साहित्य

*सासु माँ के गहने*……रचना-लक्ष्मी कुमावत

Laxmi Kumawat
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* सासु माँ के गहने *
जमुना जी की अभी-अभी नींद लगी ही थी कि बहू ममता उनके कमरे में आ गई। और उन्हें झगझोरते हुए बोली,
” लो अम्मा जी, बात कर लो”
जमुना जी ने आंखें खोल कर देखा तो ममता हाथ में फोन लिए खड़ी हुई थी। उसे इस तरह देखकर जमुना जी ने पूछा,
” किसका फोन है बहु”
” और किसका होगा? आपकी लाडली बेटी का है। जब देखो बस फोन खुड़का देती है। ये भी नहीं देखती कि सामने वाला आदमी कोई जरुरी काम कर रहा होगा। या कोई आराम कर रहा होगा। बिल्कुल भी नहीं सोचती कि किसी के आराम में ही खलल पड़ रहा होगा”
जमुना जी के छोटे से सवाल पर ममता ने पूरा लेक्चर दे दिया।
” बहु वो मेरी बेटी है। उसका दिल भी तो मेरे लिए दुखता ही होगा ना। अब मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है तो रोज फोन लगा देती है। नहीं तो पहले कहाँ रोज फोन करती थी “
” हां, हम तो आपको बड़ा दुख में रखते हैं। जो उसका दिल आपके लिए दुखता है”
चिड़चिडाती हुई ममता ने कहा और आखिर फोन उन्हें पकड़ा कर वही पास में खड़ी हो गई। आखिर यह भी तो सुनना जरूरी था कि जमुना जी अपनी बेटी से क्या बात करती है। जमुना जी ने अपने काँपते हाथों से फोन को अपने कानों पर लगाया और बोली,
” हां बिटिया, कैसी है तू? “
” मैं ठीक हूं अम्मा। तुम कैसी हो?”
” बस बिटिया, अपनी जिंदगी के दिन गिन रही हूं। अब तो शरीर भी साथ नहीं देता। बस भगवान, उठा ले अब तो”
” अरे ना अम्मा, अभी तो बहुत लंबी उम्र है तुम्हारी। अभी तो पोते पोती, नाती नातिनों की शादी देखना बाकी है”
” अब तो ना लगे हैं बिटिया कि तब तक जिंदगी जी पाऊंगी। बस तुम लोगों को भगवान सारी खुशी दे। और हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखें”
कहते-कहते अम्मा को खांसी चलने लग गई। ममता ने अम्मा के हाथ से फोन लेकर काट दिया। और अम्मा को पानी का गिलास पकड़ा कर वापस रसोई में चली गई।
अम्मा ने जैसे तैसे अपने काँपते हाथों से दो घुट पानी पिया और गिलास रखने ही लगी थी कि हाथ से छूटकर गिलास गिर गया। अचानक गिलास गिरने की आवाज सुनकर ममता दौड़ी दौड़ी कमरे में आई। गिलास को जमीन पर गिरा देखकर जमुना जी पर चिल्लाने लगी,
” ये क्या है अम्मा जी, आपसे गिलास भी रखते नहीं बनता। गिरा दिया ना पानी और कर दिया ना फर्श गिला। अब मेरा काम फैला दिया। अब मैं घर का काम संभालूँ या आपको संभालूँ। या आपके बिगड़े में काम संभालूँ”
” बहु हाथ कांप रहे हैं इसलिए गिलास गिर गया”
” हां हां सब समझती हूं मैं। फोन पकड़ कर बेटी से तो बात कर लेते हो आप। तब तो आपके हाथ बिल्कुल भी नहीं काँपते। पर जहां मेरा काम फैलाना हो वहां आपके हाथ काँपने लग जाते हैं। अरे घर में कौन सी नौकरानी लगी है। मुझे ही साफ करना है। तो कम से कम बहू की सुविधा भी देख लिया करो। बहू में भी जीव होता है”
बड़ा-बडाती हुई ममता बाहर गई और एक कपड़ा लेकर कमरे में आई और फर्श पर पोछा लगाने लगी। पोछा लगाकर खड़ी हुई। और जमुना जी की तरफ देखकर बोली,
” अब सो जाइए आप”
