साहित्य

“सुनो खुशबू…मम्मी पापा आ रहे हैं कल…..दस दिन यही रूकेंगे…..एडजस्ट कर लेना…..

Jha Vinay ·
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“सुनो खुशबू ..
मम्मी पापा आ रहे हैं कल ….. दस दिन
यही रूकेंगे…..एडजस्ट कर लेना…..”राजेश ने खुशबू को
बैड पर लेटते हुए कहा।
“..कोई बात नही राजेश … आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा…..”….खुशबू
ने रिप्लाई दिया …..
सुबह जब राजेश की आंख खुली … खुशबू बिस्तर छोड़ चुकी थी। “चाय ले लो..खुशबू ने राजेश की तरफ चाय का कप बढाते हुए कहा..
अरे खुशबू… तुम आज इतनी जल्दी नहा ली..
हां तुमने ही तो रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को थोड़ा अरेंज कर
लूं…..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग..
“दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे….
राजेश ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया..
“खुशबू..देखना कभी पिछली बार की तरह…..”नही
नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..खुशबू ने भी कप खत्म करते हुए राजेश को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई।…….
नाश्ता करने के बाद राजेश ने खुशबू से पूछा “..तुम तैयार नही हुई..क्या
बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??..” नही..आज तुम
निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट
निकलूंगी..खुशबू ने लंच बाक्स थमाते हुए राजेश को
कहा।….”..बाय बाय..कहकर राजेश बाइक से आफिस
के लिए निकल गया। और खुशबू घर के काम में लग
गई……
“..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से राजेश
के पास जा तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से
जिस तरह खटपट हुई थी …मेरा तो मन ही भर गया
।….ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं..राजेश के
पिताजी राजेश की मम्मी से कह रहे थे।….”..अजी..
भूल भी जाइये..बच्ची है…….कुछ हमारी भी तो
गलती थी….हम भी तो खुशबू से कुछ ज्यादा ही
उम्मीद लगाए बैठे थे….उन बातों को अब सालभर
बीत गया है..क्या पता कुछ बदलाव आ गया
हो…इंसान हर पल कुछ नया सीखता है….क्या पता
कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे राजेश की
मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा……
दरअसल दो भाइयों में राजेश बड़ा था और श्रवण
छोटा।…राजेश गांव से दसवीं करके शहर आ गया आगे
पढने….. और श्रवण पढाई में कमजोर था इसलिए गांव
में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने
लगा….राजेश बी टेक करके शहर में ही बीस हजार रू
की नौकरी करने लगा….खुशबू से कोचिंग सेन्टर में ही
राजेश की जान पहचान हुई थी यह बात मम्मी
पापा को राजेश ने खुशबू से शादी के कुछ दिन पहले
बताई….पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस
रिश्ते के लिए…..फिर भी बड़ा दिल रखकर जब
पिछली बार राजेश और खुशबू के पास शहर आए थे तो
मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही खुशबू के
तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ
हो लिए…..
“अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही
है क्या…. राजेश के पिताजी की आवाज से माँ की
नींद टूटी ..सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ
गए और आटो में बैठकर दोनो राजेश के घर के लिए
रवाना हो गए..घर पहुंचे तो खुशबू घर पर ही
थी…जाते ही खुशबू ने दोनो के पैर छुए…..चाय
पिलाई ….नहाने के लिए गरम पानी किया ….
पिताजी नहाने चले गए और खुशबू रसोई में खाना
बनाने लगी। थोड़ी देर में राजेश भी आ गया।
फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और खाना
खाया। अगले दिन सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो
खुशबू पहले ही उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही
गरम पानी पीने की आदत थी खुशबू ने पहले से ही
पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा
धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी..खुशबू
ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया..नाश्ता भी
पिताजी की पसंद का तैयार था..सबको नाश्ता
करवाकर खुशबू राजेश के साथ चली गई …तो
पिताजी ने चैन की सांस ली..
चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे…..दिन
के खाने की तैयारी भी खुशबू करके गई थी…… स्कूल
से आते ही खुशबू फिर से रसोई में घुस गई …
शाम को हम दोनों को लेकर खुशबू पास के पार्क में
गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से
करवाया…..अगले दिन सण्डे था…. खुशबू , राजेश और
हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए..हमारे लिए ताज्जुब
की बात ये थी कि प्रोग्राम खुशबू ने बनाया
था..खुशबू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और
शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई…..खाना
पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. इस
खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब
पंख लगाकर उड़ गया..
कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और
कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे…।
आखिर कल जब श्रवण का फोन आया कि फसल
तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें
अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना
पड़ा।
रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए
तो खुशबू हमारे कमरे में आ गई उसकी आंखों से आंसू बह
रहे थे।
मैने पूछा..”क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.?…….
तो खुशबू ने पूछा “..पिताजी, मां जी…..पहले आप
लोग एक बात बताइये..पिछले पन्द्रह दिनों में कभी
आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है
या बेटी के पास……”नही बेटा सच कहूं तो तुमने
हमारा मन जीत लिया..हमें किसी भी पल यह नही
लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा
बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ
बेटा……”तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..??
“पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई
थी।…मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा
बढिया नही है।…इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई
तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए
तरसते देखा..बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत
होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर
सकता था।…मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत
दुखी थी….उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही
थी..कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ
किया था।
“”किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे
वैसा काटोगे।””
मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती
लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में
जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी
बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी
होंगे……खुशबू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई।
मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया…..”हां बेटा
अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा…
खुशबू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो
आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के
प्रायश्चित के आंसू थे..। 🙏🏻