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सिख धर्म में ही मिल सकती है शूद्रों को ग़ुलामी से मुकम्मल आज़ादी….सरदार मेघराज सिंह के लेख पढ़िये!

Meghraj Singh
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सिख धर्म में ही मिल सकती है शूद्रों को ग़ुलामी से मुकम्मल आज़ादी ।
जो मन से अपनाएंगे सिख धर्म को उनकी कभी नहीं होगी बर्बादी ।
मेने तो चमार जाति के ग़ुलामी के गटर से निकलकर सिेख धर्म को अपना लिया है ।
क्या आप भी सिख धर्म को अपनाएंगे
सिख धर्म को सिर्फ़ ज़िंदे लोग अपना सकते हैं ।
( M S khalsa )

Meghraj Singh
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गुरुग्रंथ साहिब सच्चे ज्ञान का प्रकाश है ।
गुरुग्रंथ साहिब अज्ञान करता विनाश है ।
जात पात नस्लवाद अज्ञान का अंधेर है ।
बिना ज्ञान के ज़िंदगी दुखों का ढेर है ।
जो सिख ध्यान से गुरुग्रंथ साहिब जी को पढ़ते हैं और गुरुग्रंथ साहिब जी की बात को मन में धारण करते हैं वह कभी भी जात पात को नहीं मानते ।
जो सिख ध्यान से गुरु ग्रंथ साहिब जी को नहीं पढ़ते हैं और नाही गुरु की बात को मन में धारण करते हैं वही जात पात को मानते हैं ।
जो गुरु के सिख हैं वह जात पात को नहीं मानते ।
जो जात पात को मानते हैं गुरु उनको अपना सिख नहीं मानते ।
नोट— सिख धर्म का मक़सद है विश्व के अंदर से जात पात और नस्लवाद को नष्ट करना क्योंकि जात पात और नस्लवाद इंसान की ज़िंदगी की खुशियों को बर्बाद कर देती है ।
वॉट्सऐप नंबर+13474754233
( M S khalsa )

Meghraj Singh
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असली हैप्पी रिपब्लिक डे भारतवासियों के लिए तब होगा ?
1 जब पूरे भारतवासी जात पात से मुक्त हो जाएंगे ।
2 जब पूरे भारतवासी ग़रीबी के गटर से बाहर निकल जाएंगे ।
3 जब हम पूरे भारत भुखमरी को ख़त्म कर देंगे ।
4 जब पूरे भारतवासी मोहब्बत से जीवन जीना सीख जाएंगे ।
5 जब पूरे भारतवासी भ्रष्टाचारी बलात्कारी और अत्याचारी से बाहर निकल जाएंगे ।
तब हम पूरे भारतवासियों को कहेंगे हैप्पी रिपब्लिक डे ।
इस समस्या से भारत को बाहर निकालने के लिए हमने काम शुरू कर दिया है ।
नोट—भारत को भुखमरी से ग़रीबी से अत्याचारी से बलात्कारी से भ्रष्टाचार से जात पात से बचाने के लिए आप हमारा साथ दें इस मिशन में साथ देने के लिए इस नंबर पर संपर्क करें ।
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( M S khalsa)

Chander Singh
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यदि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो सभी प्राणियों में समान भावनाएं होती ही होंगी? यदि हां तो यह बात पहले किस समुदाय को अधिक समझने की आवश्यकता है? यहाँ दलित, वंचित, उपेक्षित समाज में गिने, चुने शिक्षित लोग हैं जबकि सवर्ण समाज में गिने, चुने अशिक्षित हैं इस अंतर को समझना होगा। इस अंतर के बावजूद मुझे दूसरी ओर विद्वानजन कम मिलते हैं।
ऐसा नहीं कि विद्वान व्यक्ति नहीं है लेकिन जो हैं वे फिर दरकिनार मिलेंगे। वे स्वयं व्यथित हैं लेकिन जो आसपास हैं, उनके पास न तो विचार है, न विषय है और सच कहूं तो विवेक भी नहीं है। यहाँ किससे बात करें? किसको समझाएं, बताएं, सुनाएं? क्योंकि उसके लिए समझ और संवेदना दोनों का समिश्रण जरूरी है। अन्यथा हर बात अपने आप में एक बतंगड़ होती है।
आप किसी व्यक्ति से दो पल बात कीजिए, वह आपसे एक पल में ही सहमत हो जायेगा और फिर दूसरा आया और उसने अपनी बात रख दी फिर वह उसी ओर हो जायेगा। अंत में यहाँ के बहुसंख्यक लोग उधर चल देते हैं, जहां उनके वर्चस्ववादी विचारों का समागम हो। अर्थात अपना कोई विवेक, विचार, चिंतन, मनन कुछ नहीं है। यह शिक्षितों की दशा है, अब अशिक्षितों से क्या शिकायत करें?
आज धर्म और जाति के झगड़े समाज को बड़ा आघात पहुंचा चुका है। इसकी डोर भी इसी वर्चस्ववादी समाज के हाथ में है और इसकी क्रिया भी अधिकांश वहीं से हो रही है। ताज्जुब की बात यह है कि उनकी खुद की क्रिया से अधिक दूसरों की प्रतिक्रिया पर नज़र है। तब अपनी क्रिया से दूसरों की भावनाओं का कोई मोल नहीं है। क्या यह सब वाज़िब होना चाहिए?
आज आप अपने इर्द-गिर्द देख लीजिए। दलित वर्ग से आपत्ति किसे? मिड डे मील से समस्या किसको? आरक्षण पर आक्रोश किसका है? कपड़े, मूछें, मन्दिर, पानी, आंगन, डीजे, बारात, घोड़ी, गाड़ी, पद, पैसा, तरक्की, विचार इत्यादि सब से परेशानी किसे? दुनियाभर में भेदभाव, असमानता, संघर्ष और मतभेद होता है लेकिन छुआछूत केवल हिन्दू धर्म में है वह भी अपने आंतरिक लोगों से। यह काला सत्य है।
यही वह संकेत है जो विच्छेदित अथवा पलायन होने का प्रोत्साहन देता है। बताता है कि हम एक नहीं है। जहां जातियां सामाजिक, धार्मिक बंटवारे का ऐलान है और वहीं उसमें विधमान छुआछूत, भेदभाव आपसी एकीकरण तथा भाईचारे की भावनाओं को रोकता है। जबतक सवर्ण यह सामाजिक सुधार का नजरिया नहीं अपनाता, भविष्य की राहें और कठिन होगी। लेकिन क्या अब भी कोई सुधार आयेगा?
मैँ जानता हूँ कि मेरी यह अपेक्षा एक दीवार पर सिर पटकने समान है बावजूद इसके कहीं तो कोई हलचल होगी? कहीं तो प्रतिक्रिया की बजाय पहले क्रियाओं पर अवलोकन, विश्लेषण होगा? कभी तो यह भी आत्ममंथन किया जायेगा कि शोषक और शोषित की परिभाषा के सापेक्ष और निरपेक्ष मायने व परिभाषाएं होती होंगी? जिनका सैद्धान्तिक निष्कर्ष नहीं होता बल्कि पहले सर्वोच्च विमर्श होता है? #आर_पी_विशाल।
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