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सनातन सास्कृतिक महासम्मेलन व संचालन कर्ता स्वामी दयासागर की देह पंचतत्व में हुई विलीन : बांसवाड़ा राजस्थान से धर्मेन्द्र कुमार सोनी की रिपोर्ट!

कुशलगढ़ जिला बांसवाड़ा राजस्थान रिपोर्टर धर्मेन्द्र कुमार सोनी
(सनातन सास्कृतिक महासम्मेलन व संचालन कर्ता स्वामी दयासागर की दैह पंचतत्व में विलीन)

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राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ की पावन धरा पर महर्षि दयानंद सरस्वती जी के आर्शीवाद से कुशलगढ़ में आर्य समाज के दयानंद आश्रम के प्रेरणा स्त्रोत व संतभ कहे जाने वाले आचार्य के निधन से पहले के कहे शब्द अखीर कार सत्य ही निकलें !

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, दो दिन धर्म रक्षा महायज्ञ,, सनातन सांस्कृतिक महासम्मेलन का संचालन,, कार्यक्रम में गुरुकुल की घोषणा पर कहा हमारी अंतिम इच्छा पूरी नहीं और रात्री 1.00 बजे स्वतः ही प्राणों को त्याग दिया। ,,,आज दिनांक 30 दिसंबर 2024 को सनातन सांस्कृतिक महासम्मेलन और धर्म रक्षा महायज्ञ के प्रभारी आचार्य दयासागर जी आज हमारे मध्य में नहीं रहे उनका स्वर्गवास हो गया। कार्यक्रम में एमडीएस के मालिक राजीव गुलाटी ने वैदिक गुरुकुल और स्कूल की घोषणा करते ही आचार्य दयासागर ने कहा कि आज बरसो पुरानी मांग हमारी पुरी हुई हमारी इच्छा थी कि जनजाति क्षेत्र में गुरुकुल खुले और जनजाति वर्ग के बालक वैदिक संस्कृति और शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर नहीं जाना पड़े।

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उनका सपना था किसी भी परिस्थिति में गुजरात राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच में एक भव्य गुरुकुल होना चाहिए। उन्होंने एम डी एच मसाला के चेयरमैन राजीव गुलाटी से लगातार संपर्क में थे और दो दिन कार्यक्रम का ज़ोरदार संचालन किया और रात को हृदयाघात से दिल का दौरा पड़ने से उनका देवलोक गमन हो गया।

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ऐसा लगा जैसे उनकी अंतिम इच्छा पुरी हुई और अपने प्राणों को हस्ते हुए त्याग दिया। आचार्य दयासागर जी मूलतः झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले थे। देहली आर्य गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद जनजाति क्षेत्र में जनजाति वर्ग के बालकों को शिक्षा दीक्षा देने हेतु थांदला को मुख्य केंद्र बनाया और गुजरात राजस्थान और मध्यप्रदेश में आर्य समाज का कार्य देखते थे।

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ये वर्तमान में मध्य प्रदेश आर्य समाज के प्रभारी थे। उनकी अंतिम संस्कार यात्रा थांदला आश्रम से थांदला शहर होती हुई पुनः आश्रम में लाए और वहीं पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार यात्रा में वे सभी लोग मौजूद थे जिनके नेतृत्व में कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। मुखाग्नि उनके भाई ने दी जो थांदला आश्रम में रहते थे।

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