नई दिल्ली: भारत के सबसे कम उम्र में सिविल सर्विसिस की परीक्षा कामयाब करने वाले अंसार शेख ने मीडिया से अपने संघर्ष और मेहनत के बारे में बताया है कि “मैं जालना जिले के शेलगांव में पैदा हुआ, जो मराठवाड़ा में पड़ता है। मेरे पिता ऑटो चलाते थे और मां, जो उनकी दूसरी बीवी थी, खेत मजदूर थी। घर में ज्यादातर समय अनाज की किल्लत रहती थी, क्योंकि हमारा पूरा इलाका सूखाग्रस्त है। शिक्षा की कमी के कारण गांव में लड़ाई-झगड़े और शराब पीने की आदत आम थी। बचपन में लगभग हर रात को मेरी नींद शोर-शराबे के कारण टूट जाती थी। पिता शराब पीकर देर रात घर लौटते और मां से झगड़ा करते थे।
मेरी बहनों की शादी कम उम्र में कर दी गई थी और भाई छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर चाचा के गैराज में काम करने लगा था। लेकिन मुझे पढ़ने का चस्का लग गया था। जब मैं चौथी कक्षा में था, तब मेरे रिश्तेदारों ने पिता पर मेरी पढ़ाई छुड़वा देने का दबाव डाला। एक दिन पिता ने मेरे शिक्षक से स्कूल में मुलाकात की और कहा कि वह मेरी पढ़ाई बंद कराना चाहते हैं। शिक्षक का कहना था, आपका लड़का बहुत जहीन है। उसकी पढ़ाई पर खर्च करें। वह आप लोगों की जिंदगी बदल देगा। पिता के लिए यह नई बात थी। उसके बाद उन्होंने कभी मेरी पढ़ाई के बारे में कुछ नहीं कहा।
जिला परिषद के जिस स्कूल में मैं पढ़ता था, वहां मिड डे मील में अक्सर कीड़े मिलते थे। बारहवीं में मुझे 91 फीसदी अंक मिले, तो गांव के लोगों ने मुझे अलग तरह से देखना शुरू किया। पुणे के नामचीन फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लेना मेरे लिए एक कठिन फैसला था। मेरे पास चप्पल और दो जोड़ी कपड़े थे। मराठी माध्यम से पढ़ाई करने और पिछड़े माहौल में रहने के कारण मैं अंग्रेजी से डरता था। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। पिता अपनी आय का एक छोटा हिस्सा मुझे भेजते थे, जबकि भाई हर महीने छह हजार रुपये, जो उनका वेतन था, मेरे खाते में डाल देते थे।
फर्स्ट ईयर में ही प्रोफेसरों ने मुझे यूपीएससी परीक्षा के बारे में बताया। कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ मैंने यूपीएससी की कोचिंग के बारे में भी सोचा। पर उसकी फीस दे पाना मेरे लिए आसान नहीं था। कोचिंग कराने वाली यूनीक एकेडमी की फीस सात हजार रुपये थी। मैंने एकेडमी के टुकाराम जाधव सर से मुलाकात की और अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया। मुझसे बातचीत करने के बाद उन्होंने फीस में पचास फीसदी कटौती कर दी।
वहां कोचिंग करने वाले युवा बीस से तीस साल के थे, और कई तो एक से अधिक बार यूपीएससी दे भी चुके थे। मैं उनमें सबसे छोटा था और सबसे पीछे बैठता था। जब मैं सर से ऊटपटांग सवाल पूछता, तो वे मेरा मजाक उड़ाते। तब पैसे के अभाव में मुझे वड़ा-पाव पर पूरा दिन गुजारना होता और दोस्तों से स्टडी मैटेरियल लेकर उनकी फोटोकॉपी करानी पड़ती। इस तरह यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा मैंने निकाल ली, पर मेन्स से पहले मेरे बहनोई की मौत हो गई।
इसके बावजूद मैंने मेन्स क्लियर किया। इंटरव्यू में मुझसे मुस्लिम युवाओं के कट्टरवादी संगठनों से जुड़ने पर सवाल किया गया। एक ने मुझसे पूछा कि मैं शिया हूं या सुन्नी। मैंने कहा, सबसे पहले मैं भारतीय हूं। इस तरह 21 साल की उम्र में अपनी पहली ही कोशिश में मैं आईएएस हो गया। मेरा मानना है कि गरीबी और प्रतिकूल स्थिति आपके दृढ़ इरादे को नहीं बदल सकती। यह भी नहीं सोचना चाहिए कि यूपीएससी में लाखों छात्रों से मुकाबला है। बल्कि मुकाबला सिर्फ अपने आप से है। आज मैं अपने इलाके के युवाओं की प्रेरणा बन गया हूं और मैं उनका जीवन बदलने की कोशिश भी कर रहा हूं।