरब में तरीक़ा था कि जब किसी को कुछ कहना होता, तो किसी ऊंची जगह पर चढ़ कर लोगों को बुलाता। जब सब आ जाते, तो जो कुछ कहना होता, कह देता।
हुजूर सल्ल० ने भी सफ़ा पहाड़ी पर चढ़कर मक्का वालों को बुलाया। जब करीब-करीब सब लोग आ गये तो आप सल्ल० ने पूछा, लोगो! तुम मुझे क्या समझते हो?
हर तरफ़ से आवाजें आयीं, आप अमीन हैं, कभी आप ने खियानत नहीं की, आप सादिक हैं, कभी आप झूठ नहीं बोले।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, अगर मैं तुहें यह खबर दूं कि सुबह को या शाम को दुश्मन का हमला होने वाला है तो क्या तुम मुझको सच्चा जानोगे?
सब ने एक जुबान होकर कहा, बेशक सच्चा जानेंगे, क्योंकि हमने आप को हमेशा बात का सच्चा पाया है।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, अच्छा सुनो ! अजाबे इलाही नजदीक आ गया है। तुम खुदा पर ईमान लाओ, बुतों की पूजा-छोड़ दो, ताकि अजाबे इलाही से बच जाओ।
यह सुनते ही पूरे मज्मे में शोर मच गया। अपने माबूदों के खिलाफ़ सुनते ही कुफ्फ़ार झुंझला उठे, बिगड़ गये। अबू लहब हंस पड़ा। उस ने कहा, तुझ पर हलाकत हो (नौज़बिल्लाह) । क्या तुमने इसीलिए जमा किया है ?
लोग इतने बिगड़ गये कि आप सल्ल० पर हमले का इरादा कर लिया, यह अलग बात है कि हमला करने की हिम्मत न पड़ी।
हिम्मत न पड़ने की वजह यह थी कि हुजूर सल्ल० बनु हाशिम खानदान से थे, जो कुरैश का सब से मोहतरम कबीला माना जाता था और उस के किसी आदमी पर हमला करना आसान न था। इस लिए सब तैश व ताब खा कर रह गये।