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समंदर में पैर पसारता चीन, मालदीव ने भारत से अहम समझौता ख़त्म किया : रिपोर्ट

मालदीव की नई सरकार ने भारत और मालदीव के बीच साझा हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे को लेकर हुए समझौते से बाहर निकलने का फ़ैसला किया.

इसे लेकर भारतीय मीडिया और रणनीति से जुड़े हलकों में चिंता के स्वर सुनाई दिए.

ये समझौता साल 2019 में प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव दौरे के दौरान हुआ था. इसे भारत और मालदीव के बीच रक्षा संपर्क के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा था.

अंग्रेज़ी में छपने वाले अख़बार द हिंदू ने इसी मुद्दे पर दिल्ली में मौजूद ऑब्ज़र्वर रीसर्च फाउंडेशन के मैरीटाइम प़ॉलिसी प्रमुख अभिजीत सिंह का एक लेख छापा है.

अभिजीत सिंह के अनुसार, मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाने के निर्णय के कुछ सप्ताह पहले दिसंबर महीने के मध्य में मालदीव ने ये फ़ैसला लिया था.

इसके बाद भारत के साथ रक्षा संबंध न रखने की अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए शायद दिसंबर में मालदीव कोलंबो में होने वाले सिक्यॉरिटी कॉनक्लेव में भी शामिल नहीं हुआ.

भारत और मालदीव के बीच भरोसा अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है.

देखने में ये लगता है कि मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू भारत से दूरी बनाए रखना चाहते हैं और अपने मुल्क की स्वायत्तता को दुनिया के सामने रखना चाहते हैं. लेकिन अभिजीत कहते हैं कि ऐसा नहीं है.

वो कहते हैं कि साझा हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे से हटने के फ़ैसले का नाता भारत के साथ संबंधों के बैंलेस को दुरुस्त करने की बजाय चीन के साथ राजनीतिक तौर पर संबंधों को मज़बूत करना है.

इसका नाता अपने मुल्क को नए राष्ट्रपति की लेकर संवेदनशील रवैया नहीं बल्कि चीन के साथ उनका ख़ास रिश्ता है.

मालदीव के पास के समंदर से भारत के हाइड्रोग्राफ़िक जहाज़ों का बाहर निकलना, इस इलाक़े में चीन के मरीन सर्वे के लिए जगह बनाने की कवायद है.

हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे में जो डेटा इकट्ठा किया जाता है, उसका नागरिक इस्तेमाल तो होता ही है, सेना के लिए ये महत्वपूर्ण होता है.

इस डेटा का इस्तेमाल सुरक्षित नेविगेशन, मरीन पर्यावरण पर नज़र बनाने और मरीन वैज्ञानिक रीसर्च के अलावा देश की समुद्री सीमा की निगरानी करने और ये जानने में किया जा सकता है कि देश अपनी सीमाओं पर किस तरह के हथियार तैनात कर रहा है.

देखा जाए तो चीन अपने रणनीतिक एजेंडा के तहत अपने मरीन और समुद्री सर्वे का इस्तेमाल करता है. उसके विस्तृत ओशिनोग्राफ़िक रीसर्च प्रोग्राम में शी यैन क्लास के सर्वे जहाज़ के साथ-साथ युआन यंग क्लास के ख़ुफ़िया-सर्विलांस-टोही जहाज़ शामिल हैं, जिन्हें वो हिंद महासागर में तैनात करता रहता है.

अधिकतर वक़्त इन जहाज़ों की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है लेकिन ये चीनी नौसेना के बढ़ते कदमों के सबूत हैं

समंदर में पैर पसारता चीन

चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना के लिए चीन के ये मरीन और टोही जहाज़ उसकी आंख और कान का काम करते हैं.

ये ऐसे ही नहीं है कि चीन मे बीते सालों में कई बार श्रीलंका और मालदीव से उनके बंदरगाहों में अपने मरीन रीसर्च जहाज़ खड़े करने की इजाज़त मांगी.

वो कहते हैं कि भारतीय ऑब्ज़र्वर्स मानते हैं कि इस रीसर्च से चीन को अपनी पनडुब्बी रोधी ताक़त को और बढ़ाने में मदद मिलती है.

समंदर का तापमान और लहरों की स्टडी से गहरे पानी में दुश्मन की पनडुब्बी खोजने के लिए ज़रूरी रीसर्च को बेहतर करने में मदद मिलती है, वहीं समुद्री पर्यावरण पर शोध से पनडुब्बी के छिप सकने और दुश्मन पर हमला करने की काबिलियत बढ़ाने में मदद मिलती है.

लेकिन दक्षिण एशिया के समंदर में भारतीय हाइड्रोग्राफ़िक जाहजों की मौजूदगी चीन के ओशिनोग्राफ़िक रीसर्च प्रेग्राम के लिए बड़ी बाधा है.

चीन के हाइड्रोग्राफ़र्स को लगता है कि हिंद महासागर के आपपास के देशों में भारतीय नौसेना की मौजूदगी चीन से मरीन सर्वे के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है.

