साहित्य

लेकर साथ बसंत गए तुम, पीछे इक बरसात छोड़ दी……©️अंकिता सिंह

Ankita Singh
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छूट गयी है घड़ी तुम्हारी
भाग-दौड़ में यहीं मेज़ पर
शायद, मेज़पोश पर तुमने
अपनी बीती रात छोड़ दी!
नज़र घड़ी पर टिकी हुई पर,
मुझे समय का ध्यान नहीं है
जिसकी टिक – टिक – टिक से मेरी
नयी – नयी पहचान नहीं है ।
लगता है फिर घहराएँगे, यादों के घन सघन हृदय पर
यूँ कर, रात न छोड़ी तुमने, किस्तों में सौगात छोड़ दी !
पहले मुझको नहीं पता था
ब्राण्ड व्राण्ड का अंतर – वंतर ।
चेन – घड़ी का ब्राण्ड देखकर
लगा कि ये है ज़्यादा बेहतर ।
सीधा-सादा मन है मेरा, इसीलिए दिलचस्पी कम थी
आज शांत मन सोच रहा पर, अच्छी तुमने बात छोड़ दी !
इसकी सुई घूम कर जैसे
एक जगह पर वापस आती ।
वैसे याद घूम कर दिल के
भीतर आती, मुझे रुलाती ।
तुमने नए कैलेंडर से बस, दो पल मेरे नाम किया है
लेकर साथ बसंत गए तुम, पीछे इक बरसात छोड़ दी!
©️अंकिता सिंह