बिना जमुना जी की प्रतिक्रिया जाने ही ममता दरवाजा जोर से पटकती हुई बाहर निकल गई। जमुना जी एक टक अपनी बहू को देखती रह गई। पर वो ज्यादा कुछ कह नहीं सकती थी। आखिर रहना तो उन्हें उसी के साथ था। बेटा तो सुबह का गया शाम को ही घर में आता था। दिन भर तो ममता ही होती थी उनके पास। इसलिए उसकी तेज जबान को भी जमुना जी झेल जाती थी।
खैर, ममता तो शुरू से ही तेज स्वभाव की रही है। पर फिर भी जमुना जी ने सब कुछ संभाल लिया। पैसे टके के मामले में कभी भी अपने बेटे पर निर्भर नहीं रही। पति की पेंशन का पूरा सहारा था। जब तक जमुना जी के हाथ पैर चलते थे तो वो अपनी बेटी वंदना को खूब बुलाती थी। अपने हाथों से उसकी पसंद की चीजें खुद बनाकर खिलाती थी। बहू अगर चिड़चिड़ करती भी तो सीधा जवाब दे देती थी,
” कौन से तुम्हारे पति के पैसे खर्च करवा रही हूँ। अभी तो मेरे पति की पेंशन आती है। अगर बेटी पर खर्च करती हूँ तो तुम लोगों पर भी खर्च करती हूं। वो अकेली आकर खाती है क्या? तुम सब भी तो खा रहे हो। इसलिए हंगामा करने की जरूरत नहीं है”
जमुना जी का जवाब सुनकर ममता चुप हो जाती।
पर जब से जमुना जी बिस्तर पर आई है, तब से ममता का व्यवहार और भी रुखा हो गया है। अब तो फिर भी जमुना जी लाठी के सहारे उठ कर अपने नित्य कर्म तो कर लेती है। नहीं तो जब वो बिस्तर पर अपने कामों के लिए दूसरों पर मोहताज हो चुकी थी उस समय बेटी वंदना ने ही उसकी सेवा की थी। तब तो ममता आसपास भी नहीं फटकती थी। उन दस दिनों में वंदना ने इस घर में रहकर जमुना जी की खूब सेवा की थी।
लेकिन जैसे ही जमुना जी धीरे-धीरे लाठी के सहारे खड़ी होने लगी। और अपने नित्य कर्म अपने आप ही करने लगी, उसके बाद से ही ममता ने अपना व्यवहार वंदना के प्रति और रुखा कर लिया। आए दिन किसी न किसी बात पर वंदना से बहस करने लगी थी। छोटी सी बात का बतंगड़ बना देती थी।
अब तो जमुना जी को भी ममता की नजरे बड़ी अजीब सी लगती थी। पता नहीं क्यों वो सुबह और रात को सोते समय जमुना जी के पास जरुर आती थी। और उनके गहनों पर सबसे पहले नजर मारती थी। जबकि जमुना जी ने सिर्फ कानों के सोने के झुमके और पैरों में चांदी की पायल के अलावा कोई गहने नहीं पहन रखे थे। हाथों में से लाख की चूड़ियां ही थी।
उस दिन करवा चौथ था। वंदना अपने मायके में ही मौजूद थी। वंदना अम्मा की तबीयत का सुनकर जल्दबाजी में तो आई थी तो ढंग के कपड़े भी नहीं लाई थी। तो अम्मा के कहने पर उनकी अलमारी में से उनकी भारी सी साड़ी निकालकर उसने पहन ली। वो साड़ी जमुना जी के लिए ममता के मायके से आई थी। ये देखकर ममता गुस्से से आग बबूला हो गई और वंदना पर चिल्लाने लगी,
” किससे पूछ कर तुमने अम्मा जी की अलमारी खोली। सब जानती हूं मैं कि इस घर में क्यों रुकी हुई हो। अरे अम्मा की सेवा तो बहाना है, सब कुछ हड़प कर ले जाना चाहती हो अपने साथ। और पता नहीं क्या-क्या निकाला होगा अलमारी से”
उसकी बात सुनकर वंदना की आंखों में आंसू आ गए और वो बोली,
” भाभी अम्मा ने कहा था इसलिए पहन ली”
” सब जानती तुम्हारा त्रियाचरित्र। अम्मा को बातों में फुसला कर सब कुछ अपने नाम कर लेना चाहती हो।”
” बहुत बस कर। क्या बोल रही है तुझे पता भी है। एक साड़ी क्या पहन ली,उसमें इतना हंगामा कर रही है। मेरी चीजों पर मेरी बेटी का भी हक है”
” क्यों अम्मा जी? रहती तो हमारे साथ हो। फिर बेटी का काहे का हक। इसे तो मैं एक फूटी कौड़ी भी न लेने दूं”
