सीरियाई सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोही गुटों ने बीते कई सालों में अपनी सबसे बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है.
सीरियाई सैनिकों के तेज़ी से पीछे हटने के बाद विद्रोही बलों ने देश के उत्तर-पश्चिम के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है.
इसमें देश के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो का ज़्यादातर हिस्सा भी शामिल है.
इसके बाद विद्रोही बल दक्षिण की ओर बढ़े और हमा शहर पर कब्ज़ा कर लिया. इसके साथ ही ये कसम भी खाई कि उनका अगला लक्ष्य होम्स शहर होगा.
जॉर्डन की सीमा के नज़दीक दक्षिण में स्थानीय विद्रोही गुटों ने देरा इलाके के ज्यादातर हिस्से पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा कर लिया है. ये वो जगह है जहां साल 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ विद्रोह का जन्म हुआ था.
सीरिया में जंग क्यों हो रही है?
साल 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण और लोकतंत्र समर्थक विद्रोह एक गृह युद्ध में तब्दील हो गया, जिसने न केवल देश को तबाह किया बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियां भी इसमें शामिल हो गईं.
तब से लेकर अब तक इस जंग में पाँच लाख से अधिक लोग मारे गए हैं. एक करोड़ 20 लाख लोगों को अपने घर से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा. इनमें से लगभग 50 लाख लोग अब या तो शरणार्थी हैं या फिर वे विदेश में शरण चाह रहे हैं.
विद्रोहियों के हमले से पहले ऐसा लग रहा था मानो जैसे रूस, ईरान और ईरान समर्थित मिलिशिया की मदद से असद सरकार के देश के कई शहरों पर नियंत्रण हासिल करने के बाद ये युद्ध खत्म हो गया हो.
हालांकि, देश के कुछ बड़े हिस्से अभी भी सरकार के सीधे नियंत्रण से बाहर हैं.
इनमें उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र शामिल हैं जहां अमेरिका समर्थित कुर्द नेतृत्व वाले सशस्त्र समूहों का नियंत्रण है.
विद्रोहियों का आख़िरी बचा हुआ गढ़ उत्तर-पश्चिमी प्रांतों अलेप्पो और इदलिब में है, जो तुर्की की सीमा से लगे हैं और यहां चालीस लाख से अधिक लोग बसते हैं, जिनमें से कई विस्थापित हैं.
उत्तर-पश्चिम इलाके में इस्लामी चरमपंथी समूब हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) का प्रभुत्व है. लेकिन तुर्की समर्थित विद्रोही गुट-जिन्हें सीरियन नेशनल आर्मी (एसएनए) के तौर पर जाना जा है, भी तुर्की के सैनिकों की मदद से इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखते हैं.
हयात अल-तहरीर शम क्या है?
हयात तहरीर अल-शम का गठन (एचटीएस) अल-नसरा फ्रंट के नाम से हुआ था. गठन के अगले साल ही उसने अल-क़ायदा के प्रति अपनी निष्ठा रखने की कसम खाई.
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ लड़ रहे विद्रोहियों के सभी गुटों में अल-नसरा फ्रंट ही सबसे घातक और असरदार था. लेकिन ऐसा लगता है कि ये गुट क्रांति के उत्साह की तुलना में जिहादी विचारों से ज्यादा प्रेरित था. उसका ये रवैया कई बार विद्रोहियों के सबसे प्रमुख गठबंधन फ्री सीरियन आर्मी से इसके टकराव की वजह बना.
2016 में अल नसरा ने अल-क़ायदा से अपने संबंध तोड़ लिए और एक साल बाद दूसरे विद्रोही गुटों में विलय के दौरान अपना नाम हयात तहरीर अल-शम रख लिया.
हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देश अब भी एचटीएस को अल-कायदा का ही सहयोगी मानते हैं और अक्सर उसे अल-नसरा फ्रंट ही कहते हैं.
एचटीएस ने अपने प्रतिद्वंद्वियों अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट की इकाइयों को कुचल कर इदलिब और अलेप्पो में अच्छी-खासी ताक़त जुटा ली. उसने इस इलाके में शासन करने के लिए कथित तौर पर सीरियन सैल्वेशन सरकार का भी गठन कर लिया है.
