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साम्राज्यवाद के हाथों की कठपुतली मीडिया : भारतीय मीडिया जितना आज़ाद और निडर है उतना ही बहादुर इस्राईल भी है!

भारतीय मीडिया जितना आज़ाद और निडर है उतना ही बहादुर इस्राईल भी है! ग़ज़्ज़ा के एक और अस्पताल पर हमला करके अलअवीव मना रहा है जीत का जश्न
एक ओर ग़ज़्ज़ा में हर दिन शहीद होने वाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है तो वहीं दूसरी ओर साम्राज्यवाद के हाथों की कठपुतली मीडिया और विशेषकर भारतीय संचार माध्यमों की ओर से जिस स्तर की रिपोर्टिंग हो रही है उसको देखकर लगने लगा है कि अब मीडिया के क्षेत्र में पत्रकार नहीं अदाकार पैदा होने लगे हैं।

हालिया दिनों में ग़ज़्ज़ा में जो कुछ हो रहा है वह वास्तव में पृथ्वी पर मानवता इतिहास के काले अध्याय का हिस्सा बनता जा रहा है। लेकिन साथ ही साथ इस काले अध्याय में उन सबके नाम जुड़ते जा रहे हैं कि जो अवैध और आतंकी शासन इस्राईल के बर्बरतापूर्ण और पाश्विक हमलों और नस्लीय नरसंहार में उसका किसी भी तरह का साथ दे रहे हैं। ज़रा सोचें आज जो भी देश अवैध इस्राईली शासन के साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़े होने की बात कर रहे है और फ़िलिस्तीनी जनता के नरसंहार के लिए उसको हथियारों की सप्लाई कर रहे हैं वही देश 1930 के दशक में नाज़ी जर्मनी के अत्याचारों से परेशान होकर दर-दर भटक रहे यहूदियों को अपनी एक इंच ज़मीन देने को तैयार नहीं थे। हिटलर द्वारा पीटे जाने वाले यहूदियों को मेहमानों की तरह अगर किसी ने सहारा दिया तो वे केवल और केवल फ़िलिस्तीनी मुसलमान थे। लेकिन इन मुसलमानों को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि वे जिनका हिटलर के अत्याचारों से सुरक्षित रखने के लिए अपने देश फ़िलिस्तीन में मेहमानों की तरह स्वागत कर रहे हैं वही एक दिन उनकी आसतीन का सांप बनकर उनको ही नुक़सान पहुंचाएंगे।


देखते ही देखते हुआ भी यही। 1940 के दशक के अंत और 1950 के दशक के शुरू में लगभग दस लाख फ़िलिस्तीनियों को उनकी ज़मीन से विस्थापित कर दिया गया और उनकी जगह अरब देशों से समान संख्या में यहूदियों ने ले ली। इस तरह फ़िलिस्तीन के केवल कुछ हिस्से ही फ़िलिस्तीनियों के पास रह गए- वेस्ट बैंक, पूर्वी अवैध अधिकृत बैतुल मुक़द्दस और गज़्ज़ा पट्टी। यानी फ़िलिस्तीनियों ने जिनकी जान बचाने के लिए उन्हें शरण दिया था उन्होंने ही फ़िलिस्तीनियों को शरणार्थी बना दिया और उनके ख़ून के प्यासे बन गए। 75 वर्षों से आतंकी अवैध इस्राईली शासन इन फ़िलिस्तीनियों पर बिना रुके अत्याचार की सारी सीमाओं को लांघ रहा है, लेकिन दुनिया की साम्राज्यावदी शक्तियां उसके हर अत्याचार का समर्थन करती रहीं। इस बीच मीडिया आरंभ में थोड़ा आज़ाद और निष्पक्षता था और सही रिपोर्टिंग करता था। उसमें यह साहस और हिम्मत थी कि वह सच को सच और झूठ को झूठ कह सके। यही कारण था कि कुछ ही देशों को छोड़कर ज़्यादातर देशों ने फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थन किया और इस्राईल को एक अवैध और ​अतिक्रमणकारी शासन के रूप में जाना।

इस दौरान साम्राज्यवादी शक्तियों ने इस बात को भली-भांति समझ ली थी कि दुनिया तक सच्चाई पहुंचने वाले रास्ते को या तो बंद कर दिया जाए और या फिर ख़रीद लिया जाए तो उनकी सारी काली करतूतों को छिपाया जा सकता है। देखते ही देखते मीडिया संस्थानों की बोली लगने लगी और वह मीडिया जो कल तक ग़रीबों, पीड़ितों और मज़लूमों की आवाज़ हुआ करता था वह अब साम्रज्यवादियों और आतंकवादियों की आवाज़ में बदल गया। ग़ज़्ज़ा में जिस प्रकार की रिपोर्टिंग हो रही है उसको देखकर हर कोई मेरी इस बात से ज़रूर सहमत होगा। एक ओर इस्राईल सभी अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों की अन्देखी करते हुए और सभी मानवीय मानकों को पैरों तले रौंदते हुए हर तरह की आतंकी कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा है वहीं दूसरी ओर मीडिया उसके अपराधों के निशान को मिटाने में लगा हुआ है। हालिया दिनों जिस तरह वह निडरता के साथ फ़िलिस्तीनी बच्चों का नरसंहार कर रहा है उसी बहादुरी के साथ मीडिया सच को छिपाने में लगा हुआ है।

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। तीसरी जंग हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है।