साहित्य

संभाला तो आपने मुझे है वरना मैं तो…”

Sanjiv Kumar
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” देख ममता….इतनी-सी बात पर तू घर छोड़ मत जा।प्लीज़…।” कहते हुए मंजू ने ममता का हाथ पकड़ लिया।
” दीदी…इतनी-सी बात नहीं है।आपने अपशब्दों के तीर चलाकर मेरा कलेजा छलनी कर डाला है।” कहते हुए उसने अपना हाथ छुड़ाया और बक्से में अपना सामान रखने लगी।

मंजू को चार महीने की प्रेग्नेंसी थी।डाॅक्टर ने उसे आराम करने की सलाह दी थी।मुंबई जैसे महानगर में विश्वासी सहायिका मिलना बहुत मुश्किल था।इसलिये उसने अपनी माँ से कहा कि आप ही कोई देखकर यहाँ भेज दीजिये।तब उसकी माँ ने अपने मायके के पहचान वाले की बेटी ममता को उसके पास भेज दिया था।

ममता बाल-विधवा थी।अपनी गरीब-विधवा माँ के साथ गाँव में मजदूरी करके गुज़ारा कर रही थी।ऐसे में जब मंजू की नानी ने उसकी माँ से ममता के मुंबई जाने की बात कही तो माँ ने सोचा, मंजू कोई पराई तो है नहीं।वहाँ ममता का मन भी बहल जायेगा।

सोलह वर्षीय ममता ने बहुत जल्दी ही शहरी कामकाज को समझ लिया था।मंजू की डिलीवरी हो जाने के बाद तो उसने नवजात मनु को भी बहुत अच्छे-से संभाल लिया। वह मंजू को दीदी और उसके पति को जीजाजी कहती थी।मंजू अक्सर ही उससे कहती,” ममता…तू न होती तो मेरा क्या होता।” तब वह हँसकर कहती,” दीदी…संभाला तो आपने मुझे है वरना मैं तो..।”

” अच्छा-अच्छा…जा देख..मनु उठ तो नहीं गया।” कहते हुए वह बात को घुमा देती।

मनु स्कूल जाने लगा था तब ममता ने कहा,” दीदी…, अब मुझे भी गाँव जाने दीजिये।ज़रा अम्मा की सेवा भी कर लेती तो…।”

” हाँ- हाँ..चली जाना।” हँसते हुए मंजू ने टाल दिया था।दरअसल उसे ममता की आदत हो चुकी थी।

महीने भर पहले मंजू के जेठ का लड़का प्रशांत UPSC की तैयारी करने आया था।एकांत पाकर अक्सर ही वह ममता के साथ छेड़कानी करता रहता।एक दिन ममता ने प्रशांत से कह दिया कि हम दीदी को आपकी करतूत बता देंगे।यह सुनकर प्रशांत तिलमिला उठा।

अगले दिन मंजू को अपनी सोने की एक चूड़ी नहीं मिल रही थी।वह परेशान थी।उसने ममता से भी पूछा तो ममता ने कहा कि मैंने तो नहीं देखा।इसी बीच प्रशांत ममता के कमरे से चूड़ी लेकर आया और मंजू को दिखाते हुए बोला,” ये देखिये चाची…आपकी ममता के बक्से से मिला है।” फिर क्या था, उसने ममता को कुछ भी बोलने का मौका नहीं दिया और नमकहराम, चोरनी, लालची, मुफ़्तखोर, चरित्रहीन और न जाने कैसे-कैसे शब्द-बाण चलाकर निर्दोष ममता का कलेजा छलनी कर डाला था।दो दिन बाद उसने प्रशांत को किसी से बोलते सुना कि ममता को अच्छा सबक सिखा दिखा है मैंने।चाची की चूड़ी चुराकर…।वह समझ गई कि सबकुछ प्रशांत का किया धरा था। ममता को उसने बेवजह ही…।उसके पति ने प्रशांत को तो उसी समय बाहर का रास्ता दिखा दिया लेकिन ममता…, उससे जब माफ़ी माँगने गई तो ममता जाने की तैयारी कर रही थी।

मंजू बोली,” ममता…मेरी बात तो सुन..।”

“अब क्या कहना-सुनना दीदी…हम गरीब हैं..आप हमारे दिल को चोट पहुँचा सकती हैं पर दीदी…कुछ दिनों पहले ही तो आप अपनी ननद से कह रहीं थीं कि मन के घाव कभी नहीं भरते, फिर आपने तो…।” तभी कॉलबेल बजी, दरवाजे पर ममता का ममेरा भाई खड़ा था जो अपनी बहन को लेने आया था।ममता ने कहा,” दीदी..मेरा बक्सा फिर से देख लो…।”

” नहीं ममता…।” मंजू रो पड़ी थी।ममता ने अपना बक्सा उठाया और मंजू को ” प्रमाण दीदी..भूल-चूक माफ़ करना..’ कहते हुए अपने आँसू पोंछे और भाई के साथ चली गई।पीछे-से मंजू ‘ममताssss’ पुकारती रह गई।दूसरों को दुखी करने वाला एक दिन खुद भी दुखी जरूर होता है