साहित्य

वो हरिद्वार तो चला गया मगर अब भी सदमें में था….

Sachin Malan
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*🌳ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति🌳*आज की कहानी
एक व्यक्ति काम की खोज में इधर-उधर धक्के खाने के बाद निराश होकर जब घर वापस लौटने लगा तो पीछे से आवाज आयी, ऐ भाई! यहाँ कोई मजदूर मिलेगा क्या?
उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि एक झुकी हुई कमर वाला बूढ़ा तीन गठरियाँ उठाए हुए खड़ा है। उसने कहा, हाँ बोलो क्या काम है? मैं ही मजदूरी कर लूँगा।
मुझे रामगढ़ जाना है… दो गठरियाँ में उठा लूँगा, पर….मेरी तीसरी गठरी भारी है, इस गठरी को तुम रामगढ़ पहुँचा दो, मैं तुम्हें दो रुपये दूँगा। बोलो काम मंजूर है।
व्यक्ति ने कहा ठीक है चलो…आप बुजुर्ग हैं। आपकी इतनी सहायता करना तो यूँ भी मैं अपना फर्ज समझता हूँ। इतना कहते हुए उसने गठरी उठाकर अपने सिर पर रख ली। किन्तु गठरी रखते ही उसे इसके भारीपन का अहसास हुआ। उसने बूढ़े से कहा- ये गठरी तो काफी भारी लगती है।
हाँ… इसमें एक-एक रुपये के सिक्के हैं। बूढ़े ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा।
उसने सुना तो सोचा, होंगे मुझे क्या? मुझे तो अपनी मजदूरी से मतलब है। ये सिक्के भला कितने दिन चलेंगे? तभी उसने देखा कि बूढ़ा उस पर नजर रखे हुए है। उसने सोचा कि ये बूढ़ा अवश्य ये सोच रहा होगा, कहीं ये भाग तो नहीं जाएगा। पर मैं तो ऐसी बेईमानी और चोरी करने में विश्वास नहीं करता। मैं सिक्कों के लालच में फँसकर किसी के साथ बेईमानी नहीं करूँगा।
चलते-चलते आगे एक नदी आ गयी। वह तो नदी पार करने के लिए झट से पानी में उतर गया, पर बूढ़ा नदी के किनारे खड़ा रहा। उसने बूढ़े की ओर देखते हुए पूछा- क्या हुआ? रुक क्यों गए?
बूढ़ा व्यक्ति हूँ। मेरी कमर ऊपर से झुकी हुई है। दो-दो गठरियों का बोझ नहीं उठा सकता…. कहीं मैं नदी में डूब ही न जाऊँ। तुम एक गठरी और उठा लो। मजदूरी की चिन्ता न करना, मैं तुम्हें एक रुपया और दे दूँगा।
ठीक है लाओ।
पर इसे लेकर कहीं तुम भाग तो नहीं जाओगे?
क्यों, भला मैं क्यों भागने लगा?
भाई आजकल किसी का क्या भरोसा? फिर इसमें चाँदी के सिक्के जो हैं।
मैं आपको ऐसा चोर-बेईमान दीखता हूँ क्या? बेफिक्र रहें मैं चाँदी के सिक्कों के लालच में किसी को धोखा देने वालों में नहीं हूँ। लाइए, ये गठरी मुझे दे दीजिए।
दूसरी गठरी उठाकर उसने नदी पार कर ली। चाँदी के सिक्कों का लालच भी उसे डिगा नहीं पाया। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद सामने पहाड़ी आ गयी।
वह धीरे-धीरे पहाड़ी पर चढ़ने लगा। पर बूढ़ा अभी तक नीचे ही रुका हुआ था। उसने कहा-आइए ना, फिर से रुक क्यों गए? बूढ़ा व्यक्ति हूँ। ठीक से चल तो पाता नहीं हूँ। ऊपर से कमर पर एक गठरी का बोझ और, उसके भी ऊपर पहाड़ की दुर्गम चढ़ाई।
तो लाइए ये गठरी भी मुझे दे दीजिए भले ही और मजदूरी भी मत देना।
पर कैसे दे दूँ? इसमें तो सोने के सिक्के हैं और अगर तुम इन्हें लेकर भाग गए तो मैं बूढ़ा तुम्हारे पीछे भाग भी नहीं पाऊँगा।
