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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार ने इस्राईल को लगायी फटकार, कहा-प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांगों पर ध्यान दें!

संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने अवैध ज़ायोनी शासन के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा है कि वह प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांगों पर ध्यान दें।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने एक बयान जारी करके कहा है कि वह इस्राईल में हो रहे प्रदर्शनों और प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ होने वाली कार्यवाहियों पर बारीकी से नज़र रखे हुए हैं। बता दें कि ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की कट्टर राष्ट्रवादी सरकार के सांसदों ने सोमवार को एक विधेयक पारित किया था, जिसके तहत, सरकार के फ़ैसलों को रोकने की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति छिन जाती है। विपक्षी दलों ने, सात महीने के विरोध प्रदर्शन के बाद आए इस वोट का बहिष्कार किया, जिससे ज़ायोनी समाज में धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष पक्षों के बीच गहरी दरार उजागर हो गई है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस्राईल का सम्पूर्ण भविष्य दांव पर है और वे नेतन्याहू सरकार के निर्णय के ख़िलाफ़ प्रदर्शन जारी रखेंगे।

इस बीच संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि “समाज के विभिन्न वर्गों के सभी लोग, लोकतंत्र और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए गठबन्धन बनाकर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि यह विरोध प्रदर्शन, “इस्राईल में कई दशकों के अथक परिश्रम से बनाए गए लोकतांत्रिक स्थान और संवैधानिक सन्तुलन को संरक्षित” करने का प्रयास है। इससे स्पष्ट होता है कि इन मूलभूत विधायी बदलावों से जनता में कितना रोष है।” क़ानून की किताबों में प्रस्तावित विधायी परिवर्तन का पहला चरण शामिल किए जाने पर वॉल्कर टर्क ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं, और समर्थकों को उम्मीद है कि इससे विधायी प्रयास रद्द हो जाएगा। वहीं उन्होंने ज़ायोनी शासन के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ जिस तरह बर्बतापूर्ण कार्यवाहियां की जा रही हैं वह मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। बता दें कि इस्राईल एक ऐसा नक़ली शासन है जो फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनों पर अवैध तरीक़े से क़ब्ज़ा करके वजूद में आया है। उसने हमेशा फ़िलिस्तीनी लोगों, विशेषकर बच्चों और महिलाओं पर अत्याचारों की सारी सीमाएं पार की हैं। उसकी अत्याचारी प्रवृत्ती की ही नतीजा है कि आज वह अपने लोगों का भी दमन कर रहा है। यहां खेद की बात यह है कि मानवाधिकार संगठन को दोहरा मापदंड देखने को मिल रहा है, फ़िलिस्तीनियों पर होने वाले अत्याचारों पर ख़ामोशी और ज़ायोनी प्रदर्शनकारियों पर हुई थोड़ी सी सख़्ती पर उसकी चीख़ निकल आई।