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वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने केन्द्र सरकार का फ़ैसला ठुकराया, अटार्नी जनरल की थी पेशकश!

भारत के वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उन्होंने भारत का अगला अटॉर्नी जनरल बनने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। रोहतगी ने बताया कि उनके फ़ैसले के पीछे कोई ख़ास वजह नहीं है।

केंद्र ने 91 वर्षीय मौजूदा अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की जगह लेने के लिए इस महीने की शुरुआत में रोहतगी को पेशकश की थी। वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितम्बर को समाप्त होगा।

रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक अटॉर्नी जनरल थे। उनके बाद वेणुगोपाल को जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था। उन्हें 29 जून को देश के इस शीर्ष विधि अधिकारी के पद के लिए फिर तीन महीने लिए नियुक्त किया गया था।

केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि वेणुगोपाल ने व्यक्तिगत कारणों से अपनी अनिच्छा जताई थी लेकिन 30 सितम्बर तक पद पर बने रहने के सरकार के अनुरोध को उन्होंने मान लिया था।

वरिष्ठ वकील रोहतगी भी उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पैरवी कर चुके हैं। पहले ऐसा कहा जा रहा था कि उन्होंने अटॉर्नी जनरल बनने के सरकार के अनुरोध के प्रति इच्छा जताई थी, लेकिन अब उन्होंने अखबार को बताया कि उन्होंने दोबारा विचार करने के बाद यह फैसला लिया है।

ज्ञात रहे कि दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अवध बिहारी रोहतगी के बेटे मुकुल रोहतगी को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1999 में अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया गया था।

उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार की पैरवी की थी। जज लोया की मौत से जुड़े मामले में रोहतगी को विशेष अभियोजक नियुक्त किया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया मौत की जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।

वे गोधरा दंगों के दौरान मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी द्वारा दायर याचिका के विरोध में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी की ओर से पेश हुए। (