बाबा बकलोल बेनामी
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झोपड़ी के मोहब्बत की दुकान वाले
बचपन से हम भारतीयों को नफरत के लिए कितनी ट्रेनिंग दी जाती है, कितना उसपर मां बाप खर्च करते है, यह मोहब्बत की दुकान वाले व्यापारी क्या जानें। घर मे बाप के घूसखोरी से लाये गए लड्डू में भाई बहनों से उसके बटवारे में जो इर्ष्या द्वेष की खेती उपजनी शुरू होती है, उसे हर पल, हर वक्त घर मे खाद पानी मिलता रहता है। बचपन मे ही बाप जब अपने संपत्ति विवाद में खुद के भाई बहनों को गाली दे रहा होता है तो उससे हमारे नफरत के पेड़ में एक डाली और जुड़ती है फिर वह अपने चचा, ताऊ, बुवा से नफरत करना सीख जाता है। फिर बाप के मरने के बाद संपत्ति के लिए सगे भाइयो, बहनों से नफरत तो उसे विरासत में वसीयत के रूप में मिलती है । अब वह घर से बाहर निकलता है तो अपने से कम आय, कम सुविधाओं वाले मोहल्ले में बसने वाले गैर बिरादरी के हिंदुओं से नफरत करना सीखता है फिर उसी क्रम में मीयों, दलितों, आदिवासियों से नफरत तो हमे बोनस में मिलता है। कैरियर के लिए कम्पटीशन देने जाता है तो आरक्षण के नाम पे सारे पिछडो और दलितों को अपना दुश्मन मानने लगता है। फिर किसी तरह नौकरी मिलती है तो आफिस में वह अन्य बिरादरी के लोगों के साथ प्रोफेशनल कंपटीशन में नफरत करने लगता है। इतने सारे नफरत के माहौल में उसका नफरत अब उसके सिर के ऊपर से गुजरता है तो वह उन नफरत को अपने बच्चों को बांटने लगता है। अब उसके बच्चे उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुवे आगे जाते है, कैरियर ,रोजगार के लिए विदेश जाते है फिर विदेश से नफरत को फंडिंग करने लगते है।
वाह रे नफरत, हाय रे नफरत…
इतना नफरत हमारे डीएनए में भर दिया गया कि अब ये नफरत की खेती को उजाड़ने आ गए झोपड़ी के मोहब्बत की दुकान वाले ..
Ravindra Kant Tyagi
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साहित्य और संस्कृति का मरुथल तो कभी नहीं था मेरा गाँव। स्वांग तमाशे, रामलीलाएं, नटों की कलाबाजियाँ, दंगल और रागिनी।
किन्तु …. किन्तु एक बड़े सांस्कृतिक घालमेल के बाद, गाँव के शहरीकरण के बाद, कृषी से दूर होने और डिजिटल क्रान्ति के बाद कभी कभी दहशत सी होती थी कि नई पीढ़ी, पैसे की चमक दमक में और मद्य के मद में मदांध होकर सभ्यता के इस क्षेत्र को सचमुच बंजर न बना दे।
आज मेरे लिए अत्यंत गर्व और उल्लास का विषय है कि मोनू मधुकर व अजय त्यागी जैसे गलकारों और लेखकों के उदय से मेरे गाँव में भी कविसम्मेलन हो रहे हैं। साहित्य गोष्ठियाँ हो रही हैं और गलज की महफिलें साज रही हैं। लेखन की सुमधुर बयार बह रही है।
Aftab Padhan Dingarpuri
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श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित उन महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। महात्मा गांधी जी के आदर्शों से प्रभावित होकर वे आंदोलन में शामिल हुईं और महिला नेतृत्व की मिसाल पेश की। अंग्रेज सरकार उन्हें जेल में डालती, वे जेल से बाहर आतीं और फिर आंदोलन को आगे बढ़ातीं। विजयलक्ष्मी जी के पति श्री रंजीत सीताराम पंडित जी का जेल में ही देहांत हो गया था लेकिन न वे आंदोलन से पीछे नहीं हटीं, न समझौता किया।
आजादी के बाद विजयलक्ष्मी पंडित जी संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं और हमारे संविधान में महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। महिलाओं को पति और पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार और पंचायती राज व्यवस्था में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। 1953 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया। इस पद पर चुनी जाने वाली वे दुनिया की पहली महिला थीं। इसके अलावा, कई देशों में भारत की राजदूत के रूप में उन्होंने महिला नेतृत्व का झंडा बुलंद किया।
श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन। उनका योगदान देशवासियों को सदैव प्रेरित करेगा।
भारत प्रभात पार्टी
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दुनिया के लगभग सभी विकसित देश अपने लोगों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराते हैं.
इस मामले में जर्मनी टॉप पर है जहां पर सरकारी संस्थानों में उच्च शिक्षा या तो मुफ्त है या फिर नॉमिनल चार्ज देना होता है.
नार्वे में ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट बिल्कुल मुफ्त है.
तमाम अच्छे और प्रगतिशील कानूनों को सबसे पहले लागू करने वाला देश है स्वीडन. यहां भी शिक्षा मुफ्त है. यह सिर्फ नॉन यूरापियन लोगों पर कुछ नॉमिनल चार्ज लगाता है. यहां पीएचडी करने पर आपको बाकायदा सेलरी मिलती है.
आस्ट्रिया में भी शिक्षा मुफ्त है. नॉन यूरोपियन के लिए कुछ नॉमिनल चार्ज है.
फिनलैंड में हर स्तर की शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है, भले ही आप कहीं के भी नागरिक हों. 2017 से इसने नॉन यूरोपियन पर कुछ चार्ज लगाया है.
चेक रिपब्लिक मुफ्त शिक्षा देता है भले ही आप कहीं के भी नागरिक हों.
फ्रांस में उच्च शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है. कुछ पब्लिक विश्वविद्यालयों में नॉमिनल चार्ज लगता है.
बेल्जियम और ग्रीस में भी नॉमिनल चार्ज पर शिक्षा मुहैया कराई जाती है.
स्पेन भी सभी यूरोपीय नागरिकों के लिए फ्री शिक्षा मुहैया कराता है.
इसके अलावा डेनमार्क, आइसलैंड, अजेंटीना, ब्राजील, क्यूबा, हंगरी, तुर्की, स्कॉटलैंड, माल्टा आदि देश स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक, सभी तरह की शिक्षा मुफ्त में मुहैया कराते हैं.
फिजी में स्कूली शिक्षा मुफ्त है. ईरान के सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा फ्री है.
रूस में मेरिट के आधार पर छात्रों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है. फिलीपींस ने 2017 में कानून बनाकर शिक्षा फ्री कर दिया है.
श्रीलंका में स्कूली शिक्षा और मेडिकल फ्री है. थाईलैंड 1996 से मुफ्त शिक्षा मुहैया करा रहा है. चीन और अमेरिका जैसे देश जहां फ्री शिक्षा नहीं है, वे भी इस तरफ आगे बढ़ रहे हैं.
जिन विकसित देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य मुफ्त हैं, वहां की सरकारें और लोग इसे मुफ्तखोरी नहीं कहते. वे इसे हर नागरिक का मूलभूत अधिकार कहते हैं. सबसे बड़ी बात कि वे स्वनामधन्य विश्वगुरु भी नहीं हैं.
ऐसा इसलिए है क्योंकि ये विकसित देश हैं और इनके लोगों का दिमाग भी विकसित है. वे अपने ही विश्वविद्यालयों में काल्पनिक गद्दार नहीं खोजते. वे अपने विपक्षियों और आलोचकों को देश का दुश्मन नहीं मानते .!!