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सऊदी अरब की यात्रा में अमरीकी विदेश मंत्री की हुई ज़बरदस्त बेईज़्ज़ती : रिपोर्ट

कहते हैं कि अगर किसी अरब या अंतर्राष्ट्रीय स्ट्रैटेजिक मसले में सऊदी अरब की सियासत को समझना हो तो इस देश के सरकारी मीडिया का लहजा और अंदाज़ देख लीहिए।

यह बात ख़ास तौर पर नोट की गई कि सऊदी मीडिया ने जान बूझ कर अमरीकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन की रियाज़ यात्रा को नज़रअंदाज़ किया जो दो दिन चली। इस यात्रा का मक़सद सऊदी अरब अमरीका रिश्तों को दोनों की दोस्ती के स्वर्णिम दौर में वापस ले जाना था जो किंग सलमान के शासन संभालने से पहले तक चल रहा था। दूसरा मक़सद सऊदी अरब के साथ इस्राईल के संबंधों को सामान्य कराना था।

एक महीने के भीतर ब्लिंकन दूसरे अमरीकी अधिकारी हैं जिन्हों सऊदी अरब की यात्रा की है। इससे पहले अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जनरल जैक सोलीवान ने सऊदी अरब की यात्रा की जहां उन्हें सऊदी अधिकारियों की तरफ़ से नज़र अंदाज़ किया गया। अटकलें तो यहां तक हैं कि जैक सोलिवान तीन दिन सऊदी अरब में रहे मगर उनको बड़ी मुश्किल से कुछ मिनट का समय दिया गया कि वो क्राउन प्रिंस बिन सलमान से मिल सकें।

सऊदी मीडिया ने बिन सलमान ने ब्लिंकन की मुलाक़ात की ख़बरें प्राकशित कीं लेकिन बिल्कुल अंदर के पेज पर और वो भी इतनी छोटी ख़बर छापी के उसे ढूंढने में काफ़ी मुश्किल हो।

वहीं फ़्रांसीसी खिलाड़ी करीम बेनज़िमा की जिद्दा यात्रा को ख़ूब कवरेज दी गई।

सऊदी मीडिया ने ब्लिंकन की यात्रा को अगर नज़रअंदाज़ किया है तो इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सऊदी अरब की सरकार इस्राईल सऊदी अरब संबंधों को सामान्य करने की ब्लिंकन की योजना से सहमत नहीं है।

सऊदी विदेश मंत्री फ़ैसल बिन फ़रहान ने अमरीकी विदेश मंत्री के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता को शांति और स्वाधीन सरकार मिलने से पहले इस्राईल से संबंध सामान्य करने के बहुत सीमित फ़ायदें होंगे।

दरअस्ल सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री यज़राईल काट्ज़ ने एक बयान दिया था कि इस्राईल सऊदी अरब के सिविलियन न्युक्लियर प्रोग्राम का विरोध करता है। इसका जवाब सऊदी विदेश मंत्री ने यह दिया कि कई देशों की ओर से परमाणु सहयोग का प्रस्ताव सऊदी सरकार के सामने पेश किया गया है। यहां तक कि वाशिंग्टन भी इसमें भाग लेने का इच्छुक है। यानी सऊदी अरब को इस मसले में इस्राईल के किसी सहयोग की ज़रूरत नहीं है बल्कि उसके सामने रूस, चीन और ईरान का विकल्प मौजूद है।

सऊदी अरब के नेतृत्व ने अपना फ़ैसला कर लिया है और अपनी दिशा तय कर ली है। यही वजह है कि इस ज़ियारत के समय ही सऊदी सरकार ने तेल का उत्पादन कम करने का फ़ैसला भी कर लिया और इस संदर्भ में रूस से उसका समन्वय बढ़ा है।

सऊदी अरब इस समय चीन-रूस मोर्चे का हिस्सा है और बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थन कर रहा है। ब्रिक्स में सदस्यता का सऊदी अरब का रुजहान भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

संक्षेप में यह कि ब्लिंकन नाकाम यात्रा के बाद मायूसी के साथ अमरीका लौटे हैं।