इतिहास

*स्वतंत्रता सेनानी – मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली*

Ataulla Pathan
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7 जुलै यौमे पैदायिश
*स्वतंत्रता सेनानी – मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली* –आप के इल्म की सलाहीयत से आपको लोग मौलाना कहने लगे
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अब्दुल हफीज़ मुहम्मद बरकतुल्लाह भोपाली साहब एक ऐसे क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी थे, जिसने भारत से बाहर रहकर विदेशो में भारतीयों के बीच अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध बगावत की चिंगारी भरी और स्वतंत्रता प्राप्ति के अनेक प्रयत्न किए।

बरकतउल्ला भोपाली का जन्म 7 जुलाई 1854 ई• को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ था। उन्होंने भोपाल के सुलेमानिया स्कूल से हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी की माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा के दौरान ही उन्हें उच्च मौलवियों द्वारा इस्लामी शिक्षा का अध्ययन करवाया गया। इस्लाम का अच्छा ज्ञान प्राप्त हो जाने पर तभी से उन्हें मौलाना कहा जाने लगा। शिक्षा खत्म करने के बाद वह उसी स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गये। इसी दौरान मां बाप का निधन हो गया। अकेली बहन का विवाह हो चुका था। अब बरकतुल्लाह एक दम अकेले हो गये थे।

1883 में उन्होंने भोपाल छोड़ दिया और मुम्बई चलें गये। मुंबई में उन्होंने ट्यूशन पढ़ाई और अपनी भी पढ़ाई भी जारी रखा। मुंबई में उन्होंने 4 साल में अंग्रेजी की उच्च शिक्षा हासिल करके 1887 में आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान वह भारतीय क्रांतिकारियों से मिले और अंग्रेजों के खिलाफ भारत की आज़ादी की योजना बनाई।

1903 में वह अमेरिका गए और वहां पर गदर पार्टी के क्रान्तिकारियों से मुलाकात कर गदर पार्टी में शामिल हो गए। 1909 में वह जापान गये। वहां पर इन्होंने प्रोफेसर के रूप में नौकरी करली। प्रोफेसर के रूप में कार्य करते उन्होंने “इस्लामी बधुंता” पत्रिका की शुरुआत की। 1912 में पत्रिका पर रोक लगा दी गई और इसी बीच वह फिर अमेरिका गए और गदर पार्टी के उपाध्यक्ष बनाए गए।

1914 में वहां जर्मनी गए और वहां पर भारतीय साथियों के साथ ” स्वतंत्रता परिषद ” की स्थापना की। फिर वह जर्मनी से तुर्की गये। वहां पर उन्होंने तुर्की के राष्ट्रपति अनवर पाशा से मुलाकात कर भारत की अर्ज़ी सरकार की स्थापना के लिए समर्थन हासिल किया। 2 अक्टूबर 1915 को उन्होंने अफगानिस्तान मे मौलाना उबैदुल्ला सिंधी, महाराजा महेंद्र सिंह प्रताप के साथ मिलकर प्रवास में भारत की पहली अर्ज़ी सरकार का एलान किया। अर्ज़ी सरकार में राजा महेन्द्र सिंह राष्ट्रपति, बरकतुल्लाह प्रधानमंत्री, मौलाना उबैदुल्ला सिंधी गृहमंत्री और चंपारन पिल्लई विदेश मंत्री बने।

तुर्की और जर्मनी ने प्रवास में भारत सरकार को मान्यता दी। इससे चिंतित अंग्रेजों ने अफगान सरकार और बरकतुल्लाह को आश्रय देने से इंकार कर दिया बरकतुल्लाह मदद के लिए रूस गये। वहां पर रूसी नेता लेनिन से मिले। लेनिन से सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने पर वह फिर जर्मनी चले गए।

जर्मनी में वह सामाचार पत्रो के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने लगे। 1927 में उन्होंने बेलिज्यम में आयोजित ” इम्पीरियल सम्मेलन ” में साम्राज्यवादियो के खिलाफ शाक्तीशाली अभूतपूर्व भाषण दिया।

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20 सितम्बर 1927 बरोज़ मंगल की रात मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली की आख़री रात थी, उस समय वोह अपने पुरे होश ओ हवास मे थे, और उस वक़्त अपने कुछ साथियों के सामने जो उस समय उनके बिस्तर के पास मौजुद थे से कुछ बात कही जो कुछ इस तरह थे :- “तमाम ज़िन्दगी मै पुरी ईमानदारी के साथ अपने वतन की आज़ादी के लिए जद्दोजेहद करता रहा, ये मेरी ख़ुशक़िसमती थी के ये मेरी नाचीज़ ज़िन्दगी मेरे प्यारे वतन के काम आई. आज इस ज़िन्दगी से रुख़सत होते हुए जहां मुझे ये अफ़सोस है के मेरी ज़िन्दगी मे मेरी कोशिश कामयाब नही हो सकी वहीं मुझे इस बात का भी इतमिनान है के मेरे बाद मेरे मुल्क को आज़ाद करने के लिए लाखो आदमी आज आगे बढ़ आए हैं, जो सच्चे हैं, बहादुर हैं और दाबाज़ हैं.. मै इतमिनान के साथ अपने प्यारे वतन की क़िसमत उनके हांथो मे सौंप कर जा रहा हुं”…

इसके बाद मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली का इंतक़ाल हो चुका था, हिन्दुस्तान का चमकता हुआ सितारा अपने वतन से दुर अमेरिका में डुब चुका था। ‘इन्ना लिल्लाही वइन्ना इलैहे राजेऊन’।

आज मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली की यौम ए वफ़ात है, सवाल फिर वही के अमेरिका से मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के क़बर की मिट्टी भारत कब वापस आएगी ?

ध्यान रहे आज तक आज़ाद भारत का कोई भी प्राधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के क़बर पर हाज़री देने नही गया, जबके वो 1915 के आरज़ी हुकुमत ए हिन्द मे प्राधानमंत्री थे और उनकी ख़्वाहिश थी के जब उनका मुल्क आज़ाद हो जाए तो उन्हे वापस भोपाल में दफ़न कर दिया जाय।

जैसे ही मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के इंतक़ाल की ख़बर हिन्दुस्तान एसोसिएशन ऑफ़ सेंट्रल यौरप के दफ़्तर बर्लिन मे पहुंची फ़ौरन एक ताज़ियाती जलसा किया गया, चुंके एसोसिएशन मे काम करने वाले अधिकतर लोग मौलाना के साथी थे, इस जलसे को ख़िताब करने वालो में दुनिया के छ: मुल्क के नुमाईंदे भी मौजुद थ। हिन्दुस्तानयों के इलावा मौलाना को ख़िराज ए अक़ीदत पेश करने वालों मे जर्मन, रुस, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और तुर्की के नुमाईंदों मौजूद थे।

डॉ मंगल मुर्ती लिखते हैं :- *”छ: मुल्क के नुमाईंदो ने इस जलसे मे हिस्सा लिया और सभी ने मौलाना मरहुम को ईसार ए मुजस्सम व शहीद ए इंक़लाब कह कर ख़िराज ए अक़ीदत पेश किया और आज़ादी के नाम पर हिन्दुस्तान के इस बहादुर सपूत की बेहद तारीफ़ ओ तौसीफ़ की.”*

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संदर्भ Heritage times
Md umar ashraf

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संकलन *अताउल्लाखा रफिक खा पठाण सर टूनकी,संग्रामपूर बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726