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शुक्र मनाइए….😀😀अरेंज मैरिज, लव मैरिज और लिव इन रिलेशन के नफ़ा नुक़सान!

Tajinder Singh
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शुक्र मनाइए….😀😀
कल रात खाने पर मेरे, पत्नी और बेटे में शादी ब्याह के तरीकों पर बात चल रही थी। अरेंज मैरिज, लव मैरिज और लिव इन रिलेशन के नफा नुकसान पर बात होने लगी। बेटा लिव इन रिलेशन की तारीफ कर रहा था।

मैंने कहा शादी सिर्फ शारीरिक जरूरतों के लिए नही है। भावनात्मक जरूरतें भी अपनी जगह हैं। और बढ़ती उम्र में इनकी अधिक आवश्यकता पड़ती है।

इसी बीच बेटे ने मां से पूछा कि अपने पति यानी मेरे साथ 5 साल लिव इन मे रहने के बाद अगर तुम आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती तो भी क्या इन्ही से शादी करती?
पत्नी थोड़ा सोच में पड़ गयी।🤔🤔

पत्नी को सोच में पड़ा देख मैं सोचने लगा कि अरेंज शादी जैसी महान संस्था पर गर्व करने वाले लोग जब आज के दौर में लव मैरिज को बढ़ते हुए तलाक का आधार बताते हैं तो बहुत क्यूट लगते हैं। दरअसल अरेंज मैरिज की भव्य इमारत की नींव में स्त्रियों के अरमान, उनके शौक और उन पर हुए जुल्म दबे पड़े हैं। उन्हें ममता और त्याग की मूर्ति बता कर शादी को बनाये रखने के लिए जुल्मो को सहने के लिए बचपन से ही ट्रेंड किया जाता है। शादी के बाद पति के घर से ही अर्थी उठने और सुहागन ही इस दुनिया से जाने की उनकी इच्छा इसी कंडीशनिंग की वजह से है।

मादा द्वारा सर्वश्रेष्ठ नर को चुन उसके साथ अपनी सन्तति को आगे बढाने के सहज प्राकृतिक नियम के विपरीत है अरेंज मैरिज। ये केवल समाज को बनाये रखने के लिए दी गई एक पुरुषवादी व्यवस्था है। जिससे सभी पुरषों को समान अवसर उपलब्ध हो सके। ये मूलतः स्त्री के अधिकार का पुरषों द्वारा किया गया हनन है। पुराने समय मे होने वाले स्त्रियों के स्वयम्बर भी कहीं ना कहीं बेहतर को आगे ले जाने की प्राकृतिक सोच को ही आगे बढाते थे।

आज भी जंगलों में ये मादा का चुनाव होता है कि उसे किस नर के साथ जोड़ा बनाना है। शायद जंगलों में रहने वाले आदि मानव, निएंडरथल और होमोसेपियंस में भी ये स्त्रियों का ही अधिकार होगा कि वो किसका वरण करे। लेकिन फिर धीरे धीरे समाज बना और समाज की व्यवस्था को बनाये रखने के नाम पर ये हक स्त्रियों से छीन लिया गया।
आज फिर जैसे जैसे स्त्रियां आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं। वैसे वैसे वर के चुनाव में उनकी सहमति असहमति आवश्यक होती जा रही है। अब वो किसी भी खूंटे से बंधने वाली गाय नही रही।

पुराने दौर के पुरुषों से मेरा कहना है कि शुक्र मनाइए की आपके दौर में स्त्री आर्थिक रूप से इतनी स्वतंत्र नही थी। वरना अपने बेटर हाफ पर गर्व करने वाले बहुत से पुरषों की जोड़ियां शायद आज नजर ही न आती। और अकेले किसी कोने में बैठे वो कहीं अपने बेटर हॉफ को कोसते नजर आते😀😀😀

खैर समय बदल रहा है। स्त्रियों को दुबारा हासिल हो रही आज़ादी के साथ अब पुरुष को तालमेल बैठाना सीखना होगा। शायद कइयों ने तो सीख भी लिया होगा😀😀

नोट – पत्नी ने क्या जवाब दिया इसकी चर्चा किसी दूसरे पोस्ट में🙏😀😀😀😀

Shishupal Singh
यह बात सही है की अरेंज मैरिज प्राकृतिक सिद्धांत के खिलाफ है लेकिन तब तक जब तक इस तरह की शादी को शारीरिक संबंध तक ही सीमित रखा जाए । इंसानी बंधन में भावनाए ज्यादा है । चूंकि आदमी और जानवरों की भावात्मक स्तर पर तुलना नही की जा सकती इसलिए जानवर समाज और उनकी प्रवृत्ति को मनुष्य समाज के साथ तुलना नही की जा सकती । जानवरों में असुरक्षा कम है जबकि मनुष्य में ज्यादा है । सारा खेल मनुष्य ने सुरक्षित होने के लिए ही रचा फिर चाहे उसके आविष्कार हो या सामाजिक व्यवस्था । अगर जानवरों में बुद्धि विकसित होती तो वे भी ऐसा ही करते । लिव इन रिलेशन को जानवरों के बेसिक इंस्टिक्ट से तुलना नही की जा सकती । मनुष्य इस रिश्ते में भी सुरक्षा चाहता है । यह रिश्ता भी लॉयल्टी पर टिका है । ऐसा नही हो सकता की स्त्री शारीरिक संबंध किसी और से बनाए और रहे किसी और के साथ । इस रिश्ते में थोड़ा सा खुलापन ज्यादा है मगर ऐसे रिश्ते बहुत स्थाई नही रहते । सबसे बड़ी बात है प्राकृतिक सिद्धांत के जीवन में बूढ़े होने पर बड़ी दुर्गति होती है जो कोई भी इंसान नही चाहेगा ।

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है, लेख सोशल मीडिया से प्राप्त हैं