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विश्व विख्यात मिश्रित नैमिष क्षेत्र की 84 कोसी परिक्रमा करने का क्यों है विशेष महत्व

क्रांतिदूत न्यूज
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विश्व विख्यात मिश्रित नैमिष क्षेत्र की 84 कोसी परिक्रमा करने का क्यों है विशेष महत्व

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मिश्रित नैमिष क्षेत्र की विश्व विख्यात 84 कोसी परिक्रमा मेले का आगाज सोमवार से हो रहा है। जिस में देश के कोने कोने से लाखों की संख्या में साधु संतों व गृहस्थ लोग प्रथम पड़ाव कोरौना पहुंचे। यहां परिक्रमार्थी रात्रि विश्राम करके सुबह तीर्थ पर स्नान कर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित शिव मन्दिर में भगवान शिव के दर्शन के पश्चात अगले पड़ाव हरैया के लिए कूच करेंगे।

भगवान श्रीराम ने नैमिष क्षेत्र के 84 कोस परिधि की परिक्रमा की थी। त्रेतायुग में ही भगवान श्रीराम ने कोरौना में ही अश्वमेघ यज्ञ कराई जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण व स्कन्द पुराण में मिलता है। अश्वमेध यज्ञ के दौरान भगवान श्रीराम कारन्डव वन में एक वर्ष रूके। वहीं महर्षि दधीचि, मनुसतुरूपा ने भी नैमिष क्षेत्र की 84 कोसी परिक्रमा की थी और नैमिष क्षेत्र में तपस्या कर समय व्यतीत किया। नैमिष क्षेत्र में ही 88 हजार ऋषि मुनियों व 33 हजार कोटि देवी देवताओं ने तपस्या की। जिस कारण से नैमिष क्षेत्र 88 हजार ऋषि मुनियों व 33 हजार कोटि देवी देवताओं की पौराणिक तपोभूमि के नाम से जाना जाता है। 84 कोसी परिक्रमा मेला फालगुन माह में 15 दिनों तक चलता है।इस परिक्रमा क्षेत्र में ग्यारह पडाव स्थल है।

प्रथम पडाव स्थल कोरौना, हरैया,नगवा कोथावां, गिरधरपुर उमरारी, साखिन गोपालपुर, देवगवां,मडरूवा, जरिगवां, नैमिष, कुलुहा बरैठी, मिश्रिख पडाव स्थल है। फालगुन मास की एकादसी के दिन मिश्रिख दधीचि तीर्थ पर परिक्रमार्थी पहुंचते है और श्रद्धालु दधीचि तीर्थ की 5 दिनों तक परिक्रमा करने के बाद होलिका दहन के दिन परिक्रमार्थी साधु संत, श्रद्धालु अपने अपने गनतव्य के लिये प्रस्