दुनिया

रूसी-यूक्रेन युद्ध के असली विजेता तुर्किये के राष्ट्रपति ”तय्यप एर्दोगन” हैं? पढ़ें ख़ास रिपोर्ट

24 फरवरी 2022 को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तब इस हमले की तैयारियां पहले से ही पूरा कर ली गयीं थीं, चीन में हुए विंटर ओलम्पिक खेलों की वजह से ये जंग दो महिना देर से शुरू हुई थी, चीन के अंदर विंटर ओलम्पिक खेलों के दौरान वहां अनेक देशों के राष्ट्र अध्यक्ष पहुंचे थे लेकिन चीन के राष्ट्रपति ने तब सिर्फ पुतिन, इमरान ख़ान, तय्यप एर्दोगन से one-to-one मुलाकात की थी, यूक्रेन जंग का ख़ाक़ा उस वक़्त तैय्यार कर लिया गया था, रूस को अपने सहयोगियों/दोस्तों से जो भरोसा और मदद चाहिए थी, उसके आश्वासन मिल गए थे, विंटर ओलम्पिक के समापन के कुछ दिनों बाद ही रूस ने अपनी रणनीति के मुताबिक यूक्रेन पर हमला शुरू कर दिया था, मीडिया में तमाम फ़र्ज़ी ख़बरों के चलने का भी सिलसिला पहले दिन से ही शुरू हो गया था, ब्रिटेन, इस्राईल के मददगारों ने मीडिया के ज़रिये रूस के ख़िलाफ़ ख़बरों की मदद से ग़लत पक्ष रखना आज तक जारी रखा हुआ है, हमारे भारत का मीडिया का एक सेक्शन भी है जो बिना ख़बरों की सही पड़ताल किये बिना सोर्स की फ़र्ज़ी ख़बरों को बढ़ा-चढ़ा कर नमक-मिर्च लगाकर दिखाता है, जबकि इनके पास सच्ची खबरें भी रहती होंगी मगर ये दिखाते वोही झूठी ख़बरों को हैं, भारत के कई न्यूज़ चैनल हैं जिन्होंने पिछले दो महिनों के अंदर परमाणु हमले को लेकर सैंकड़ों फ़र्ज़ी खबरें चलाकर ब्रिटेन, इस्राईल के षड्यंत्रों को आगे बढ़ाने का काम किया है, इनकी रिपोर्ट देख कर लगता है जैसा प्रेजिडेंट पुतिन भारत के इन चैनलों के एंकरों से ही सलाह लेकर जंग की योजना बनाते हैं और शायद पुतिन ने परमाणु हमले का ”बटन” इन के स्टूडियो में रखवा दिया है कि आप लोग ही इसे दबा देना

रूस ने यूक्रेन पर हमला, यूक्रेन पर कब्ज़ा करने के लिए नहीं किया था, रूस को हालात का अंदाजा था कि अमेरिका और उसके यूरोपीय सहियोगी उसके खिलाफ किस तरह की घेरा बंदी करना चाहते हैं, पिछले एक दशक के अंदर रूस बहुत शक्तिशाली बन कर उभरा है, रूस ने अमेरिका को कई मोर्चों पर पीछे हटने को मजबूर किया है, अमेरिका, इस्राईल, यूरोप के पैदा किये आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है, अफ़ग़ानिस्तान हो या सीरिया, यमन, ईरान, लेबनान, फ़िलस्तीन, सऊदी अरब, UAE, क्यूबा, फ़िलीपीन, वैनेजुला हर जगह पर रूस ने अपना बड़ा रोल अदा किया और अमेरिका को वहां से न सिर्फ दूर रखा बल्कि अमेरिका को जहाँ-जहाँ वो घुसा हुआ था बाहर निकालने का भी काम किया, अमेरिका और उसके डाकू मित्र देशों को रूस की बढ़ती ताकात से खतरा महसूस हो रहा था, जिसके बाद यूक्रेन को आगे कर अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ कार्यवाहियां करने की प्लानिंग की हुई थी

