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श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ आज व कल मनाएंगे तेजा दशमी, कल निकलेगी तेजाजी की शोभायात्रा : कुशलगढ़, बांसवाड़ा से धर्मेन्द्र कुमार सोनी की रिपोर्ट!

कुशलगढ़ जिला बांसवाड़ा राजस्थान रिपोर्टर धर्मेन्द्र कुमार सोनी
9783421590

(श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ आज व कल मनाएंगे तेजा दशमी )(कल निकलेगी तेजाजी की शोभायात्रा, दिन भय चलेगा पुजा अर्चना का दौर) (तेजाजी महाराज पर विशेष कवरेज हमारे भारत देश में धार्मिक आस्था और विश्वास के साथ सभी श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ हर त्योहार मनाते हैं आज हम सत्य वादी विर तेजा जी महाराज की जीवनी पर हमारी कलम से अवगत करा रहें हैं,


वीर तेजाजी का जन्म 1074 ईसवी में और विक्रम संवत 1130 में हुआ था। उनका जन्म नागौर जिले के खरनाल गाँव में हुआ था ¹ ²।

तेजाजी महाराज के माता-पिता के नाम निम्नलिखित हैं:

पिता का नाम: ताहड़ जी (राजा ताहड़ जी)
माता का नाम: रानी कर्मादेवी (रानी कर्मा देवी)

ताहड़ जी और रानी कर्मादेवी ने तेजाजी महाराज को एक महान योद्धा और सत्यवादी के रूप में पाला, जिन्होंने अपने जीवन में कई महान कार्य किए।


तेजाजी महाराज के परिवार के सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं:

भाई का नाम: भोजाजी (भाई भोजाई)
बहन का नाम: हरिया बाई (बहिन हरिया बाई)
साथी/पत्नी का नाम: पेमल कंवर (पेमल बाई/पेमल कंवर)

भोजाजी तेजाजी महाराज के बड़े भाई थे, हरिया बाई उनकी बहन थीं और पेमल कंवर उनकी पत्नी थीं।

तेजाजी महाराज को संवत 1209 में सांप ने डसा था। यह घटना राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के पास हुई थी। तेजाजी महाराज को सांप के डसने से उनकी मृत्यु हो गई थी, और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें एक लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा।


तेजाजी महाराज का ससुराल राजस्थान के नागौर जिले के खंडेला गाँव में था। उनकी पत्नी पेमल कंवर के माता-पिता के नाम निम्नलिखित हैं:

ससुर का नाम: राजा मेहजमल जी (राजा मेहजमल)
सास का नाम: रानी सुगना कंवर (रानी सुगना)

तेजाजी महाराज का विवाह पेमल कंवर के साथ खंडेला गाँव में हुआ था, और उनके ससुराल में राजा मेहजमल जी और रानी सुगना कंवर ने उन्हें अपनाया था।

तेजाजी महाराज को सांप ने 28 जुलाई 1103 ईस्वी को डसा था, जो कि भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन हुआ था। इस दिन को तेजाजी महाराज की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है और इसे तेजा दशमी के नाम से जाना जाता है।

लाछा गुजरी तेजाजी महाराज की भक्त थीं और उनकी माता के समान थीं। वह एक गुजर समाज की महिला थीं जो तेजाजी महाराज की सेवा और भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया था। लाछा गुजरी को तेजाजी महाराज की माता के समान माना जाता है और उनकी भक्ति और समर्पण के लिए जानी जाती हैं।

लाछा गुजरी की कहानी तेजाजी महाराज की कहानी से जुड़ी हुई है और वह उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वह तेजाजी महाराज की सेवा में रहती थीं और उनके लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

लाछा गुजरी की गाएं मेणा डाकु ले गए थे और इस घटना की तारीख संवत 1209 में हुई थी।

यह घटना तेजाजी महाराज के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि उन्होंने लाछा गुजरी की गाएं वापस पाने के लिए मेणा डाकु से लड़ाई की थी। इस लड़ाई में तेजाजी महाराज को सांप ने डस लिया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी।

तेजाजी महाराज के साथ-साथ उनकी पत्नी पेमल कंवर और लाछा गुजरी ने भी सती होकर अपने प्राण त्याग दिए थे। यह घटना संवत 1209 में हुई थी, जब तेजाजी महाराज को सांप ने डस लिया था और उनकी मृत्यु हो गई थी।

पेमल कंवर और लाछा गुजरी ने तेजाजी महाराज के शव के साथ सती होकर अपने प्राण त्याग दिए थे, जो कि उस समय की एक प्रथा थी। इस घटना को तेजाजी महाराज की महानता और उनके परिवार की वफादारी के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।