इतिहास

स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुलतान के पिता हैदर अली

स्वतंत्रता सेनानी -334
7 डिसेंम्बर यौमे वफात
स्वतंत्रता सेनानी टिपू सुलतान के पिता हैदर अली

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
हैदर अली जिन्हे ‘दक्षिण भारत के नेपोलियन’ के रूप में जाना जाता है, इनका जन्म 1722 में कर्नाटक राज्य के देवनहल्ली गांव में हुआ था। उनके पिता फ़तेह मुहम्मद अली थे और उनकी माँ मुजिदन बेगम थीं। बचपन से ही मार्शल आर्ट में महारत हासिल करने वाले हैदर अली अशिक्षित थे, लेकिन उनमें कुशाग्रता, अद्वितीय सहनशक्ति, दृढ़ संकल्प, एक साथ कई कार्यों को संभालने की क्षमता और साहस था। छोटी उम्र में ही उन्हें मैसूर साम्राज्य की सेना में भर्ती कर लिया गया। उसी क्रम में 1749 में देवनहल्ली की घेराबंदी में एक युवा सैनिक के रूप में मैसूर साम्राज्य की ओर से हैदर अली की बहादुरी की प्रशंसा हुई। इसी कारण मैसूर राज्य के मंत्री नंजराज ने स्वयं उन्हें ‘खान’ की उपाधि से सम्मानित किया। हैदर ने अली को एक छोटी सेना का नेता बनाया गया। वहां से, हैदर अली ने अभूतपूर्व वीरता प्रदर्शित की और मैसूर साम्राज्य की ओर से लड़ी गई हर लड़ाई में जीत हासिल की। इसी क्रम में मैसूर साम्राज्य की अराजक स्थितियों के चलते हैदर अली, जो 1758 में सेनापति बने, 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने।

हैदर अली धर्मनिरपेक्ष वृत्ती के थे। वे सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करते थे। हैदराबाद के निज़ाम को हैदर की सफलता और लोगों के बीच उसकी प्रतिष्ठा से ईर्ष्या होने लगी।

उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से मैसूर पर कई बार हमला किया। हालाँकि हैदर अली को शुरुआती नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उन्होंने सफलतापूर्वक उनका विरोध किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक वास्तविक दुःस्वप्न साबित हुआ।

जुलाई 1780 में अपने बेटे टीपू सुल्तान के साथ आक्रमण पर निकले हैदर अली ने जुलाई 1780 में अरकातु पर कदम रखा। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को हराकर मद्रास से 50 मील दूर कांजीवरम पर कब्ज़ा कर लिया। गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने अप्रत्याशित हार से भयभीत होकर सेनाध्यक्ष सर अर्ल कूट को अतिरिक्त बल और अत्यधिक धन भेजा। एक तरफ विदेशी दुश्मन से लड़ते हुए, पलेगैंड, मालाबार नायर ने निज़ाम नवाब के समर्थन से विद्रोह की घोषणा की, लेकिन हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने सफलतापूर्वक उनका सामना किया।

हैदर अली, जब अपने सैनिकों को लगातार जीत की ओर ले जा रहे थे, बीमार पड़ गए और 7 दिसंबर, 1782 को नरसिंगारायुनी पेटा गांव के पास युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु हो गई, जो अब आंध्र प्रदेश के चितूर जिले में है।
देश सदैव आपका ऋणी रहेगा।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
संदर्भ -THE IMMORTALS
– sayed naseer ahamed (9440241727)
▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️

संकलन तथा अनुवादक लेखक – *अताउल्लाखा रफिक खा पठाण सर*

सेवानिवृत्त शिक्षक
टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726