यूक्रेन को मोहरा बना कर रूस को घेरने की कोशिश करने वाले देश अमेरिका व् यूरोप के सर्वशक्तिशाली, महाशक्तियां आज खुद को इस जंग से बाहर निकालने के लिए फड़फड़ा रही हैं, इनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अब आगे क्या किया जाए, रूस पर दुनियांभर के प्रतिबन्ध लगा देने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा बल्कि रूस की अर्थवयवस्था जंग के दौरान एक दशक के अंदर सबसे मज़बूत होकर उभरी है, अमेरिका, ब्रिटेन इस धरती पर सबसे ज़यादा षड्यंत्कारी देश हैं, इन्हें उम्मीद थी कि यूक्रेन के बहाने ये देश रूस को तोड़ देंगे और उसे दुनियां में अलग-थलग कर देंगे, अब जबकि जंग के 300 दिन पूरे होने वाले हैं अमेरिका समेत उसके हिमायतियों की हालत पतली हो रही है, इनके पास अगर रूस से जंग हो जाती है तो लड़ने या बचाव करने के लिए हथियार तक नहीं बचे हैं, जल्दी-जल्दी में हथियारों को बनवा कर यूक्रेन भेज रहे हैं, जिनकी जाँच या टेस्ट तक नहीं किये जा रहे हैं, उधर रूस ख़ामोशी के साथ जंग को अंजाम तक पहुंचाने में लगा हुआ है, जानकारी के मुताबिक अमेरिका और यूरोप के देशों में बढ़ती महंगाई और ईंधन की कमी की वजह से वहां की जनता सड़कों पर उतर आयी है, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटैन समेत अन्य सभी अमेरिकी सहियोगी देशों में हर रोज़ प्रदर्शन हो रहे हैं, लोग मांग कर रहे हैं कि रूस पर लगे प्रतिबन्ध ख़त्म करो, यूक्रेन की मदद बंद करो,,,जनता के विरोध की वजह से वहां की सरकारें परेशानी में हैं,


जानकारी के मुताबिक अमेरिका और रूस के बीच जंग को ख़त्म करने के लिए बातचीत हो रही है, ये बातचीत तुर्की और फ्रांस की मध्यक्षता में हो रही है, इसमें कोई बीच का रास्ता खोजा जा रहा है, यूक्रेन के राष्ट्रपति को रूस के सामने समर्पण की इस में रूस ने शर्त राखी है, साथ ही भविष्य में यूक्रेन NETO का कभी भी सदस्य नहीं बनेगा, यूक्रेन को सेना रखने की इजाज़त नहीं दी जाएगी, जीते हुए इलाके रूस के ही पास रहेंगे, यूक्रेन क्रीमिया को मान्यता देगा

आने वाले दिनों में मुमकिन है कोई समझौता हो जाये और ये जंग रुक जाए, बता दें कि अमेरिका ने अनौपचारिक रूप से अपने बैंकों को रूस के साथ कारोबार करने को कह दिया है

”’अक्सर लोग ज़हनी तौर पर ताअसुब रखते हैं, जबकि कोई भी देश हो या कोई भी उस देश का साशक, वो उस देश का भला चाहता है, उसे इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि किसी और देश में किस धर्म के मानने वाले लोग रहते हैं, वो किस हाल में हैं, साशक सिर्फ खुद को सत्ता में रखने के लिए जो भी काम हो करते हैं, उनको इस बात से भी कोई परवाह नहीं होती कि उनके अपने देश में कितने लोग मर गए, वो जंग में मारे जायें या कोरोना जैसी किसी बीमारी में, सत्ता और साशक बेरहम/निर्दयी होते हैं, अगर कोई साशक धर्म का चोला ओढ़े रहता है तो वो न केवल निर्दयी होता है बल्कि वो अपनी जनता के साथ ”छल-कपट” भी करता है, मन की बातें करता है मगर सच्ची बात कभी नहीं कहता/सुनता, वो जनता से दूर भागता है, याद रहे ज़ालिम और कर्रप्ट व्यक्ति दुनियां में सबसे बुज़दिल होता है ”’


