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रूस-यूक्रेन के बीच शांति क़ायम करा पाएगा सऊदी अरब : रिपोर्ट

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रूस-यूक्रेन युद्ध में निष्पक्ष दिखने की कोशिश कर रहा सऊदी अरब अब अपने यहां इस पर शांति सम्मेलन करने की योजना बना रहा है.

सम्मेलन में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की शांति योजना पर चर्चा होगी. इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, मेक्सिको, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत 30 देश हिस्सा लेंगे.

ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स के सदस्य हैं.

यूक्रेन के राष्ट्रपति के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ एंद्रेई यरमक ने कहा है कि सम्मेलन में बातचीत यूक्रेन के दस सूत्रीय फॉर्मूले पर होगी.

सम्मेलन के बारे में सबसे पहले ख़बर देने वाले वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यूक्रेन की शांति योजना से जुड़े राजनयिकों के हवाले से कहा है कि ये बातचीत पांच और छह अगस्त को होगी.

सम्मेलन में जे़लेंस्की खुद मौजूद रह सकते हैं ताकि वो इसमें हिस्सा ले रहे देशों के नेताओं पर यूक्रेन के समर्थन के लिए दबाव डाल सकें.

रूस-यूक्रेन के युद्ध ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी है. इसने दुनियाभर की अर्थव्यवस्था और सप्लाई चेन को बुरी तरह नुक़सान पहुंचाया है.

रूस ने यूक्रेन पर ऐसे वक्त हमला किया जब, कोविड से बुरी तरह चोट खाई ग्लोबल अर्थव्यवस्था में रिकवरी दिखनी शुरू ही हुई थी.

यही वजह है कि इस संकट को खत्म करने के लिए तुर्की, चीन, इसराइल और डेनमार्क जैसे देश शांति समझौते का प्रस्ताव दे चुके हैं.

तुर्की रूस और यूक्रेन के बीच अनाज निर्यात से जुड़ा समझौता करा चुका है.

वहीं चीन रूस-यूक्रेन के बीच बातचीत कराने का ऑफर दे चुका है. ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने के बाद चीन का कूटनीतिक आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है.

यहां तक कि उसने वर्षों पुराने मसले में इसराइल और फ़लस्तीन के बीच समझौता कराने की पहल की है.

सऊदी अरब के लिए मौका

पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुध्रवीय विश्व व्यवस्था पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. और इस नई विश्व व्यवस्था के नए दावेदार उभर रहे हैं.

तुर्की, चीन, भारत, ब्राज़ील की तरह अब सऊदी अरब भी खुद को अहम खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करने में लगा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध ने सऊदी अरब को इसका मौका दे दिया है. देश खुद को नई ताकत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया की चिंता काफी बढ़ा दी है. लगभग हर देश इससे प्रभावित है.\

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ऊर्जा और खाद्य संकट के साथ ही राजनयिक संकट भी बढ़ रहा है. ग्लोबल चिंता बढ़ रही है. यही वजह है कि इसराइल, तुर्की, डेनमार्क और चीन जैसे देश रूस-यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता का ऑफर दे चुके हैं.

ऐसे में सऊदी अरब की पहल को कैसे देखा जाए? रूस-यूक्रेन के बीच शांति के लिए वो क्यों पहल कर रहा है. इसके ज़रिये वो क्या साबित करना चाहता है.

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर के फ़ेलो और मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान कहते हैं, “सऊदी अरब की छवि अब खुद में सिमटे देश की नहीं है. क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान के सत्ता में आने के बाद सऊदी अरब अपनी छवि को डाइवर्सिफाई करने की कोशिश कर रहा है. अब वो विश्व राजनीति और कूटनीति में बड़ी भूमिका और बड़े डिफेंस डील की बात कर रहा है. अपनी फॉरेन पॉलिसी को वो और विस्तार देने की बात कर रहा है.”

”रूस और यूक्रेन के बीच शांति की पहल कर वो ये संदेश देना चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर वो बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है.’’

सऊदी अरब अपने आसपास के देशों और अंतरराष्ट्रीय स्तर दोनों जगह अपनी बढ़ती भूमिका का अहसास कराना चाहता है.

सऊदी अरब देख रहा है कि तुर्की और क़तर जैसे देश अपनी सॉफ्ट रिलिजियस पावर का इस्तेमाल बखूबी कर रहे हैं. तुर्की, क़तर जैसे देशों से उसका गठजोड़ हो चुका है. लेकिन इन तीनों के बीच एक तरह की प्रतिद्वंद्विता भी है.

क़तर ने अमेरिका और तालिबान के बीच सौदेबाज़ी करवाई. उसने हमास और फ़तह के बीच बातचीत में भी मध्यस्थता की.

यूएई और ईरान के अलावा मिस्र और तुर्की के बीच बातचीत में भी क़तर की अहम भूमिका थी. अब सऊदी अरब को भी लग रहा है कि एक उभरती ताकत के तौर पर वो भी कोई बड़ा समझौता कराए.

पिछले दिनों उसने रूस और यूक्रेन के बीच बिज़नेस स्वैप में अहम भूमिका निभाई थी. यूक्रेन में रूस के बंधक बनाए गए बच्चों को भी छुड़ाने की कोशिश कर रहा है.