कहा न मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ। ईमानदारी के चक्कर में ही तो मुझे मजदूरी करनी पड़ रही है, वरना पहले मैं एक सेठजी के यहाँ मुनीम की नौकरी करता था। सेठजी मुझसे हिसाब में गड़बड़ करके लोगों को ठगने के लिए दबाव डालते थे। तब मैंने ऐसा करने से मना कर दिया और नौकरी छोड़कर चला आया। उसने यूँ अपना बड़प्पन जताने के लिए गप्प हाँकी।
पता नहीं तुम सच कह रहे हो या…। खैर उठा लो ये सोने के सिक्कों वाली तीसरी गठरी भी। मैं धीरे-धीरे आता हूँ। तुम मुझसे पहले पहाड़ी पार कर लो, तो दूसरी और रुककर मेरी राह देखना।
वह सोने के सिक्कों वाली गठरी उठाकर चल पड़ा। बूढ़ा बहुत पीछे रह गया था। उसके दिमाग में आया, अगर मैं भाग जाऊँ, तो ये बूढ़ा तो मुझे पकड़ नहीं सकता और मैं एक ही झटके में मालामाल हो जाऊँगा। मेरी पत्नी जो मुझे रोज कोसती रहती है, कितना प्रसन्न हो जाएगी? इतनी सरलता से मिलने वाली दौलत ठुकराना भी बेवकूफी है…एक ही झटके में धनवान हो जाऊँगा। पैसा होगा, तो इज्जत-ऐश-आराम सब कुछ मिलेगा मुझे
उसके दिल में लालच आ गया और बिना पीछे देखे भाग खड़ा हुआ। तीन-तीन भारी गठरियों का बोझ उठाए भागते-भागते उसकी साँस फूल गयी।
घर पहुँचकर उसने गठरियाँ खोल कर देखीं, तो अपना सिर पीटकर रह गया। गठरियों में सिक्कों जैसे बने हुए मिट्टी के ढेले ही थे। वह सोच में पड़ गया कि बूढ़े को इस तरह का नाटक करने की आवश्यकता ही क्या थी? तभी उसकी पत्नी को मिट्टी के सिक्कों के ढेर में से एक कागज मिला, जिस पर लिखा था, “यह नाटक इस राज्य के खजाने की सुरक्षा के लिए ईमानदार सुरक्षामंत्री खोजने के लिए किया गया। परीक्षा लेने वाला बूढ़ा और कोई नहीं स्वयं महाराजा ही थे। अगर तुम भाग न निकलते तो तुम्हें मंत्रीपद और मान-सम्मान सभी कुछ मिलता। किन्तु
हम सभी को सचेत रहना चाहिए, न जाने जीवन देवता कब हममें से किसकी परीक्षा ले ले। प्रलोभनों में न डिगकर सिद्धान्तों को पकड़े रखने में ही दूरदर्शिता है।

Pahadan Mamta Rajput
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रिक्शेवाले रामेश्वर ने अपनी सारी जिन्दगी इसी आस पर काट दी कि वो अगर नहीं पढ़ सका तो बच्चों को पढ़ाए….. पत्नी की आकस्मिक मौत के बाद अपने दोनों बच्चों के लिए दूसरी शादी नहीं की जबकि गांव मे अनेकों रिश्तेदारों ने कहा भी और लड़कियों के रिश्ते भी लेकर आए मगर रामेश्वर ने साफ इंकार कर दिया….
दोनो बेटे पढाई में होशियार थे रामेश्वर दिन भर रिक्शा चलाता… शाम को सब्जी बेचता थक हार घर आता सबके लिए रोटी बनाता….
रविवार को कपड़े धोता घर साफ करता…उसका एक ही सपना था दोनों बस बच्चे पढ़ जाएं बुढापा आराम से बैठ कर खाऊंगा….
छोटा बेटा मोहन डिस्ट्रिक्ट में पहले नंबर पर आया…. उसको वजीफा मिल गया उसका डाक्टर बनना आसान हो गया….
जबकि बड़ा बेटा बैंक आफिसर बन गया….सबने पैसा कमाने मे बहुत मेहनत की थी ट्यूशन तक पढ़ाई बच्चों ने…
अब रामेश्वर का मन करता आराम करे…
बूढ़ा और कमजोर हो गया था अब रिक्शा चलाते समय सांस फूलता था….
आखिर उसने रिक्शा चलाना छोड़ दिया….
दिन हंसी खुशी से बीतने लगे छोटा बेटा मोहन डाक्टर बनने लंदन चला गया… वहीं बड़ा बेटा रोहन और रामेश्वर इकट्ठे रहते थे… रोहन के रिश्ते की बात चली लड़की टीचर थी…दोनों साथ पढ़े थे बात आगे बढ़ी और उसकी शादी हो गई… सब ठीक चलता रहा…..