एचटीएस का अंतिम लक्ष्य है असद का तख़्तापलट और एक इस्लामी सरकार की स्थापना. लेकिन इससे पहले तक इसने बड़े पैमाने पर संघर्ष छेड़ने की कोशिश और असद की सत्ता को दोबारा चुनौती देने से परहेज़ ही किया था.
हालांकि अब एचटीएस के नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि विद्रोहियों का लक्ष्य असद के शासन को ख़त्म करना है.
सीरिया और सहयोगी देशों ने अब तक का क्या किया है?
राष्ट्रपति बशर अल-असद ने विद्रोहियों को ‘कुचल’ डालने की कसम खाई है. वो उन्हें ‘आतंकवादी’ कह रहे हैं.
दो दिसंबर को ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़िश्कियान से फोन पर बात करते हुए उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों पर युद्ध भड़काने का आरोप लगाया था.
उन्होंने कहा था कि पश्चिमी देश इस क्षेत्र का ‘नक्शा बदल देना’ चाहते हैं.
इस बातचीत के दौरान ईरान के राष्ट्रपति ने कहा था कि उनका देश सीरिया की सरकार और इसके लोगों के साथ मजबूती से खड़ा है. उनका कहना था कि सीरिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखना इस क्षेत्र में उसकी रणनीति की बुनियाद है.
क्रेमलिन (रूस) के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि रूस अलेप्पो के इर्द-गिर्द के हालात को ‘सीरिया की संप्रभुता’ पर हमला मानता है.
वह चाहता है कि सीरिया की सरकार जल्द से जल्द इस इलाके में हालात सामान्य कर संवैधानिक व्यवस्था बहाल करे. वो सीरिया के इस कदम के समर्थन में है.
रूस ने शुक्रवार को सीरिया में रह रहे अपने नागरिकों को देश छोड़ देने के लिए कहा था.
पश्चिमी देश और तुर्की क्या कह रहे हैं
असद के विरोधी अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने 2 दिसंबर को संयुक्त बयान जारी कर सभी पक्षों से तनाव को और न बढ़ाने की अपील की.
संयुक्त बयान में कहा गया कि सभी पक्ष नागरिकों और इन्फ्रास्ट्रक्चर की हिफाजत करें ताकि लोगों का और ज्यादा विस्थापन न हो. ये युद्ध में फंसे और विस्थापित लोगों तक मानवीय मदद पहुंचाने के लिए भी जरूरी है.
उन्होंने इस संघर्ष का सीरिया की अगुवाई में राजनीतिक समाधान निकालने की भी अपील की. संयुक्त राष्ट्र के 2015 के एक प्रस्ताव में भी सीरियाई संघर्ष के राजनीतिक समाधान को रेखांकित किया गया है.
इससे पहले 30 नवंबर को व्हाइट हाउस की राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता सीन सावेत ने कहा कि असद इस समस्या का राजनीतिक समाधान निकालने में दिलचस्पी नहीं रखते. वो इसके लिए किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते.
इसके अलावा उनकी ‘रूस और ईरान’ पर निर्भरता ने भी हालात को मौजूदा संघर्ष तक पहुंचा दिया है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘अमेरिका का विद्रोहियों के हमले से कोई लेना-देना नहीं है’.
तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान ने भी कहा कि सीरिया में जो हो रहा है उसमें किसी विदेशी ताकत के दखल की बात करनी एक गलती होगी. उन्होंने कहा कि सीरिया सरकार अपने लोगों और वैधानिक विपक्ष से सुलह कर ले.
==============
डेविड ग्रिटेन
पदनाम,बीबीसी न्यूज़
अबू मोहम्मद अल-जुलानी: सीरिया के शहरों पर कब्ज़ा करने वाले विद्रोही गुट के नेता कौन हैं?
सीरिया के प्रमुख शहर अलेप्पो पर इस्लामी चरमपंथी ग्रुप हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएएस) का कब्ज़ा हो गया है.
