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विकास शांति से होता है, विनाश में भारी शोर मचता है : देवी सिंह तोमर का लेख

देवी सिंह तोमर
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“विकास में देर लगती है, और विनाश बहुत जल्दी होता है। विकास शांति से होता है, विनाश में भारी शोर मचता है।”
माता-पिता बचपन से बच्चे का विकास करते हैं। “लगभग 20 30 वर्ष लग जाते हैं, एक बच्चे का विकास करने में। इतने वर्षों तक माता-पिता को बहुत तपस्या करनी पड़ती है। तन मन धन लगाना पड़ता है। बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं। फिर भी बच्चे का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता।”
20 30 वर्ष तक मेहनत करने पर उसे भौतिक विज्ञान का तो पता चल जाता है, परंतु आत्मिक विज्ञान का पता नहीं चलता। “क्योंकि उसे आत्मिक विज्ञान विधिपूर्वक कोई सिखाता नहीं। न तो माता-पिता सिखाते। क्योंकि वे स्वयं भी नहीं जानते। न अध्यापक सिखाते, न स्कूल में कोई सिलेबस है। इन सब चीज़ों के अभाव में वह बेचारा अधूरा ही विकसित हो पाता है।”
“उसे आत्मा परमात्मा कर्मफल पुनर्जन्म बंधन मुक्ति आदि विषयों के संबंध में कोई विशेष ज्ञान नहीं होता। थोड़ा बहुत इधर उधर से उड़ती उड़ती बातें वह सुन लेता है। “परंतु वह प्रामाणिक न होने से सत्य ज्ञान नहीं होता। इसलिए उस बच्चे का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता, और वह एक अच्छा मानव नहीं बन पाता।”


इस आध्यात्मिक विज्ञान के अभाव में उसे संसार की वस्तुएं धन सम्मान भोजन फैशन स्त्री आदि आकर्षित करती हैं। “इन सब वस्तुओं से आकर्षित होकर, वैदिक धर्म की मर्यादाओं को ठीक प्रकार से न जानने के कारण, जीवन में वह अनेक प्रकार से भ्रष्ट होता रहता है। झूठ छल कपट चोरी रिश्वत व्यभिचार इत्यादि कर्म करके उसका विनाश हो जाता है।”
“जब कोई इस प्रकार के भ्रष्टाचार आदि की की बड़ी घटना होती है, तब मीडिया के माध्यम से उसका शोर देशभर में और कभी कभी विदेशों में भी मचता है। तब सर्वनाश हो जाता है।”
इसलिए कहते हैं, कि “जब बीज बढ़ता है, उसका अंकुर फूटता है, पौधे का विकास होता है, वह वृक्ष बनता है, तो चुपचाप बढ़ता जाता है।” “लेकिन भरा पूरा 30 फीट का वृक्ष जब कट कर गिरता है, तब भारी शोर होता है।” “इसी प्रकार से जब बच्चे का विकास होता है, तो चुपचाप होता है। और जब विनाश होता है, तो भारी शोर होता है।”
“इस शोर से बचने के लिए अपने बच्चों का समुचित विकास करें। उन्हें भौतिक विज्ञान के साथ-साथ आत्मिक विज्ञान की भी शिक्षा देवें।” यदि आप दे सकते हों, तो ठीक। “अन्यथा वेदों के योग्य विद्वानों के द्वारा अपने बच्चों को वैदिक आध्यात्मिक शिक्षा दिलाने के लिए, गर्मी की छुट्टियों में प्रतिवर्ष उन्हें किसी न किसी आर्य सत्संग अथवा आर्य समाज के शिविरों में भेजें।” “वहां बच्चों को बहुत सी आध्यात्मिक बातें सीखने को मिलेंगी, जिससे उनका समुचित विकास होगा, और वे विनाश से बच जाएंगे।”
— “ये बातें केवल पुरुष बालकों पर ही लागू नहीं होती। बल्कि स्त्री बालकों पर भी लागू होती हैं। अतः दोनों का समुचित विकास करने की आवश्यकता है। वैदिक शास्त्रों और विद्वानों की सहायता से दोनों का सही विकास करें।”