इतिहास

सरहद्द गांधी के भाई स्वतंत्रता सेनानी ख़ान अब्दुल जब्बार ख़ान

Ataulla Pathan
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9 मई-यौमे वफात(पुण्यतिथी)
सरहद्द गांधी के भाई स्वतंत्रता सेनानी खान अब्दुल जब्बार खान

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खान अब्दुल जब्बार खान, जो डॉ खान साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। डॉ साहेब का जन्म 1883 में पाकिस्तान के पेशावर जिले के चरसड्डा तहसील के उत्तमनजई(उस्मानजई) गाँव में हुआ था। उनके पिता बहेराम खान एक बडे जमीनदार थे।

उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पेशावर में की। पंजाब युनिव्हर्सिटी से मॅट्रिक पास कर मुंबई मेडिकल कॉलेज से मेडिकल सायन्स की डिग्री हासील की। बाद में, उन्होंने 1909 में उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड की यात्रा कर MRCS की डिग्री लेकर भारत लौट आए और 1920 में भारतीय चिकित्सा सेवा में शामिल हो गए। लेकिन, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।वह ब्रिटिश सैनिकों का इलाज करने के लिए अनिच्छुक था। उन्होंने अपने भाई खान अब्दुल गफ्फार खान के मार्गदर्शन में लोगों की सेवा के लिए अपना अस्पताल शुरू किया और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मे प्रवेश किया। वह 1930 में महात्मा गांधी के आवाहन पे सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए । जिसके दौरान उन्होंने अपना पहला राजनीतिक भाषण दिया।इस भाषण की वजह से उन्हें अंग्रेजों ने सजा सुनाई थी।23 एप्रिल 1930 को पेशावर के किस्साखानी बाजार में पुलिस की गोलीबारी के दौरान घायल हुए लोगों के इलाज के लिए सरकार ने उन्हे कैद कर लिया।सजा पूरी होने के बाद, उन्हें उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत से निर्वासित कर दिया गया था। डॉ। खान साहब स्वतंत्रता आंदोलन में एक समर्पित नेता थे।

1930 से 1934 तक उन्हे हजारी बाग झारखंड मे कैद रखा गया।

27 एप्रिल 1934 को डॉ खान साहेब को हजारी बाग से रिहाई मिली।लेकीन सरहदी इलाके पंजाब जाने पे पाबंदी लगा दी।सेठ जमनालाल बजाज के आमंत्रण पे वर्धा आश्रम मे रहे।

इस दौरांन मुंबई की ख्रिश्चन सोसायटी ने एक भाषण पर आक्षेप ले कर फिर एक मुकदमा दाखल कर दिया इसमे उन्हे दो साल कि सजा हो गई।
जेल से बाहर निकालने के बाद 1937 मे अपने वतन पहुचे।

काँग्रेस की तरफ से 1940 में हुए चुनावों में मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को हराया और मुख्यमंत्री बने। डॉ खान साहेब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलगाववादी विचारधारा और जिन्ना के दो-राष्ट्र सिद्धांत का विरोध किया । जब मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को सार्वजनिक बहस का आयोजन किया, तो उन्होंने हिंदू और मुसलमान के बीच सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए । हालांकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस1 मई, 1947 को राष्ट्र के विभाजन के लिए औपचारिक रूप से सहमत हो गये थे लेकीन, डॉ खान बंधुओं ने अंत तक इसका विरोध किया। नतीजतन, पाकिस्तान सरकार ने डॉ खान को देशद्रोही करार दिया और उन्हे छह साल के लिए नजरबंद कर दिया। बाद में भी, खान ब्रदर्स को कई बार निर्वासित किया गया था। डॉ खान के खात्मे के लिए षड्यंत्र चल रहे थे। अंत में, डॉ खान अब्दुल जब्बार खान की 9 मई, 1958 को हत्या कर दी गई ।

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संदर्भ- 1)THE IMMORTALS
– syed naseer ahamed
मो 94402 41727
2)जंग ए आजादी मे पठानो का किरदार -लेखक खालीक सागर

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संकलन तथा अनुवादक लेखक *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपूर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726