साहित्य

वीरांगनाएं पैदा नहीं होती, वीरांगनाएं पैदा की जाती हैं!!

Shikha Singh
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वीरांगनाएं पैदा नहीं होती
वीरांगनाएं पैदा की जाती हैं।
जिस तरह नृत्यांगना पैदा नहीं होती
बानाई जाती हैं।
स्त्री के साहस और उसकी कला को प्रखर करने के लिये पुरुष को भी साथ देना होता है।
जिस तरह अपने मनोरंजन के लिये उसका साथ प्राप्त करते हो तुम ,उसी तरह उसकी कला का और साहस का भी प्रखर करने के लिये उसकी कला में साथ देना चाहिए।
जब एक स्त्री ( माँ ) तुम्हें बड़ा करने और साहस देकर तुम्हारी कला में निपुण करती है उसी के द्वारा ही तुम साहसी बने हो वही ही सिखाती है सब परंतु अपने साहस को भूल जाती है।
कि उसी ने इस कला में निपुण किया है ।
कलाओं को सीखने के लिये तुम्हें कलाकार बनना होगा।
जो तुम हो देखो.?
स्त्रियाँ हमेशा से कठपुतली बनाकर रखने का चलन रहा है स्त्री के हांथ में तलवार लोगों को पसंद नहीं आती ।
उसे ममतामयी स्त्री बनाकर यही दर्जा दिया गया है ।
क्योंकि अपने से आगे आना किसी स्त्री को स्वीकार नहीं कर सकता ।
कभी आगे बढ़ने बाली स्त्री को पित्रसत्ता के अंहकार ने नहीं स्वीकार किया है
निःसंदेह उसे उसकी कलाओ से भटकाने का काम किया गया है
लोग जानते हैं कि वह निपुण है हर कला में मगर उसकी मयान में तलवार पसंद नहीं ।
स्त्री को गुड़िया गुडड़ो का हवाला देकर उलझा दिया गया ताकि उड़ने बाले सपनों से दूर रहे ।
स्त्री के मुकाबले पुरुष काफी कमज़ोर साबित हुआ है वह जानता भी है।
गंभीरता ये है कि समान दर्जा देना उसके बश की बात नहीं, कुछ पुरुष बदलना भी चाहे सामानता के लिये
तो कुछ उस अंहकार को जगा देते हैं।
उसके अंदर जो केवल अपनी सत्ता का ही अंहम लेकर चलते हैं।
उन्हें पता है दोहरे रुप में जीना ।
जैसे मोहम्मदी अपने हु‌नर को दुनिया को दिखाना चाहती है कि मैं भी इस कला में निपुण हो सकती हूँ मेरे पास वो साहस और जज्बा है जो लड़कों में होता है।
कभी स्त्री को यह नहीं सिखाया जाता कि तुम लड़कों की तरह बंदूक या तलवार चलाना सीखो या जिस रास्ते से लड़के निकल रहे हैं उस रास्ते से तुम भी निडर होकर निकलो तुम भी उसी तरह अपना हक जियो जिस तरह लड़कों को जीने का देते हैं।
उन्हें हमेशा घर के काम ही सिखाये जाते हैं क्यों.?
इस अंहकार को स्त्री ही ख़त्म करने में कामयाब हो सकती है अगर वह चाहे उसे बहुत सी कुर्बानी देने को तैयार रहना होगा ।
बहुत सी बुरी प्रथाओं को ख़त्म किया गया है।
उन्होंने भी बहुत सी कुर्बानियां दी है हम सबको भी देनी होगी
कभी परिवार समाज जमीन धन रिश्ते बच्चे प्रेम चरित्र पर सवाल भी सहने पडेंगें ।
मगर इस सब को देने के लिये तैयार” है “कौन कोई नहीं
केवल सबाल किये जाते हैं।
आखिर इतना बड़ा मुद्दा है क्यों बराबरी का ,क्यों ये अंहकार चरम पर है सिर्फ सत्ता और वर्चस्व के लिये केवल इंसान को ही चाहिए ।
तब तो स्त्री वर्चस्व भी जिंदा होना चाहिए डरपोक स्त्री के लिये यह लड़ाईयाँ नहीं हो सकती ।
तुम्हारे स्वतंत्र विचार का विकास तुम कर सकती हो।
स्त्री को ही स्त्री के साथ देना होगा यानी विचारों में स्वतंत्रता लानी होगी अपनी लड़ाई और आज़ादी के लिये बराबरी के लिये ।
स्त्री वीरांगना ऐसे ही नहीं बनी न उस मुकाम को सरलता से हासिल किया ।
लेकिन जिन स्त्रियों ने यह नेपत्थ में अपना हमेशा हांथ आजमाया है उसी में निपुण रहीं है ।
कभी इस भूमिका के बाहर जाने की कोशिश की तो लताड कर बापस कर दिया निजी जिन्दगी में घुट कर जीती रही ।
इस बदलाव के बारे में सोचा ही नहीं कि उनके वर्चस्व को भी उतना ही स्थान दिया जाना चाहिए ।
जिस स्त्री ने अपने को पहचान लिया और साहस के साथ तलवारें उठाई तो वीरांगना बनी और अपना एक नाम जमा दिया आज की स्त्री शिक्षा तो प्राप्त कर रही अधिकार भी छीन रही मगर उस लाडा़ई के लिये साहस नहीं जुटा पा रही वीरांगना बनने के लिये तलवारें भी उठानी पड़ती हैं।
जिस तरह बेगम हज़रत ने उठाई ।
एक थोड़ा सा अंश पड़ा उसी का विवरण सरल भाषा में
अच्छा उपन्यास “बेगम हज़रत ” ।
हार्दिक बधाई वीणा वत्सल सिंह जी 💐
शिखा सिंह….