पापा…. जरा सौदा लाना है…..
पापा…. जरा दूध ले आना….
रामेश्वर खुशी खुशी भागा काम करता….
एक दिन की बात है रामेश्वर बहू की सहेलियों के लिए समोसे लेने गया था… रास्ते में सांस फूल गया फिर भी वो तेजी से समोसे लिए घर पहुंच दरवाजे के पास पहुंचा…
तभी उसे बहू की आवाज़ सुनाई दी…
भई ….आजकल नौकर कहां मिलते हैं….
यह तो अच्छा है ससुर जी सारा काम कर देते हैं वरना इतने पैसे में तो मेरी जेब खाली हो जाए….
क्यूं दोनों कमाते हो फिर भी रोती रहती है
सहेली ने कहा….
हां कोठी बनवाना आसान काम नहीं है इतने पैसे कहां से आएंगें….
तभी तो मैं उनको काम के लिए बोलती हूँ मुझ पर जोर भी नहीं पड़ेगा….
वैसे भी खाना मुफ्त का थोड़े आता है जो मै बांटती फिरुं….
अरी शर्म कर …..तेरे ससुर हैं…
तभी तो चुप हूं….. नौकर होता तो चार गालियां भी सुना देती ….ढीलापन देखकर…..
बस इतना सुनते ही रामेश्वर को चक्कर आ गए वो वहां से सीधा निकल गया….रास्ते में एक जानकार को देखकर बोला …. यदि मेरा छोटा बेटा मोहन आए तो बता देना मैं हरिद्वार जा रहा हूं महादेव के पास …. बड़े बेटे रोहन और उसकी पत्नी को मत बताना….. वो हरिद्वार तो चला गया मगर अब भी सदमें में था…. मैं….उसका पापा …..एक नौकर की जगह…..
रोने के लिए आंसू चाहिए पर जो इंसान सदमें में हो रोए कैसे…..
कई महीने बीत गए वो हर शाम गोधूलि के समय आरती में शामिल होता….
चुपचाप देखता और एक मंदिर के बाहर आ सो जाता…आते जाते दानी पुण्नी द्वारा भंडारे में खाकर पेट भर लेता…..
एक रात उसे ठंड लगी और तेज बुखार हो गया… पुजारी जी ने देखा और अस्पताल ले गए….
वहां उसके टेस्ट हुए पता लगा उसे टी बी है….
टीबी हास्पिटल दाखिल करवाया…. बड़े डाक्टर बताएंगे उनके बारे में….
जब बडे डाक्टर साहब आए तो रामेश्वर गुमसुम बैठा था ना खुशी ना दुख….
वो जब पास आए तो रामेश्वर को देख पैरों पर हाथ लगाए
अरे यह क्या कर रहे हो डाक्टर बाबू…. मुझे टी बी है…
पापा मैं आ गया हूँ ना अब कुछ ही महीनों में बिल्कुल ठीक कर दूंगा….रामेश्वर ने ऊपर देखा ….. मोहन ….मोहन बेटा….और फूट फूट कर रोने लगा….
मोहन ने रामेश्वर को सहारा दिया और अपने साथ घर ले गया……
घरपर तमाम सुविधाओं और अच्छी देखभाल से रामेश्वर काफी स्वस्थ हो रहा था
कुछ महीनों बाद जब दुबारा टेस्ट हुए तो वो अब भला चंगा था….
मोहन….बेटा अब मै चलता हूं….
कहां पापा….
वापस….
मगर कयुं…..
बेटा….. कल तेरी शादी होगी फिर तेरी भी घरवाली मुझे नौकर बना कर रखेगी….
पापा….मुझे पता है भैया भाभी का आपके साथ किया सलूक….. मगर जरूरी नहीं हर बेटा और हर बहु ऐसी घिनौनी हरकत करे….
और पापा ऐसा सोचो भी मत मेरे लिए आप ही हो मेरा परिवार है …
मै आपकी आराधना को बेकार नही जाने दूंगा… आप यहां मजे से रहेगे मेरे साथ….और मे ऐसी लडकी से शादी करुंगा जिसे आप चुनेंगे ….बिल्कुल मां जैसी….. जो आपको सम्मान दे आपकी अपने माता पिता की भांति सेवा करे….आप चाहे तो गांव की लडकी से …..
सच बेटा….
हां पापा सच…
दोनो की आंखे भर आई….
आखिर आज रामेश्वर की आराधना सफल जो हो गई थी….!!