एचटीएस के नेतृत्व में अन्य चरमपंथियों ने हमा शहर पर भी कब्ज़ा कर लिया है.
एचटीएस के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जु़लानी पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं.
हाल के सालों में वो दुनिया के सामने अपना उदारवादी चेहरा पेश करने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन अमेरिका ने उन्हें पकड़ने के लिए एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है.
अबू मोहम्मद अल-जुलानी कौन हैं?
अबू मोहम्मद अल-जुलानी एक उपनाम है. उनका असली नाम और उम्र विवादित है.
अमेरिकी ब्रॉडकास्टर पीबीएस ने फ़रवरी 2021 में अल-ज़ुलानी का इंटरव्यू किया था.
उस वक्त जुलानी ने बताया था कि जन्म के समय उनका नाम अहमद अल-शारा था और वो सीरियाई हैं. उनका परिवार गोलान इलाक़े से आया था.
उन्होंने कहा था कि उनका जन्म सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुआ था, जहां उनके पिता काम करते थे. लेकिन वो खुद सीरिया की राजधानी दमिश्क में पले बढ़े हैं.
हालांकि ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि उनका जन्म पूर्वी सीरिया के दैर एज़-ज़ोर में हुआ था और ऐसी भी अफ़वाहें हैं कि इस्लामी चरमपंथी बनने से पहले उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई की थी.
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की रिपोर्टों के अनुसार, उनका जन्म 1975 से 1979 के बीच हुआ था.
इंटरपोल का कहना है कि उनका जन्म 1979 में हुआ था. जबकि अस-सफ़ीर की रिपोर्ट में उनका जन्म 1981 बताया गया है.
अल-जुलानी कैसे इस्लामी समूह के नेता बने?
माना जाता है कि साल 2003 में अमेरिका और गठबंधन सेनाओं के इराक़ पर हुए हमले के बाद, अल-जुलानी वहां मौजूद जिहादी ग्रुप अल-क़ायदा के साथ जुड़ गए थे.
अमेरिका की अगुवाई वाली गठबंधन सेना ने राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन और उनकी बाथ पार्टी को सत्ता से हटा दिया था लेकिन उन्हें विभिन्न चरमपंथी समूहों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा.
साल 2010 में इराक़ में अमेरिकी सेना ने अल-जुलानी को गिरफ़्तार कर लिया और कुवैत के पास स्थित जेल कैंप बुका में बंदी बनाए रखा.
माना जाता है कि यहां उनकी मुलाक़ात उन जिहादियों से हुई होगी, जिन्होंने इस्लामिक स्टेट (आईएस) ग्रुप का गठन किया था. यहां इराक़ में आगे चल कर आईएस के नेता बने अबू बक्र अल-बग़दादी से भी उनकी मुलाक़ात हुई होगी.
अल-जुलानी ने मीडिया को बताया कि जब 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ सीरिया में हथियारबंद संघर्ष शुरू हुआ तो अल-बग़दादी ने उन्हें वहां ग्रुप की एक शाखा शुरू करने के लिए भेजने का इंतज़ाम किया.
इसके बाद अल-जुलानी एक हथियारबंद ग्रुप नुसरा फ़्रंट (या जबहत अल-नुसरा) के कमांडर बन गए, जिसका गोपनीय संबंध इस्लामिक स्टेट से था. जंग के मैदान में इसने काफ़ी कामयाबियां हासिल कीं.
साल 2013 में अल-जुलानी ने नुसरा फ़्रंट का संबंध आईएस से तोड़ लिया और इसे अल-क़ायदा के मातहत ला दिया.
हालांकि, साल 2016 में उन्होंने एक रिकॉर्डेड संदेश में अल-क़ायदा से भी अलग होने का एलान किया था.
साल 2017 में, अल-ज़ुलानी ने कहा था कि उनके लड़ाकों ने सीरिया के अन्य विद्रोही ग्रुपों के साथ विलय कर लिया है और हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) का गठन किया.
अल-ज़ुलानी इस पूरे ग्रुप को कमांड करते हैं.
अल-ज़ुलानी किस प्रकार के नेता हैं?
