साहित्य

समकालीन कविता के सशक्त कवि केदारनाथ सिंह…इनकी एक कविता…”वसीयत”

जयचंद प्रजापति
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समकालीन कविता के सशक्त कवि केदारनाथ सिंह
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समकालीन कविता के सशक्त कवि केदारनाथ का जन्म बलिया के चकिया गांव में 07 जुलाई 1934 में हुआ था। क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी से एमए किया और 1964 में पीएचडी भी कर लिए।दिल्ली में इनका निधन 19 मार्च 2018 को हो गया। आज इनकी पुण्यतिथि है।
हिंदी में ख्यातिलब्ध कवि थे केदारनाथ सिंह। तीसरे तारसप्तका के कवियों में से एक कवि केदारनाथ जी भी थे। यही से साहित्यिक दुनिया में प्रवेश कर गए। अच्छे अनुवादक थे। विदेशी कवियों की कविता का अनुवाद भी किए। इनकी भी कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ।
कविता यात्रा गीतकार से शुरू किया। कविता संग्रह पहला 1960 में..अभी, बिल्कुल अभी.. प्रकाशित हुई। दूसरा कविता संग्रह.. जमीन पक रही है..शिल्पविधान और बिंब विधान के अपूर्व कवि थे। बिंबो की नवीनता, ठेठ देशी प्रतीकों का परिष्कृत प्रयोग करते थे। कथाओं और उपकथाओ का उपयोग करते थे। मुक्त छंदों में भी एक गीतात्मक लय का प्रवाह रहता था। भाषा बहुत ही सहज सरल थी।

इनकी एक कविता…वसीयत
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मेरी खाल दे दी जाए
किसी खेत को
कविताएँ कर दी जाएँ प्रवाहित
किसी नाले में
कौवों को दे दिया जाए निमंत्रण
कि आवें और छज्जे पर बैठकर
काँव-काँव करें
मेरा कुर्ता किसी पेड़ को दे दिया जाए
कमीज़ किसी झाड़ी को
मेरी चिट्ठियाँ भेज दी जाएँ
किसी और पते पर
किसी और का नाम लिख दिया जाए
मेरे नाम की जगह
मेरा बिस्तर दे दिया जाए
किसी बेबिस्तर पड़ोसी को
जो कहता हूँ
सो मैं कहता हूँ
पर जो नहीं कहता
वह पत्थरों को दे दिया जाए
कि शायद … शायद…
कुछ बोलें

कई महाविद्यालय में अध्यापन कार्य किए। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र से जुड़ गए थे। …अकाल में सारस..1959 में साहित्य अकादमी का तथा 2014 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान मिला। कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

….. जयचन्द प्रजापति ’जय’
प्रयागराज