साहित्य

‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ – ऐतिहासिक यात्रा वृत्तांत

चित्र गुप्त
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‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’
– ऐतिहासिक यात्रा वृत्तांत
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कायस्थों के सात प्रमुख उपवर्गों श्रीवास्तव सुप्रसिद्ध हैं। श्रीवास्तव नामकरण श्रावस्ती निवासी होने के आधार पर उसी प्रकार प्रचलित हुआ जैसे मथुरा निवासी माथुर, भट्ट नगर के भटनागर, संकाश्य के सक्सेना, गौड़ देश के कायस्थ गौड़ कहलाए।

ऐसी तमाम जानकारियां भरी पड़ी हैं। जिसके गैर जरूरी होते हुए भी लगता ही है कि जानना चाहिए। प्रत्येक जिले के सभी प्रमुख स्थानों का वर्णन वहां तक पहुंचने के रास्तों को समझाते हुए बड़े कायदे से किया गया है।


अवध शब्द अयोध्या का तद्भव है। अयोध्या शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है, ‘जो योध्य न हो’ अर्थात जो युद्ध द्वारा जीता न जा सके, जो अजेय हो, अपराजेय हो। अवध शब्द का लक्ष्यार्थ भी लगभग यही है। अवध अर्थात जो वध्य न हो, अजेय हो।

एक बार पढ़ना शुरू किया तो जानकारियां ऐसी रुचिकर लगीं कि किताब समाप्त नहीं हुई तब तक चैन न आया। कुल 447 पृष्ठों की यह किताब तीन दिनों में पढ़कर खत्म किया।

स्थानीय इतिहास लेखन की परंपरा कहने को तो बहुत पुरानी है लेकिन अपने देश में यह अंग्रेजों के प्रभाव में आई। राजे राजवाड़े अपने दरबार में कवियों और लेखकों को स्थान तो देते थे लेकिन वो लिखवाने के नाम पर सिर्फ अपनी तारीफें ही लिखवाना पसंद करते थे। चाहे चंदबरदाई की पृथीराज रासो हो या बाबर का बाबरनामा इसमें ऐतिहासिकता कम और नाटकीयता/कविताई ज्यादा देखने को मिलती है। यही कारण है कि बहुत से ऐतिहासिक तथ्य आज भी विवाद का कारण बने हुए हैं।


लखनऊ के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह से सिर्फ चिनहट घूमने की इजाजत लेकर कर्नल स्लीमन अन्य छः अधिकारियों के साथ घूमने निकले और पूरा अवध घूमकर वापस लौटे। उसके बाद अपनी रिपोर्ट डलहौजी को भेजने के अतिरिक्त उन्होंने एक किताब भी लिखी जिसका नाम है – ‘जर्नी थ्रू किंगडम ऑफ अवध’ जिसका अनुवाद स्व ठाकुर जगदेव सिंह ने अवध की लूट नाम से किया है बतौर लेखक यह किताब उसी से प्रेरित होकर लिखी गई है।

लेखक ने एक एक जिले का भ्रमण किया और उसके इतिहास और भूगोल से जुड़ी तमाम बातों, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कथ्यों और तथ्यों, वहां के व्यंजन, ऐतिहासिक महत्व की चीजों/स्थानों का बड़ी बारीकी से इस पुस्तक में विश्लेषण किया है।

“बात चाय की नहीं थी
कुछ देर साथ बैठने की थी।”

जिक्र किसी से मुलाकात का है लेकिन भाव प्रवणता इतनी तीक्ष्ण है ठक से लगती है।

आज के समय में जब हर चौथा आदमी कविता लिख रहा है और हर आठवां आदमी लघुकथाएं ऐसे समय में ऐसे ऐतिहासिक महत्व की किताबें लिखना और उनका प्रकाशन करना बड़ी टेढ़ी खीर जान पड़ता है। लेकिन पवन बक्शी जी ने वह साहस किया और ‘स्मृतियों के दर्पण में अवध’ नाम से एक ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार किया जो अवध क्षेत्र के रहवासियों के साथ-साथ शोध परक छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय साबित हो रही है। प्रस्तुत संग्रह में अवध का नख-शिख़ वर्णन अद्वितीय है।

किताब – स्मृतियों के दर्पण में अवध
लेखक – pavan bakshi
प्रकाशक – कृष्णा कंप्यूटर संस्थान प्रयागराज
मोब – 9450407739