अब आते हैं यूक्रेन जंग पर, इस जंग में तुर्की के राष्ट्रपति की शुरू से ही अहम् भूमिका रही है, साथ ही जंग का फायदा उठाने वालों में अमेरिका के बाद तुर्की दूसरे नंबर पर है, तुर्की ने यूक्रेन को अपने ड्रोन बेच कर मुनाफा कमाया, उसने रूस के साथ गैस और पेट्रोल को लेकर नए करार कर लिए हैं, तुर्क राष्ट्रपति पुतिन और जेलंस्की की सीधे संपर्क में हैं, वो तुर्की के अंदर इन दोनों देशों की कई दौर की वार्ता का आयोजन कर चुके हैं, हाल में जानकारी के मुताबिक अमेरिका इस जंग को अब ख़त्म करना चाहता है और वो कोई सम्मान जनक समझौता कर के जंग से निकलना चाहता है, सूत्रों के मुताबिक रूस और अमेरिका के मध्य समझौते को लेकर वार्ता एक बार फिर तुर्की में जारी है, इसमें फ्रांस भी शामिल है, वार्ता से ब्रिटेन, जर्मनी को अभी अलग रखा गया बताया जाता है, तुर्की का काला सागर के उन रास्तों पर अधिकार है जहाँ से रूस और यूक्रेन समेत अनेक देशों के मालवाहक गुज़रते हैं, कुछ दिन पहले तुर्की ने रूस और यूक्रेन के मालवाहक पोतों को इस रास्ते से गुजरने पर पाबन्दी लगा दी थी, तुर्की के पास ये अधिकार है कि जंग लड़ रहे देशों का रास्ता वो रोका सकता है, जानकारी के मुताबिक तुर्की ने ऐसा इस लिए किया था ताकि दोनों देश वार्ता की मेज पर साथ आ सकें, फिलहाल जंग रोकने की कोशिशें तेज़ हो गयी हैं, बता दें कि ये वार्ता चीन और जर्मनी के विशेष दख़ल शुरू हुई है….parvez khan

ज़ेलेन्स्की अपने स्टैंड से पीछे हटे, कहा वार्ता का दरवाज़ा बंद नहीं, मास्को से शांति वार्ता हो सकती है

युक्रेन के राष्ट्रपति वोलादमीर ज़ेलेन्स्की ने बयान दिया है कि मास्को के साथ वार्ता के दरवाज़े बंद नहीं हैं वे शांति के लिए रूस से बातचीत कर सकते हैं।

सीएनएन को इंटरव्यू देते हुए ज़ेलेन्स्की ने माना कि मास्को के साथ शांति वार्ता मुमकिन है। उन्होंने कहा कि मैंने दरवाज़ा बंद नहीं किया, मैंने कहा कि हम रूस से बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन अगल रूस से हम शांति वार्ता कर सकते हैं।

सूत्रों का कहना है कि वाइट हाउस ने ज़ेलेन्स्की पर ज़ोर डाला है कि वह मास्को के साथ बातचीत के लिए तैयार हो जाएं क्योंकि अब पश्चिमी देश यूक्रेन के रवैए से तंग आ चुके हैं।

अमरीकी मैगज़ीन पोलिटिको ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सिलवान की युक्रेन यात्रा के कुछ ही दिन बाद ज़ेलेन्स्की के रवैए में बदलाव नज़र आने लगा है। अकतूबर में ज़ेलेन्स्की ने कहा था कि वो रूसी प्रशासन के साथ कोई बातचीत नहीं करना चाहते, मास्को से बातचीत हो सकती है मगर तब जब रूस में नया राष्ट्रपति कमान संभाल चुका हो।

वहीं दूसरी ओर यूक्रेन के रक्षा मंत्री ओलेक्सी रेज़नीकोफ़ ने बयान दिया कि उन्हें नहीं लगता कि युक्रन युद्ध में रूस परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर सकता है क्योंकि यह व्यवहारिक नहीं है।

अमरीका ने यूक्रेन को कोई ब्लैंक चेक नहीं दिया हैः बाइडेन

यूक्रेन युद्ध में हथियारों की मांग को लेकर अमरीकी राष्ट्रपति का कहना है कि हमने यूक्रेन को कोई ब्लैंक चेक नहीं दिया है।

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार की रात संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यूक्रेन के लिए लंबी मारक क्षमता वाले हथियार भेजने के हम विरोधी हैं।

उन्होंने कहा कि जब यूक्रेन ने हमसे युद्धक विमानों की मांग की थी तो हमने इसका नकारात्मक जवाब दिया था। बाइडेन का कहना था कि हम तीसरे विश्व युद्ध में शामिल नहीं होना चाहते हैं। उनका कहना था कि रूसी सीमा के भीतर हर प्रकार के हमले से बचने के लिए हम यूक्रेन को लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले हथियार नहीं देंगे।

अमरीकी राष्ट्रपति ने ख़रसून के हालिया परिवर्तनों के संदर्भ में कहा कि दोनों युद्धरत पक्षों के लिए पुनः समीक्षा का यह एक अच्छा अवसर है। ख़रसून से रूसी सैनिकों के निकलने की ओर संकेत करते हुए बाइडेन ने कहा कि अभी पता नहीं है कि रूस वहां से वापस निकलेगा। इस प्रश्न के जवाब में कि रूस और यूक्रेन की सीमाओं में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की संभावना पाई जाती है।

अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह मुद्दा यूक्रेन पर निर्भर करता है और इस बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वे क्या करें और क्या न करें। बाइडने का कहना था कि कीएफ के भविष्य के बारे में उसकी क्या योजना है इसका हमें कोई पता नहीं है।

क्या अमरीका अब ज़ेलेन्स्की को मजधार में ढकेल कर भागना चाहता है?