इस बीच ये चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि चीन मालदीव में नौसेना का अड्डा बनाना चाहता है.

2018 में चीन ने माले के नज़दीक मकुनुधू एटोल में एक ऑब्ज़रव्टरी बनाने का प्रस्ताव दिया था जिसमें एक पनडुब्बी अड्डे की भी योजना थी. लेकिन सुरक्षा चिंताओं के बीच मालदीव ने इससे इनकार कर दिया था.

मालदीव को समझना होगा….

अब तक इस बात के सबूत नहीं मिले हैं कि चीन फिर से इस योजना पर काम करने की सोच रहा है, हालांकि अब तक ये भी नहीं पता चला है कि चीन ने अख़िरकार इस योजना को हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया है. लेकिन हाल में जो कुछ हो रहा है उसके बाद इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

भारत के साझा हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे को लेकर मालदीव की चिंता भी नाजायज़ नहीं है, क्योंकि इस सर्वे के लिए बना क़ानूनी फ्रेमवर्क सेना के सर्वे के नियमों से अलग नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र की कन्वेन्शन ऑन द लॉ ऑफ़ द सी के अनुसार, कोई भी मुल्क अपने देश क समुद्री सीमा में हो रहे हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे या सैन्य सर्वे पर निगरानी कर सकता है, लेकिन समुद्री सीमा के बाहर इस तरह की गतिविधि पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता. इसका मलतब है कि विदेशी जहाज़ किसी मुल्क की समुद्री सीमा के बाहर ये काम जारी रख सकते हैं. मालदीव को इसी से नाराज़गी है.

मालदीव के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि वो भारत के साथ साझेदारी में अपनी समुद्री जागरूकता और सुरक्षा बढ़ाए.

मुइज़्ज़ू प्रशासन को ये समझना होगा कि चीन समुद्री सर्वेक्षणों का हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है, भारत नहीं.

वो कहते हैं कि राजनीतिक मजबूरियों से पैदा हुई रणनीतिक समझौते की ये कोशिश मालदीव के लिए विपरीत नतीजे भी ला सकती है.

म्यांमार से सटी सीमा पर मुक्त आवाजाही को रोकेगा भारत

सरकारी सूत्रों के हवाले से अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि भारत जल्द म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रेजीम (एफएमआर) को ख़त्म करेगा.

ये एक ख़ास समझौता है जो भारत और म्यांमार सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोगों को बिना वीज़ा के एक दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर तक भीतर जाने की अनुमति देता है.

सूत्रों के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि केंद्र सरकार ने फ़ैसला किया है कि वो भारत और म्यांमार की पूरी सीमा पर आधुनिक स्मार्ट फेन्सिंग सिस्टम लगाएगा.

सूत्र के अनुसार, “जल्दी ही हम भारत-म्यांमार सीमा पर मुक्त आवाजाही के समझौते को ख़त्म करने जा रहे हैं. हम पूरी सीमा पर बाड़ लगाने जा रहे हैं. ये काम अगले साढ़े चार साल में पूरा हो जाएगा. इसके बाद वगहां से भारत आने वालों को वीज़ा लेना पड़ेगा.”

“इसका मक़सद केवल मुक्त आवाजाही को लेकर हुए समझौते के ग़लत इसतेमाल को रोकना नहीं है. विद्रोही समूह भारतीय सीमा पर हमले करने और उसके बाद म्यांमार की तरफ भागने के लिए इस सुविधा का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं अवैध अप्रवासी, ड्रग्स और सोने की तस्करी पर रोक लगाना भी इसका उद्देश्य है.”

इससे पहले सितंबर 2023 में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने केंद्र सरकार से कहा था कि वो भारत-म्यांमार सीमा पर “अवैध प्रवासियों” को रोकने के लिए फ्री मूवमेंट रिजीम को ख़त्म करे.

उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स) बनाने और म्यांमार से सटी सीमा पर बाड़ लगाने की योजना पर काम कर रही है.

भारत म्यांमार के साथ 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, सीमा का कुछ हिस्सा मिज़ोरम, मणिपुर और नगालैंड में पड़ता है तो कुछ हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में आता है.

सीमा पर रहने वाले आदिवासी बिना वीज़ा के आसानी से सीमा पर रहने वाले अपने रिश्तेदारों से मिलजुल सकें इसके लिए एफ़एमआर समझौता किया गया था.

इसके तहत भारत और म्यांमार के नागरिक केवल के वैध बॉर्डर पास दिखाकर सीमा पार 16 किलोमीटर तक जा सकते हैं. ये पास जारी होने की तारीख़ से एक साल तक वैध होता है और इसके तहत व्यक्ति दो सप्ताह तक दूसरे मुल्क में रह सकता है.

इस समझौते पर 2017 में सहमति बनी थी लेकिन रोहिंग्या शरणार्थी संकट को देखते हुए इसे लागू नहीं किया गया था बाद में मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत इसे 2018 में लागू किया.