ब्रिक्स को इतनी अहमियत क्यों?
अरब दुनिया के किसी भी संकट में अब तक अमेरिका मध्यस्थता कराता था. लेकिन अब सऊदी अरब अमेरिका पर पिछले 60-70 की निर्भरता को खत्म करना चाहता है. वो ये बताना चाहता है कि उसकी फॉरेन पॉलिसी अब उसकी बंधक नहीं है.

सऊदी अरब हर उस जगह पहुंचना चाहता है जहां से वो अमेरिका को संदेश दे सके कि वो अब उस पर निर्भर नहीं है. सऊदी अरब ने अपने यहां होने वाले सम्मेलन में ब्रिक्स देशों को खासी अहमियत देता दिख रहा है.

फ़ज़्ज़ुर रहमान कहते हैं, “सऊदी अरब अब ब्रिक्स की भी सदस्यता लेना चाहता है. वो एससीओ का डायलॉग पार्टनर है. ओपेक प्लस में उसने जिस तरह से रूस का साथ दिया है और तेल उत्पादन में कटौती की है. उसने ये दिखा दिया है कि सऊदी अरब बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाने के लिए कितना तत्पर है. दूसरी ओर उसने यूक्रेन का भी साथ दिया है.”

”उसे पता है कि नई वैश्विक व्यवस्था में रूस और चीन दो वैकल्पिक ताकत के तौर पर उभर रहे हैं. यही वजह है कि वो ब्रिक्स को तवज्जो दे रहा है. रूस और चीन दोनों ब्रिक्स के अहम सदस्य हैं.”

फ़ज़्ज़ुर रहमान कहते हैं, “जिस तरह चीन ने ईरान और सऊदी अरब का समझौता कर एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी हासिल की है ठीक उसी तरह की सफलता सऊदी अरब भी चाहता है. अगर सऊदी अरब में होने वाले सम्मेलन में यूक्रेन और रूस के बीच कोई समझ बनती है तो वो सऊदी अरब की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी.’’

विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब ने अपनी विदेश नीति में बड़ी तब्दीली की है. पहले वो क्षेत्रीय मुद्दों को तवज्जो देता था.

ओआईसी अरब लीग, यूनाइटेड नेशन जैसे मंचों को छोड़कर वो दूसरे मंचों पर कम ही हिस्सा लेता था. लेकिन अब वो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़े रोल चाहता है.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफ़ेसर मुदस्सर क़मर कहते हैं, ”ये सऊदी अरब की बढ़ती महत्वाकांक्षा की निशानी है. वो अब एक मिडिल पावर के तौर पर उभरना चाहता है. वो जी-20 का सदस्य है. ब्रिक्स का सदस्य बनना चाहता है. एससीओ का डायलॉग पार्टनर है.”

”दरअसल वो भी अपनी विदेश नीति में भारत की तरह स्ट्रैटेजिक अटॉनोमी का तत्व जोड़ना चाहता है. सऊदी अरब अब विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभाना चाहता है और यूक्रेन युद्ध ने उसे ये मौका मुहैया करा दिया है.”

”सऊदी अरब बहुध्रुवीय विश्व के समर्थक और वैश्विक मंच पर मज़बूत हस्तक्षेप करने वाले देश की तरह दिखना चाहता है. वो अपनी विदेश नीति को लगातार विस्तार दे रहा है. एक ग्लोबल पावर के तौर पर अपनी पहचान बनाने के लिए सऊदी अरब ने पूरी ताकत झोंक दी है.’’

रूस-यूक्रेन के बीच शांति कायम करा पाएगा सऊदी अरब

मुदस्सर कहते हैं, ”शांति रूस और यूक्रेन पर निर्भर है. लेकिन अब तक दोनों देशों का जो रुख है उससे लगता नहीं कि दोनों लड़ाई रोकेंगे.”

यूक्रेन रूस से उसके कब्ज़े वाली जगहों से पीछे हटने को कह रहा है. तभी वो बात करेगा. वहीं रूस कह रहा है कि यूक्रेन ज़मीनी हकीकत स्वीकार करे तभी समझौते की कोई पहल होगी.

इसके बावजूद दोनों देशों के बीच शांति की इस पहल में सऊदी अरब के अपने दो अहम हित जुड़े हैं.

मुदस्सर कहते हैं, ”सऊदी अरब के लिए खाद्य सुरक्षा बेहद ज़रूरी है क्योंकि वो यूक्रेन और रूस से बड़ी मात्रा में अनाज मंगाता है.”

इसलिए रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम होती है तो खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर उसकी चिंता खत्म हो जाएगी.

सऊदी अरब का दूसरा बड़ा हित उसके तेल कारोबार से जुड़ा है. रूस के साथ उसकी नज़दीकी उसके तेल कारोबार को और मज़बूती देगा.

रूस के साथ खड़े होने से वह अमेरिकी तेल लॉबी भी चुनौती दे सकेगा.

रूस और यूक्रेन के बीच शांति की ये पहल अगर बहुत ज्यादा कामयाब न भी रही तो भी ये वैश्विक मंच पर सऊदी अरब की छवि को मज़बूत ही करेगा.

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दीपक मंडल
पदनाम,बीबीसी संवाददाता