अल-जुलानी के नेतृत्व में एचटीएस, उत्तर-पश्चिम सीरिया में इदलिब और आसपास के इलाक़ों में सक्रिय प्रमुख विद्रोही ग्रुप बन गया.
जंग से पहले इस शहर की आबादी 27 लाख हुआ करती थी. कुछ अनुमानों के अनुसार, विस्थापित लोगों के आने से एक समय शहर की आबादी 40 लाख तक पहुंच गई थी.
यह ग्रुप इदलिब प्रांत में ‘सैल्वेशन गवर्नमेंट’ को नियंत्रित करता है. यह स्वास्थ्य, शिक्षा और आंतरिक सुरक्षा मुहैया कराने में स्थानीय प्रशासन की तरह काम करता है.
साल 2021 में ही अल-ज़ुलानी ने पीबीएस को बताया था कि उन्होंने अल-क़ायदा की वैश्विक जिहाद वाली रणनीति का अनुसरण नहीं किया.
उन्होंने कहा था कि उनका मुख्य मकसद सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बाहर करना था और ये भी कि, ‘अमेरिका और पश्चिम का भी यही मकसद था.’
उन्होंने कहा, “यह क्षेत्र यूरोप और अमेरिकी की सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं पैदा करता. यह क्षेत्र, विदेशी जिहाद को अंजाम देने का मंच नहीं है.”
साल 2020 में, एचटीएस ने इदलिब में अल-क़ायदा के ठिकानों को बंद कर दिया, हथियार ज़ब्त कर लिए और इसके कुछ नेताओं को जेल में डाल दिया.
इसने इदलिब में इस्लामिक स्टेट की सक्रियता पर भी अंकुश लगा दिया.
एचटीएस ने अपने नियंत्रण वाले इलाक़े में इस्लामी क़ानून लागू किया है, लेकिन अन्य जिहादी ग्रुपों के मुक़ाबले इसमें बहुत कम कड़ाई की जाती है.
यह सार्वजनिक रूप से ईसाइयों और ग़ैर मुस्लिमों के साथ संपर्क करता है. अपने ‘अधिक’ उदारवादी रुख़ को लेकर जिहादी ग्रुपों की आलोचना के निशाने पर रहा है.
हालांकि मानवाधिकार संगठनों ने एचटीएस पर जनता के विरोध प्रदर्शनों को दबाने और मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगाया है.
अल-जुलानी ने इन आरोपों से इनकार किया है.
एचटीएस को पश्चिम और मध्य पूर्व की सरकारों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा चरमपंथी संगठन के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
क्योंकि अल-जुलानी का अतीत अल क़ायदा से जुड़ा रहा है. उनकी ग़िरफ़्तारी के लिए सूचना देने के लिए अमेरिका सरकार ने उन पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रख रखा है.
सीरिया को लेकर भारत ने जारी की ट्रैवल एडवाइज़री, जानिए क्या कहा?
सीरिया में विद्रोही गुटों के देश की राजधानी दमिश्क की तरफ़ बढ़ने की ख़बर के बाद, स्थिति को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रैवल एडवाइज़री जारी की है.
अपनी एडवाइज़री में विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों से कहा कि वो सीरिया जाने से बचें.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि सीरिया में रह रहे भारतीय दमिश्क में स्थित भारतीय दूतावास के संपर्क में रहें.
विदेश मंत्रालय ने इमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर (+963 993385973) जारी किया है और कहा है कि नागरिक फ़ोन नंबर और व्हॉट्सऐप के ज़रिए भारतीय दूतावास से संपर्क कर सकते हैं. इसके अलावा मंत्रालय ने ईमेल आईडी hoc.damascus@mea.gov.in भी जारी किया है.
जो लोग सीरिया छोड़ सकते हैं उनके लिए विदेश मंत्रालय ने कहा है कि “जो उड़ानें चल रही है वो उनका इस्तेमाल करें.”
विदेश मंत्रालय ने सीरिया में रह रहे भारतीयों से अनुरोध किया है कि वे अपनी सुरक्षा के बारे में अत्यधिक सावधानी बरतें.
Israeli political source: “If Homs falls, we will create a buffer zone inside Syria in the Golan Heights.”