” बस करो ममता। तुम्हें शर्म नहीं आती अम्मा से लड़ते हुए”
अचानक माधव ने अंदर आते हुए कहा।
माधव को देखकर ममता चुप तो हो गई। लेकिन घर का माहौल तो खराब हो ही चुका था। ये आए दिन का किस्सा होने लगा था। आखिर जमुना जी भी कब तक बर्दाश्त करती। खुद ही ऐसी स्थिति में थी कि ज्यादा क्या ही बोलती। इसलिए उन्होंने वंदना को खुद ही जाने को कह दिया।
खैर वंदना तो बेटी थी, उसे तो अपने ससुराल जाना ही था। इसलिए वो वापस अपने ससुराल चली गई।
अब वो जमुना जी से फोन पर ही बात करती थी। उसमे भी ममता चिड़ जाती थी। कई बार तो वो जानबूझकर बात ही नहीं करवाती थी।
खुद से भी कुछ होता नहीं है और बेटी वंदना को भी आने देती नहीं है। पता नहीं मन में क्या वहम पाल रखा है। ममता को ऐसा क्यों लगता है कि वंदना कहीं संपत्ति में से हिस्सा ना मांग ले और अम्मा मरने से पहले दे भी ना जाए। बेटा माधव भी ज्यादा कुछ कहता नहीं था, क्योंकि रोज घर की शांति भंग होने लगी थी। इसलिए अम्मा ने ही उसे चुप रहने के लिए कह दिया।
खैर, जमुना जी अपने पलंग से जैसे तैसे उठी और लाठी का सहारा लेकर बाथरूम की तरफ जाने लगी। लेकिन पता नहीं क्यों आज पैर लड़खड़ा गए और वो जमीन पर गिर पड़ी। अचानक कमरे में गिरने की आवाज सुनकर बहू कमरे में आ गयी। और जमुना जी को गिरा हुआ देखकर बोली,
” अरे अम्मा जी, क्या हाथ पैर तुड़वाने का इरादा है। यदि हाथ पैर टूट गए तो मुझसे तो नहीं होगी आपकी सेवा”
जैसे-तैसे झल्लाती हुई ममता ने जमुना जी को सहारा देकर पलंग पर बैठाया। पलंग पर लेटते ही जमुना जी ममता से बोली,
” बहु मेरे शरीर में बिल्कुल जान नहीं रही। कब मेरे प्राण पाखेरू उड़ जाए। एक बार वंदना को यहां बुला दे। मैं बस एक बार उसे देखना चाहती हूं, उससे मिलना चाहती हूं”
” ठीक है ठीक है। बुला दूंगी”
कहकर जमुना जी को ममता वहीं छोड़कर अपने कमरे में आ गई। ‘पता नहीं अपनी बेटी को क्या देने के लिए बुला रही है। मैं तो बिल्कुल फोन नहीं करूंगी’ मन ही मन सोचती हुई ममता ने वंदना को फोन करना ठीक नहीं समझा।
रात को माधव घर पर आया तो अम्मा के कमरे में गया। वहां अम्मा को सोता हुआ देखकर वापस बाहर आ गया।
सुबह उठकर जब जमुना जी के कमरे में गई तो जमुना जी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। पर उसे इस बात का बिल्कुल मलाल नहीं था कि उसने जमुना जी के कहने के बावजूद भी वंदना को बुलाया नहीं। बल्कि बिना वक्त गवाँये वो फटाफट अम्मा के शरीर पर से गहने निकलने लगी।
लेकिन तब तक माधव भी उठ कर आ गया। उसे अम्मा के शरीर पर से गहने उतारते देखकर माधव बोला,
” क्या कर रही हो तुम? अम्मा के गहने क्यों उतार रही हो? तुम्हें पता है ना अम्मा को गहने पहन कर रखना बहुत पसंद है”
” अरे अब काहे की पसंद। अम्मा तो गई”
अचानक ममता के कहने पर माधव फटाफट अम्मा के पास गया और उनके शरीर को छू कर देखा। अम्मा का शरीर ठंडा पड़ चुका था। शायद काफी देर पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी।
” तुम्हें शर्म नहीं आ रही है। अम्मा के गहने निकालने में लगी हुई हो। बता नहीं सकती थी कि अम्मा अब छोड़कर जा चुकी है”
” अरे अम्मा तो जा चुकी है। कहीं गहने भी ना चले जाए इसलिए निकाल रही हूं। अभी लोग आ जाएंगे तो सबसे पहले गहने ही हटाएंगे”
” कौन लोग आकर हटाएंगे?”
