मनोरंजन

सुपर स्टार्स से ज़्यादा फ़ीस लेने वाले लेखक सलीम ख़ान से मिलिये!

स्टार से भी ज्यादा फीस लूंगा…’ इस फिल्म राइटर ने सच कर दी भविष्यवाणी, बॉलीवुड में नाम से बिकती थी फिल्में
एक फिल्म को बनाने में जितनी अहमियत एक्टर-डायरेक्टर की होती है उतनी ही अहमियत फिल्म की कहानी लिखने वाले लेखक की भी होती है और हिंदी सिनेमा में एक ऐसे लेखक रहे हैं जिनकी लेखनी हमेशा समय से आगे रही है. इन्होंने बॉलीवुड को कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों की स्क्रिप्ट दी है।

मनोरंजन जगत में एक ऐसी शख्सियत भी है, जो सालों से इंडस्ट्री पर अपनी धाक जमाए हुए हैं. इन्होंने हिंदी सिनेमा को कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों की पटकथा दी है और इनकी लेखनी हमेशा वक्त से कहीं आगे रही है. इन्होंने अपने जोड़ीदार के साथ मिलकर कई ब्लॉकबस्टर फिल्में लिखीं और अपनी जिंदगी में संघर्ष, शोहरत और कामयाबी खुद सबकुछ हासिल किया. लेकिन, फिर वह स्क्रिप्ट राइटिंग से धीरे-धीरे दूर होते गए. हम बात कर रहे हैं सुपरस्टार सलमान खान के पिता और लेखक सलीम खान की, जिन्होंने जावेद अख्तर के साथ मिलकर कई बेहतरीन फिल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग लिखे. 70-80 के दशक में सलीम खान का वही रुतबा था जो आज उनके बेटे और सुपरस्टार सलमान खान का है।

नई जनरेशन भले सलीम खान को सलमान खान के पिता के रूप में जानती है, लेकिन दीवार, शोले और डॉन जैसी फिल्मों के डायलॉग लिखने वाले सलीम खान का 70-80 के दशक में ऐसा रौब था कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन तक इनके आगे फीके पड़ जाते थे. हर कोई इनसे अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट लिखवाना चाहता था और इसके लिए सलीम खान को मुंह मांगी फीस देने को तैयार था।

इंदौर शहर के रहने वाले सलीम खान के लेखन की शुरुआत हुई थी दोस्तों के लव लेटर लिखने से, जो बाद में उनका जुनून बन गई और वह सिनेमा के सबसे बेहतरीन राइटर बन गए. हालांकि, ये बात और है कि वह इंदौर से बम्बई (मुंबई) लेखक नहीं हीरो बनने पहुंचे थे. लेकिन, जब हीरो के तौर पर पहचान नहीं मिली तो लेखक के तौर पर अपना करियर बनाने में जुट गए. एक बार सलीम खान ने एक मशहूर राइटर से कहा था कि देखना एक दिन राइटर हीरो से ज्यादा फीस लेंगे और ऐसा ही हुआ।

फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने के बाद लेखन में जाना सलीम जावेद के लिए लकी साबित हुआ. लेकिन, उनके लेखन की शुरुआत कैसे हुई, इसकी कहानी भी बेहद सिंपल सी है. एक दिन सलीम गुरु दत्त के राइटर अबरार अलवी के पास गए और उनके साथ काम करने की इच्छा जाहिर की. अबरार साहब ने उनसे कुछ लिखने की गुजारिश की. अबरार साहब ने उनसे कुछ लिखवाया और बात बन गई. 60 के दशक में जहां दिलीप कुमार जैसे सितारे 10-12 लाख फीस लेते थे, वहीं राइटर्स को महज 20-25 हजार ही दिए जाते थे।

इसी बीच 1966 में फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ की शूटिंग के दौरान सलीम खान की मुलाकात जावेद अख्तर से हुई. इस फिल्म में सलीम एक साइड एक्टर थे और जावेद क्लैपबॉय हुआ करते थे. इसी दौरान दोनों की दोस्ती हो गई. 1971 में दोनों इस बात को भांप गए कि हिंदी सिनेमा की ज्यादातर फिल्में एक जैसी होती हैं. दोनों ने आपस में टीम बना ली और छोटी-मोटी कहानियां लिखना शुरू कर दिया।

राजेश खन्ना ने ‘अंदाज’ फिल्म के लिए सलीम-जावेद से संपर्क किया और कहा कि अगर फिल्म की कहानी अच्छी हुई तो वह उन्हें मोटी रकम दिलाएंगे. राजेश खन्ना ने दोनों को इस फिल्म के लिए 5-5 हजार दिलाए. अंदाज सुपरहिट रही और सलीम-जावेद की जोड़ी भी चल निकली. राजेश खन्ना की ‘हाथी मेरे साथी’ की स्क्रिप्ट भी सलीम-जावेद ने ही लिखी थी. 1973 में रिलीज हुई ‘जंजीर’ वो फिल्म थी, जिसने फ्लॉप कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बना दिया और तो और इस फिल्म के पोस्टर पर भी सलीम-जावेद का नाम लिखा गया था, जो कि तब तक चलन में नहीं था।

जंजीर फिल्म का ट्रायल शो देखने के बाद यश चोपड़ा ने सलीम-जावेद को बुलाया और फिल्म लिखने का ऑफर दिया. इस पर दोनों ने 2 लाख फीस के तौर पर मांगी. ये सुनकर रमेश तलवार हंस पड़े. उन्होंने यश चोपड़ा को सलीम-जावेद की डिमांड बताई. लेकिन, कुछ 2 साल बाद रिलीज हुई ‘जंजीर’ इतनी बड़ी हिट साबित हुई कि यश चोपड़ा ने दोनों की डिमांड मान ली. लेकिन, तब उन्हें सलीम साहब से जवाब मिला कि 2 लाख फीस तो जंजीर से पहले थी. अब हम 5-5 लाख फीस लेंगे. तब दोनों के नाम का ऐसा हल्ला था कि यश चोपड़ा ने सलीम खान की डिमांड मान ली और दोनों को 5-5 लाख फीस दी।

इसके बाद सलीम-जावेद की जोड़ी को ‘दोस्ताना’ फिल्म के लिए 12 लाख 50 हजार दिए गए. जबकि, फिल्म के हीरो अमिताभ बच्चन को 12 लाख फीस ही दी गई. यानी उन्हें उस दौर के सुपरस्टार से भी ज्यादा फीस मिली थी और इसी के साथ सलीम खान की कही बात भी सच साबित हुई. हिंदी सिनेमा में राइटर्स की किस्मत बदलने का श्रेय सलीम-जावेद की जोड़ी को ही जाता है।