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन अपनी लोकप्रियता का ग्राफ़ बुरी तरह नीचे आ जाने की वजह से बौखलाए हुए हैं। जबकि दूसरी तरफ़ युक्रेन की जंग में भी उनकी सरकार नाकाम ही रही। जंग को नवां महीना शुरू होने वाला है और अब तक जो नज़र आ रहा है वह रूस की सैनिक और राजनैतिक कामयाबियां ही हैं।

अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सोलिवान ने इक़रार किया है कि उन्होंने अपने रूसी समकक्ष निकोलाय पैट्रोशेफ़ से बात की ताकि यूक्रेन जंग का दायरा न बढ़े और परमाणु युद्ध का ख़तरा क़रीब न आए। उनके बयान से लगता है कि अमरीका ने धीरे धीरे युक्रेन जंग में अपनी कमज़ोरी स्वीकार करना शुरू कर दिया है और अब शांतिपूर्ण समाधान की तरफ़ बढ़ना चाहता है। इस प्वाइंट पर समाधान का मतलब यह है कि रूस ने जिन भागों का विलय किया है उसे रूस के भाग के तौर पर मान्यता देनी होगी।
राष्ट्रपति पुतीन की परमाणु हमले की धमकी और सारे हथियारों के साथ किए गए रूसी सेना के अभ्यास में उनकी शिरकत साथ ही रूस की तरफ़ से यह बयान कि यूक्रेन डर्टी बम से हमला करने की कोशिश कर रहा है इन सारी चीज़ों ने मिलकर अमरीकी नेतृत्व के रोंगटे खड़े कर दिए।
मास्को के साथ वार्ता का चैनल खोलने पर अमरीका को मजबूर करने वाली एक बड़ी चीज़ जंग के मैदानों में रूस का पलड़ा भारी हो जाना था। हालिया हफ़्तों में रूस ने मिसाइलों और ड्रोन विमानों से हमले करके समीकरणों को बिल्कुल बदल दिया। बहुत सारे लोगों की पानी की सप्लाई कट गई, बिजली की सप्लाई कट गई, इंफ़्रास्ट्रक्चर ध्वस्त होकर रह गया। सर्दी का मौसम भी आ पहुंचा है और लाखों यूक्रेनी नागरिकों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी है।

अमरीका में होने वाले चुनावों के नतीजे युक्रेन और वहां के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की के हित में नहीं हैं क्योंकि मज़बूत स्थिति हासिल करने वाली रिपब्लिकन पार्टी को इस बात पर एतेराज़ है कि अमरीका का बड़ा बजट युक्रेन जंग में स्वाहा होता जा रहा है। अब तक चालीस अरब डालर से ज़्यादा रक़्म ख़र्च हो चुकी है।
वाशिंग्टन पोस्ट ने एक रिपोर्ट में लिखा कि बाइडन प्रशासन ने यूक्रेन के नेतृत्व पर भारी दबाव डाला है कि जंग रुकवाने के लिए रूस के साथ बातचीत का रास्ता खोलें। मगर ज़ेलेंन्स्की ने यह दबाव स्वीकार नहीं किया है और वे जंग से पीछे हटना नहीं चाहते।
ज़ेलेन्स्की को अच्छी तरह पता है कि वे अमरीकी सपोर्ट से ही सत्ता में बने हुए हैं इसलिए आख़िरकार उन्हें अमरीकी दबाव के सामने झुकना पड़ेगा और रूस की शर्तों पर युद्धविराम करना होगा।
जैसे ही सर्दी का मौसम शुरु हुआ है अमरीका और यूरोपीय देश एक एक करे इस जंग से पीछे हटने लगे हैं। अब अगर ज़ेलेन्स्की को यह उम्मीद है कि रूस के भीतर पुतीन के ख़िलाफ़ बग़ावत हो जाएगी या कैंसर की बीमारी में ग्रस्त होकर पुतीन की मौत हो जाएगी तो यह सब उनका भ्रम है। उन्हें भी सबक़ लेना चाहिए कि अमरीका ने क्यों रूस के साथ बातचीत के चैनल खोल लिए हैं।

