इतिहास

स्वतंत्रता सेनानी निशातुन्निसा बेगम *बेगम हसरत मोहानी*

Ataulla Pathan
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18 एप्रिल यौमे वफात
स्वतंत्रता सेनानी निशातुन्निसा बेगम (बेगम हसरत मोहानी )

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बेगम हसरत मोहानी की कहानी भी उन बहुत-सी भूली बिसरी दास्तानों में शुमार की जा सकती है, जिनके साथ आज़ाद हिन्दुस्तान की तवारीख़ ने मुनासिब इंसाफ नहीं किया। बेगम हसरत का शुमार उन औरतौं में किया जाता है,जिन्होंने बीसरवीं सदी में कौमी तहरीके आज़ादी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।आप उन औरतों में सेथीं,जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी मुल्क की ख़िदमात में लगा दी।

चकबस्त नेउनकी कौमी ख़िदमात को सराहते हुए सुबहे उम्मीद में कौम के नौजवानों को मश्वरा दिया था कि बेगम हसरत की हैसियत आम जलसों में सियासी मर्दानगी का राग गाने के लिए ही नहीं, बल्कि कुर्बानी का सबकृ हासिल करने के लिए भी है। निशातुन्निसा (बेगम हसरत मोहानी) की पैदाइश सन् 1885 में मोहान जिला उन्नाव के एक इज़्जतदार घराने में हुई थी। आपके वालिद सैय्यद शबीब हसन मोहानी रियासते हैदराबाद के हाईकोर्ट में वकील थे। निशातुन्निसा बेगम उस ज्माने के लिहाज से पढ़ाई लिखाई से महरूम नहीं थीं और उन्हें मज़हबी तालीम के साथ-साथ उर्दू, अरबी, फारसी जुबानों
की माकूल तालीम दी गयी थी।

सन् 1901 में जब आप हसरत मोहानी की जिंदगी में दाखिल हुई तब आप सियासी ज़िन्दगी से अंजान न थीं। देहाती माहौल की पली इस लड़की का हौसला हर तरह से हसरत मोहानी के लिए माकूल था। माली एतबार से कम होने के बावजूद उनको कभी किसी किस्म की शिकायत नहीं थी। हर कदम पर आप मौलाना साहब के साथ खड़ी रहती थीं, इसलिए हसरत मोहानी को उन पर फख्र था। इस तरह जंगे आजादी में उनकी कुर्बानी और उनकी सियासी मालूमात हसरत मोहानी की जिंदगी में बड़ी अहम थी।

जब हसरत मोहानी कैद किये गये तो उस वक्त बेगम हसरत जंगे आजादी में कुद पड़ीं और उन्होंने यह साबित कर दिया कि शौहर के चन्द सालों का साथ और देहाती माहौल में पली बढ़ी हुई लड़की की मालूमात कितनी बेदार और पुख्ता थी! इस तरह आप अपनी मंज़िल की तरफ़ आगे बढ़ रही थीं ।

13 अप्रैल सन् 1916 को हसरत मोहानी को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया,मगर यह गिरफ़्तारी बेगम हसरत के लिए मील का पत्थर साबित हुई और उन्होंने घर की चहारदीवारी से निकलकर हसरत के मुकुदमे की पैरवी अपने ज़िम्मे ली और इस काम को बड़ी हिम्मत व दिलेरी से अंजाम दिया। मुक़दमे की पैरवी के दौरान एक अंग्रेज़ अफ़्सर ने डराने की कोशिश की तो आप उससे डरने के बजाय लड़ गयीं और कहा कि तुम मुझे गिरफ्तार कर सकते हो लेकिन रोक नहीं सकते।

हसरत मोहानी अभी कैद में ही थे कि बेगम हसरत ने वज़ीरे-हिन्द से मुलाकात करने वाले हिन्दुस्तानी ख़्वातीन के एक डेलीगेशन में शिरकत की। इस शिरकत की अहमियत इस वजह से भी बढ़ जाती है कि निशातुन्निसा बेगम ने जिस हिम्मत और बहादुरी से अपनी बात रखी, वह अकेला ही आपके किरदार की बुलन्दी के लिए काफ़ी था।

सन् 1919 वह ज़माना था जब हिन्दुस्तान की सियासी जिंदगी एक नयी करवट ले रही थी। बेगम हसरत के किरदार और कौमी महाज़ पर उनकी सरगर्मियों की वजह से बी. अम्मा जैसी आज़ादी की अरज़ीम मुजाहिद की नज़़र में उनके लिए कितनी इज्जत थी

इसका पता श्रीमती उमा नेहरू के नाम लिखे उनके खत से चलता हैं, जिसमें 13 दिसम्बर सन् 1917 उन्होंने लिखा था कि अख़बारों से मुझे मालूम हुआ है कि आपके और उस बहादुर और प्यारी बेटी निशातुन्निसा बेगम के साथ मुझे भी ख़्वातीन के उस डेलिंगेशन की कयादत करनी है, जो तमाम ख़्वातीने हिन्द की तरफ से जनाब वज़ीरे हिन्द से मिलने के वास्ते इस महीने की 18 तारीख़ को मद्रास में तय हुआ है।

इस तमाम तफसील का मतलब यह है कि कौमी जंगे-आज़ादी में बेगम हसरत मोहानी की कुर्बानियों, उनकी हिम्मत बहादुरी और मुल्क के लिए मोहब्बत को भुलाया नही जा सकता। उनकी कुव्वते-इरादी की फ़ौलाद जैसी हिम्मत हर चट्टान से टकराने के लिए काफ़ी थी।
बेगम निशातुन्निसा मोहानी का 18 अप्रैल 1937 को कानपुर में निधन हो गया।
देश आपका सदैव ऋणी रहेगा

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संदर्भ -1)THE IMMORTALS
– sayed naseer ahamed (9440241727)
2)लहू बोलता भी है

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संकलन तथा अनुवादक *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726