शाहजहांपुर, चलती-फिरती दुकान के मालिक है,”त्रिलोकी” : बलराम शर्मा की क़लम सें
Parvez KhanComments Off on शाहजहांपुर, चलती-फिरती दुकान के मालिक है,”त्रिलोकी” : बलराम शर्मा की क़लम सें
Lavi Singh =============
#बलराम शर्मा की कलम सें# चलती-फिरती दुकान के मालिक है,”त्रिलोकी” 0 बेरोजगारी सें नही निराश,साईकिल ही बनी चलती-फिरती दुकान 0 ना लोन,और ना ही सरकारी मदद,फ़िर भी बस चल रही है,जिंदगी #जन मन ब्यूरो#
शाहजहांपुर,
अभी बेरोजगार दिवस निकल गया।सरकार का काम है, रोज़गार देना।रोज़गार का स्वरूप क्या हो।ये विषय भी जेरे बहस ही है।अधिकांश बेरोजगार को सरकारी नौकरी चाहिए,लेकिन इतनी आए भी कहां सें सरकार जो निकालती भी है।वो ऊंट के मुंह में जीरा।तमाम लोग खाली हाथ रह जाते है।ऐसा नही है,कि सरकार स्व रोज़गार के लिए लोन नही बांटती,जिसका जमकर ख़ूब प्रचार-प्रसार भी हो रहा है।मुद्रा लोन, खोखा पटरी लोन, लघु-वृहद उद्योग लोन, ये लोन वो लोन, लेकिन लोन किसको कैसे मिलता है??? वो लेने वाला ही जानता है। तमाम लोग लोन “डकार” ना लेने के लिए भी लेते है,तो कई लोन के चक्कर में अपनी इहलीला ही ख़त्म कर लेते है।कुछ लोन न चुका पाने के कारण,अपना घर-वार ही दांव पर लगा देते है।लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है,जो अपनी चादर के हिसाब सें ख़ुद को स्थापित करने का भरसक प्रयास करते है।कमतर साधनो में भी ख़ुद को मोहताज ना बनने देने का माद्दा रखते है।खुद्दार है,जो है,उसी सें जिंदगी की गाड़ी को आगे चलाने के लिए जद्दोजहद करते है।निराशा को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देते।कम है,पर ग़म नही,जितना है,उतना काफ़ी है।ऊपर वाला और देगा।इस भाव के साथ जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते है।वो किसी को कोसते भी नही।
ऐसे ही एक शख्स है,मुहल्ला कूंचालाला निवासी त्रिलोकी कपूरिया उर्फ़ गुरू।पढ़े-लिखे होने के बाद भी जब उनको जॉब व लोन नही मिला,तो उन्होंने निराशा बेल को बढ़ने नही दिया।करीब 13/वर्ष पहले कुछ पूंजी से चौक में सुबह ब रात को रात एक चबूतरे पर चलताऊ दुकान लगाई,लेकिन जब यहां भी शराबी उधारखोरो ने उनको नुकसान पहुँचाया,तो वो एक साईकिल पर ही पूरी दुकान टांगकर जीवकोपार्जन के लिए दृढ़ संकल्पित हो गए।सुबह-शाम दो शिफ्टो में साइकिल पर ही दुकान सजाकर अपना काम शुरू कर दिया।करीब दस वर्ष से एक ही साईकिल पर ही उनकी चलती-फिरती दुकान है। छोटे चौक सें लेकर कोतवाली तक उनकी सीमा रेखा।
लोग उनको गुरू के नाम सें जानते है।उनका एक बेटा है।जिसको वो जैसे-तैसे बेहतर तालीम दिलाने की कोशिश कर रहे है।पत्नी भी उनका साथ दे रही है।वो उन लोगो के लिए एक नजीर है।जो कहते है,कि क्या करे???कोई काम ही नही है।त्रिलोकी को सरकारी योजनाओ का भी कोई लाभ नहीं मिल रहा।सरकार सें उनको बहुत ज्यादा शिकायत भी नही।लेकिन इतना ज़रूर है,कि बच्चे की परवरिश होने के बाद ठीक ठाक कोई काम मिल जाए। इसके लिए वो मेहनत भी कर रहे है।
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