माधव ने प्रश्न किया तो ममता उसे घूरते हुए बोली,
” तुम्हारी बहन और कौन। वही एक है जिसकी नजर है इन गहनों पर”
इसके आगे माधव ने कुछ नहीं कहा। बस कुछ देर तक ममता की लालच भरी नजरों को देखता रहा जबकि ममता अपने काम में लगी रही। थोड़ी देर बाद उसने वंदना और बाकी रिश्तेदारों को फोन कर अम्मा के संसार से कुच कर जाने की खबर दी। जब क्रिया कर्म हो गया तो वंदना वापस अपने पति के साथ जाने लगी। तब माधव वंदना से बोला,
” वंदना तू तो इस घर की बेटी है। तुझे तो कम से कम पंद्रह दिन यहां रुकना ही चाहिए”
” नहीं भाई, जिस घर से अम्मा ने खुद ही जाने को कह दिया था। वहां मेरा रुकना ठीक नहीं। फिर तुम तो सब कुछ जानते ही हो। अपने स्वाभिमान की रक्षा तो मुझे खुद ही करनी है। अब तो अम्मा भी नहीं रही। अब तो मेरा मायका भी खत्म….”
कहते-कहते वंदना की आंखों में आंसू आ गए।
माधव ने देखा कि ममता अपने रिश्तेदारों से घिरी बैठी है, पर एक बार भी उसने वंदना को सांत्वना नही दी। सच आज वाकई उसकी बहन का मायका खत्म हो रहा था। पर फिर भी माधव ने भी वंदना को रोका नहीं।
वंदना अपने पति के साथ बाहर आ गई। दोनों रवाना होने वाले थे कि इतने में माधव फिर वंदना के पास आया। और एक छोटी सी पोटली उसे देकर बोला,
” ये अम्मा ने तेरे लिए दिए थे। ये ले जा। ये अम्मा का आशीर्वाद है। उन्होंने खुद अपने हाथों से मुझे दिए थे कि वंदना को दे देना। और रही बात मकान में हिस्से की तो…”
” नहीं भाई मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं जानती हूं कि आप की स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं है। आप तो ये अपने पास ही रखो”
” पर वंदना ये गहने तेरे है। इस पर सिर्फ और सिर्फ तेरा हक है। इससे पहले की तेरी भाभी के साथ रहकर मेरी भी नियत खराब हो जाए, तू इन्हें ले जा। और रही बात मायके कि तो जरूरी नहीं कि तू यहां आए। मैं तेरे पास आ जाऊंगा। तेरे स्वाभिमान को खत्म नहीं होने दूंगा। मायके का आंगन ना सही, भाई का दामन तो है”
अपने भाई माधव की बात सुनकर वंदना उसके गले लग कर फूट-फूट कर रोई। कुछ देर बाद जब मन हल्का हुआ तब माधव से विदा लेकर वंदना वहां से रवाना हो गई।
वो दिन था और आज का दिन है, वंदना कभी अपने उस मायके के घर में नहीं गई। हां, माधव हर रक्षाबंधन और भाई दूज पर खुद अपनी बहन कर घर पर आ जाता है। हालांकि ममता ने इस पर भी काफी हंगामा किया था। पर माधव एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता। तो ममता धीरे-धीरे अपने आप ही चुप हो गई।
और रही बात गहनों की तो ममता उन गहनों के लिए अपना सिर पिटती रह गई। जब माधव ने उसे यह बताया कि अम्मा ने मकान बेटे के नाम तो गहने बेटी के नाम किए थे। और गहने उसने खुद वंदना को दे दिए।

मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित