साहित्य

“साला, कौन कहता है बे कि इंसानियत मर चुकी है इस दौर में……….”

दफ़्तर से अपना काम ख़तम करने के बाद जब अपने घर के लिए गुप्ता जी निकलने लगे तो उस समय उनकी घड़ी में तक़रीबन रात के 9 बज रहे थे । हालांकि रोज़ गुप्ता जी शाम 7 बजे के लगभग अपने ऑफिस से निकल जाया करते थे लेकिन आज काम के दवाब के कारण कुछ देर हो गई थी ।

घर जल्दी पहुँचने की हड़बड़ाहट में गुप्ता जी ने आज बस की जगह टैक्सी पकड़ने का निर्णय लिया औऱ फ़िर ऐप के माध्यम से तुरंत ही एक टैक्सी बुक कर डाली ।
ठीक पाँच मिनट के बाद दनदनाती हुई एक सफ़ेद रंग की चमचमाती मारुती डिजायर गाड़ी आकर उनके पास खङी हो गई। ड्राइवर तुरन्त नीचे उतरकर पिछली सीट साफ करने लगा।

“साॅरी सर जी , एक बुजुर्ग महिला के साथ कुछ छोटे बच्चे बैठे थे, कुछ खा रहे थे” इसलिए सीट थोड़ी गंदी हो गई है औऱ मैं उनको मना भी नहीं कर पाया.. बच्चों को भला कैसे मना करता…ड्राइवर ने गुप्ता जी से कहा ।

” ठीक है , ठीक है, कोई बात नहीं, जल्दी चलो”…गुप्ता जी ने अपनी जुबान चलाई ।

गाड़ी का गेट खोलकर जब गुप्ता जी उसके अंदर बैठे तो देखा कि अभी कार की सीट का प्लास्टिक कवर भी नहीं हटा था औऱ भीतर से नयी कार की खुशबू भी आ रही थी।

अब ड्राइवर ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली ।

” बहुत बधाई हो तुम्हें नयी कार की, बहुत अच्छी कार है… नाम क्या है तुम्हारा?” गुप्ता जी ने जानना चाहा ।

” शुक्रिया सर जी , अभी तीन दिन पहले ही ली है। मेरे पुराने साहब ने ही दिला दी है। बोले ,चलाओ अभी तुम्हें जरुरत है। मैने कहा कि पैसे कैसे दे पाउंगा , तो बोले ,चलाओ अभी पैसे की मत सोचो, मैं देख लूंगा… सर रमेश यादव नाम है मेरा “.. ..ड्राइवर ने बहुत खुश होकर कहा ।

“अच्छा ठीक है , तो फ़िर ये नई गाड़ी तुम्हारे पुराने साहब ने तुम्हें क्यों दिलायी ?” गुप्ता जी ने जानना चाहा ।

” सर मैं उनकी कार चलाता था तक़रीबन बीस साल से…रोज़ सुबह उनको दफ़्तर ले जाता औऱ फ़िर शाम को वापस घर । उसके बाद जब जहां जरूरत होती वहाँ जाता उनके साथ या फ़िर उनकी पत्नी के साथ “…..ड्राइवर बोला ।

ड्राइवर ने फ़िर अपनी बात आगे बढ़ाई….” सर जी ,कोविड में वर्क फ्राॅम होम होने के कारण काम बहुत कम हो गया, फिर वहाँ मेरी जरुरत ही नहीं रही क्योंकि साहब नौकरी से रिटायर हो गए । उसके बाद मैने फ़ूड कंपनी का काम पकङ लिया… सर बहुत प्रेशर था उसमें “…….. ड्राइवर बोला ।

“क्यों?” गुप्ता जी ने कौतूहलवश पूछा।

” सर, पचासों फोन एक साथ आ जाते थे। लोग देर से अपना आर्डर देकर फिर 15 मिनट में डिलीवरी के लिए दवाब बनाते थे। कुछ भी गङबङ हुआ तो बहुत डांट सुननी पङती थी । किसी को धीरज नहीं है सर। दो बच्चे हैं मेरे , काम के जबरदस्त दबाव के कारण 6 महीने कर के वहाँ से छोङ दिया”….ड्राइवर ने कहा ।
“फिर ?” गुप्ता जी ने आगे पूछा ।

” फिर सर , साहब ने ड्राइवर की एक वेबसाइट पर मेरा रजिस्ट्रेशन करा दिया। जब जिसको जरूरत पङती बुला लेता। अपनी सोसाइटी में भी उन्होंने सबको बता दिया था। 10-12 हजार महीन का कमा लेता था ,पेट भर जाता था ….मेरा औऱ मेरे परिवार का ।”

” फ़िलहाल मेरे दोनों बच्चे पढ़ रहे हैं सर , एक अगले साल दसवीं की परीक्षा देगा औऱ दूसरा बी ए में है ,आगे बोल रहा है कहीं से मैनेजमेंट की पढ़ाई करेगा। अब पढ़ाई में तो पैसा लगता है ना सर। मैं बहुत चिंता में था “…इतना कहकर ड्राइवर ख़ामोश हो गया औऱ उसकी आंखें भींग गई ।

” फिर ?” गुप्ता जी ने ड्राइवर को कुरेदा ।
” फिर, सर मैने अपने साहब को पूरी बात बताई , तो वे बोले चिंता मत करो, चलो तुमको एक गाङी निकलवा देता हूँ, अब तुम ख़ुद की गाड़ी चलाओ “।
मैं बोला “साहब ,पैसे कहाँ हैं मेरे पास, तो वे बोले, मैं निकलवा देता हूँ। उन्होंने ही सारी बात की कंपनी से औऱ अपने रिटायरमेंट के मिले पैसों से ये गाड़ी मेरे लिए ख़रीदी ।”

” तो कार साहब के नाम है ?”, गुप्ता जी ने पूछा।

” नहीं सर, मेरे नाम से ” ड्राइवर बोला

” फिर पैसे तो चुकाने पङेंगे, कैसे करोगे इतना सब कुछ ?”
“सर, साहब ने कहा है कि तुम सिर्फ़ मेहनत और ईमानदारी से गाङी चलाओ ,अपनी सारी जरूरतें ,जिम्मेदारियाँ पूरी करो। पैसे अभी नहीं देने हैं, जब ये गाङी बेचोगे तब बताना….फ़िलहाल मैं सब देख लूंगा ।”

अब तक उस साहब के बारे में गुप्ता जी की उत्सुकता चरम पर पहुँच चुकी थी। ऐसे भले लोग कहाँ आसानी से मिलते हैं इस दौर में भला ।

” क्या करते हैं तुम्हारे साहब ?”

” सर , वो एक बड़े दूरसंचार कंपनी में कार्यरत थे , बड़े ही भले लोग हैं वे, उनकी पत्नी भी ग़रीब बस्ती के बच्चों को खाली समय में अपने घर पर बिलकुल मुफ़्त पढ़ाती हैं । “

“क्या नाम है उनका ?” गुप्ता जी ने पूछा।

“जी , साहब का नाम है प्रफ्फुल शर्मा ” ड्राइवर ने कहा ।

” मोबाइल नंम्बर याद है उनका तुम्हें ?” गुप्ता जी की उत्सुकता के बाँध पहले ही ध्वस्त हो चुके थे।

ड्राइवर ने अपने साहब प्रफ्फुल शर्मा का नम्बर गुप्ता जी को बताया।

फिर गुप्ता जी ने उन्हें एक भावनात्मक संदेश व्हाट्सऐप पर भेजा। साथ ही उन्हें बताया कि आपके पुराने ड्राइवर रमेश यादव की नयी गाङी में बैठा हूँ। आपने जो उसके लिए किया है उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ…..।”

दूसरी तरफ प्रफ्फुल शर्मा जी को अनजान नंबर से संदेश पाकर बड़ा आश्चर्य हुआ…” क्या, यह मैसेज मेरे लिए है?” उन्होंने वापस प्रतिक्रिया जाननी चाही ।
फ़िर गुप्ता जी ने विस्तार से प्रफ्फुल जी को पूरी कहानी बताई ।

पूरा संदेश आदान प्रदान के बाद गुप्ता जी ने ये महसूस किया कि प्रफ्फुल साहब ने अपने ड्राइवर के लिए जो कुछ भी किया है, उसका रति भर भी श्रेय वे ख़ुद नहीं लेना चाहते ।

अंत में प्रफ्फुल बाबू ने गुप्ता जी को बस एक ही संदेश भेजा….” ज़नाब , रमेश मेरा ड्राइवर नहीं बल्कि मेरे लिए मेरे परिवार का एक अहम सदस्य है “।

गुप्ता जी की आँखे डबडबा गई औऱ वे मन ही मन सोंचने लगे…..” साला , कौन कहता है बे कि इंसानियत मर चुकी है इस दौर में……….” !!

अपने घर के मुख्य गेट पर पहुँचकर गुप्ता जी टैक्सी से उतर गए औऱ ड्राइवर रमेश को उसके किराए के अतिरिक्त पाँच सौ रुपये का एक नोट थमाया औऱ उससे कहा कि ” वापस अपने घर जाते समय बच्चों के लिए मिठाई ख़रीद लेना औऱ उनसे बोलना कि एक अंकल ने भेजा है “…….!!

ड्राइवर रमेश ने आँखों आंखों में ही गुप्ता जी को शुक्रिया कहा है औऱ फ़िर कुछ चिंतन करते हुए FM रेडियो का वॉल्यूम बढ़ाकर वहाँ से आगे बढ़ चला…….!!
उस वक़्त रेडियो पर गाना चल रहा था……..

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार…
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार…
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार…
जीना इसी का नाम है…!!