साहित्य

लैंगिक भूमिकाएँ और रूमानी खाँचें

शोभा अक्षर
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लैंगिक भूमिकाएँ और रूमानी खाँचें
अधिकतर लोग रोमांस में अंतरंग होने से इसलिए घबराते हैं कि कहीं अभी तक उनका एक दूसरे की नज़रों में बना कंडीशंड स्त्रियोचित या पुरुषोचित व्यक्तित्व का किला भर-भरा कर ना गिर जाए! मसलन जिन गुणों से दो लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे वे अंतरंग होने पर क्षणिक और भ्रामक लगें!अंतरंगता सबसे पहले बाहरी-ऊपरी पहचान को हटाकर अंदरूनी भले ही कंडीशंड व्यक्तित्व, से रूबरू कराता है।

पितृसत्ता तो अवचेतन में भी भय पैदा करती है, वह डर इन निरर्थक बातों से भी घबराहट पैदा करता है जैसे, अंतरंग होने पर शरीर में चर्बी कहाँ-कहाँ से कितनी निकली है, यह पता चल जाएगा! मेकअप के बिना जो चेहरा है, उसकी बनावट, रंग आदि कहीं सब बिगाड़ न दें! कोई आदत या हरकत सामने हो गई तो कलई खुल जाएगी! मसलन रूमानी खाँचें में जो सब फिट कर ढका हुआ था, उसके ऊपर का पर्दा कहीं हट गया तो! तो, ऐसे भय वाला संबंध चाहिए क्यों? यहीं, रूमानी जुनून बल्कि प्रेमांधता (infatuation)में अधिकतर लोग ख़ुद के आत्म-प्रेम (सम्मान) को दरकिनार कर, अपमानजनक व्यवहार स्वयं के लिए ख़ुद चुन लेते हैं।

दूसरा, अंतरंग हो कर यह आज़माना कि इसकी लैंगिक भूमिका, गर्ल फ्रेंड/बॉयफ्रेंड या विवाहयोग्य है कि नहीं! मसलन, पुरुष के संदर्भ में कि पैसा वाक़ई ठीक-ठाक कमाता है कि नहीं! समाज में साथ ले जाने पर मैस्कुलिनिटी होल्डर बॉडी लैंग्वेज देगा या नहीं। तलाक होने पर या अलग होने पर कम से कम एलिमनी ठीक-ठाक मिलेगी या नहीं! या नाम तो बड़े के साथ जुड़े, छोटा-मोटा नाम तो नहीं है! स्त्री है तो सुंदर बने रहने के लिए दिन-रात के रूटीन में ब्यूटी प्रोडक्ट शामिल है या नहीं। सेक्स के दौरान निर्धारित स्त्री वाले लुभावनी अदाओं से लैस है या नहीं! घर-गृहस्थी में दक्ष है या नहीं! सामाजिक एक्सेप्टेंस में कोई कमी तो नहीं आयेगी। मसलन दोस्त लोग हॉट आइटम झपटाया है, ऐसा बोलेंगे या नहीं! घर वाले मालदार और काम-काज में संपन्न है, इसकी पुष्टि करेंगे या नहीं! आदि-आदि। तो, यह तो इंटीमेट होना हुआ भी नहीं!!

अंतरंगता आत्म-प्रेम है, जहाँ रोमांस की उत्कटता हमेशा बनी रहती है।
मगर थोपी हुई लैंगिक भूमिकाएं क्या वाक़ई असल में दो लोगों को एक-साथ आज़ादी को महसूस करने में सहायक होती हैं?
क्या सामाजिक बंधनों से अधिक ख़ुद के कंडीशंड बंधन हमें बार-बार उसी वन में पहुँचा देते हैं, जिसका ज़िक्र दांते ने किया था, “हम परछाइयों से घिरे एक वन में पहुँच जाते हैं- वह वन जो बहुत सघन और दुर्गम है।”

कभी-कभी सोचती हूँ, जिस सोशल कैपिटल को हम सब ढो रहे हैं वह हमें इतनी प्यारी क्यों लगती है, वो तो इतनी बार मारती है जितना शायद जीना भी नहीं है।

स्त्रीद्वेष और इनसान विरोधी, प्रेम और शांति विरोधी पूंजी!!
संदर्भ : रेखा का एकतरफा प्यार पर कथन (द कपिल शर्मा शो) और अतुल सुभाष की आत्महत्या, अन्य आत्महत्याएं

– Shobha Akshar