साहित्य

लेखक, संजय नायक ‘शिल्प’ की====कहानी “मरीज़” क़िश्त- 2, पढ़िये!

संजय नायक ‘शिल्प’
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कहानी “मरीज” किश्त- 2
इतने में उसकी जाग खुल गयी , देखा दीदी उसे जगा रही है, “सौरभ क्या हुआ आज सोफे पर ही सो गए कॉलेज के पहले ही दिन थक गए क्या”

“नहीं दीदी थक नहीं गया , आज घटना ही ऐसी हुई कि सोचते सोचते ही नींद आ गयी” कह सौरभ ने सारी कहानी बयां कर दी ।

इतने में उनकी डोरबेल बज उठी । दीदी ने दरवाजा खोला तो उस लड़की की मम्मी आई थी उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा था और वो दोपहर में हुई घटना को लेकर शर्मिंदा थी । वसुधा ने उन्हें समझाया कि वो केवल एक गलतफहमी थी और गलतफहमी किसी को भी हो सकती है । बातों बातों में पता चला लड़की का नाम संजना है और वो हिंदी साहित्य की स्टूडेंट है|

रोज़ कालेज में और बस में संजना सौरभ की नजरों से बचने की कोशिश करती मगर लाख कोशिश के बावजूद भी वो अपने आप को सौरभ के सामने आने से रोक न पाती । दिन बीत रहे थे रोज दोनों का सामना होता और नजरे मिलती और झुक जाती । एक दिन संजना की माँ एक मिठाई का डिब्बा लेकर आई पता चला संजना का जन्मदिन था । दोनों परिवारों का आपसी मेलजोल इतना ही था कि किसी वार त्यौहार पर या विशेष मौके पर मिठाई के डिब्बे का आदान प्रदान होता था । सौरभ का परिवार पंजाबी था और वो खाने पीने वाले आदमी थे , जबकि संजना का परिवार शुद्ध सात्विक ब्राह्मण परिवार था । दोनों परिवारों में चौके के किसी खान पान का आदान प्रदान न था । उस दिन संजना के जन्मदिन पर वसुधा ने संजना को एक खूबसूरत पायल का जोड़ा गिफ्ट किया ।

वो पायल संजना इतनी पसंद आई की वो रोज़ कॉलेज उस पायल को पहनकर जाने लगी । एक दिन बस में चढ़ते वक्त संजना की एक पायल गिर गई । सौरभ जो कि बस में सबसे आखिर में चढ़ा था, उसकी नज़र उस पायल पर पड़ गई । कॉलेज से वापसी में सौरभ ने बस में चढ़ते वक्त वो पायल संजना को थमाई और कहा “लीजिये आपकी पायल , जब संभाल कर नहीं रख सकती तो पहनना बंद कर दीजिये |”

संजना ने ये कहते हुए पायल लेने से इनकार कर दिया “यह पायल अब आप रखिये समझे और याद रखना कि किसी अमीर से पाला पड़ा था जब जब आप पायल देखेंगे आपको हमारी दरियादिली याद आएगी ।”

उसने अपने सिराहने के नीचे हाथ दिया और वहां से वो एक पायल निकाली । उसकी आँखें भीग गईं और उसने आँखें बंद कर लीं । उसका बदन बहुत तप रहा था और सर फटा जा रहा था । उसे वो दिन याद हो आया था जब उसकी तबियत बहुत खराब थी । उसके जीजाजी टूर पर बाहर गए थे और दीदी की उस दिन जरुरी मीटिंग थी। दीदी को मज़बूरीवश जाना पड़ रहा था उसने संजना की माँ से कहा कि वे थोडा सौरभ का ध्यान रखें , मैं मीटिंग ख़त्म होते ही आ जाउंगी ।

उस दिन संजना की माँ को काम ज्यादा था तो संजना की माँ ने उसे कहा कि जरा सौरभ को संभाल आये । जब संजना सौरभ को सँभालने गई तो बोली “क्यों मरीज बाबू अब तबियत कैसी है , बुखार उतरा कि नहीं ? ”
सौरभ ने भी छेड़ा “काश आप इसी तरह सँभालने आती रहें तो हम चाहते हैं कि रोज़ रोज़ बीमार पड़ते रहें ।”

“आये मेरा ठेंगा , वो तो माँ ने जबरदस्ती भेज दिया वरना कभी न आते हम, अब जाते हैं राम राम । ”और कहकर दरवाजे के पास जाकर पलटकर बोली “आप मुझे बीमार अच्छे नहीं लगते जल्दी ठीक हो जाइये ना, कोलेज सूना सूना लगता है आपके बिना ।” कहकर झट से दरवाजा भेड़ कर भाग गई ।

शाम को संजना फिर अपनी माँ के साथ आई सौरभ को सँभालने वसुधा भी आ गयी थी ऑफिस से। संजना बोली “वसुधा दीदी आपके भाई क्या यूँ ही बीमार पड़े रहते हैं रोज-रोज ? ”
“चुप पगली ये भी कोई मजाक की बात है ?” संजना की माँ ने डांटा।

“नहीं संजना की मम्मी ! कोई बात नहीं , वैसे तो संजना ठीक ही कह रही है। सौरभ की रोग प्रतिरोधक क्षमता बचपन से ही कमजोर है । यह बीमार बहुत जल्दी हो जाता है और ठीक होने में भी इसे समय ज़्यादा लगता है । अगर ये बारिश में भीग जाता है तो भी बुखार आ जाता है इसको ।”वसुधा बोली, यह सुन संजना का मुँह उतर गया।
उस दिन के बाद संजना सौरभ को लेकर थोड़ी संजीदा हो गई थी। हाँ उसने अपनी एक आदत में कोई बदलाव न लाई, सौरभ कॉलेज की फुटबाल टीम का कैप्टन था और कॉलेज के बाद हमेशा फुटबाल प्रैक्टिस के लिए रुक जाता था । इसलिए वसुधा दीदी रोज़ उसका टिफिन बना कर देती थी और संजना भी रोज़ अपना टिफिन ले जाती थी , तो यदा कदा इस बहाने से सौरभ के टिफिन से कुछ न कुछ खा लेती थी कि आज टिफिन में या तो खाना अच्छा न आया या सहेलियां उसके टिफिन का खाना खा गई तो भूख़ लगी है और सौरभ केवल मुस्कुरा कर रह जाता था ।
सौरभ को अंग्रेजी उपन्यास पढने का बहुत शौक था । एक दिन वह लायब्रेरी में बैठा आर्थर कानन डायल के ‘शेरेलोक होम्स’ का उपन्यास पढ़ रहा था ।

तभी संजना वहां आ धमकी और पीठ पीछे खड़ी हो गयी “ओह तो साहब अंग्रेजी उपन्यासों के दीवाने हैं वो भी जासूसी , वैसे आपको कोई हिंदी लेखक पसंद नहीं क्या प्रेमचंद , निराला या भारतेंदु जैसे । ” संजना बोली
“नही संजना ऐसी कोई बात नहीं है , पर मैंने ऐसी कोई किताब पढ़ी नहीं जो दिल तक पहुंचे और उसे हमेशा पास रखने का मन करे |” सौरभ ने कहा “अच्छा यह बात है तो ठीक है हम आपको एक ऐसी किताब देंगे जिसे आप हमेशा न केवल अपने पास रखेंगे बल्कि संभालकर भी रखेंगे |” संजना ने कहा और मुस्कुराते हुए चल दी |

क्रमशः
संजय नायक”शिल्प”