हम तो लगता है कि जो बाइडन इंडोनेशिया में होने वाली जी 20 की बैठक में पुतीन से मुलाक़ात न करने के अपने एलान से भी पीछे हट सकते हैं। जैसे वे सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात न करने अपने एलान से पीछे हटे थे और रियाज़ की यात्रा पर जाकर बहुत अपमानित होने के बाद वहां से लौटे थे। यह बात हम इस संभावना की बुनियाद पर कह रहे हैं कि हो सकता है कि पुतीन जी 20 की बैठक में हिस्सा लें वरना अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पुतीन इसमें भाग लेंगे या नहीं।
आख़िर में बस यह कहना है कि पुतीन और रूस को झुकाने का पश्चिम का एजेंडा बुरी तरह धराशायी हो चुका है।

अब्दुल बारी अतवान
लेखक अरब जगत के जाने माने लेखक और पत्रकार हैं

==============

क्या एर्दोगन रूसी-यूक्रेनी युद्ध के विजेता हैं?

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने नाटो के विस्तार को अवरुद्ध करने के अपने फैसले को दोगुना करके संकटग्रस्त यूक्रेनी अनाज सौदे को बचाने के लिए आपातकालीन कूटनीति के एक सप्ताह को लपेटा, तुर्की की बारीक बहु-वेक्टर मुद्रा पर एक नया स्पॉटलाइट डालते हुए रूस-यूक्रेनी युद्ध में प्रवेश किया। इसका नौवां महीना।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस सप्ताह की शुरुआत में एर्दोगन को धन्यवाद दिया कि क्रेमलिन ने कहा कि वह समझौते को छोड़ रहा है, इसके तुरंत बाद रूस को यूक्रेनी अनाज निर्यात जारी रखने के लिए एक बहुपक्षीय सौदे में वापस लाया गया। एर्दोगन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मंगलवार को फोन कॉल के बाद उलटफेर हुआ। एर्दोगन ने इस सौदे में फिर से शामिल होने के लिए पुतिन से एक प्रतिबद्धता हासिल की, जिसे जुलाई में तुर्की और संयुक्त राष्ट्र द्वारा दलाली की गई थी, बदले में मास्को की बढ़ती सुरक्षा, राजनीतिक और सैन्य स्लेट के तुष्टिकरण के उद्देश्य से गारंटी के बदले। समझौते से शिकायत

अक्टूबर में एर्दोगन द्वारा घोषणा किए जाने के तुरंत बाद अंकारा का अनाज सौदे का पुनर्जीवन आया कि उन्होंने तुर्की को प्राकृतिक गैस केंद्र में बदलने के पुतिन के पहले के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। तुर्की, एर्दोगन ने अक्टूबर में कहा, प्राकृतिक गैस का भी केंद्र होगा। पिछली बैठक में हम इस मुद्दे पर पुतिन के साथ सहमत हुए थे। हम रूस से तुर्की गैस से यहां हब बनाएंगे। प्रस्ताव के आसपास के तकनीकी विवरणों को रूसी पक्ष द्वारा नहीं बताया गया है, जो सक्रिय रूप से यूरोपीय संघ को ऊर्जा निर्यात में तेज गिरावट के बीच वैकल्पिक गैस मार्गों की तलाश कर रहा है। पिछले हफ्ते एक संवाददाता सम्मेलन में परियोजना के बारे में पूछे जाने पर पुतिन ने एर्दोगन को एक विश्वसनीय भागीदार बताया। तुर्की के साथ काम करना हमारे लिए आसान है। राष्ट्रपति एर्दोगन अपने वचन के व्यक्ति हैं … और हमारे लिए काला सागर को नियंत्रित करना आसान है, उन्होंने कहा।

एर्दोगन ने लगातार और काफी हद तक सफलतापूर्वक खुद को यूक्रेन के युद्ध में एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में तैनात किया है, योग्य तटस्थता की स्थिति का दावा करने के लिए नाटो सहयोगियों के साथ रैंक तोड़ते हुए। हालांकि अंकारा ने बार-बार आक्रमण शुरू करने के लिए मास्को की निंदा की है और पहले यूक्रेन को बायराकर टीबी 2 ड्रोन की डिलीवरी के साथ समर्थन दिया है, तुर्की ऐसे समय में युद्ध को समाप्त करने के लिए एक बातचीत के समझौते के एक मजबूत समर्थक के रूप में खड़ा हुआ है जब कीव और कुछ पश्चिमी देशों द्वारा इस तरह की कॉल की निंदा की जाती है। नेताओं को आक्रामक और अनैतिक बताया। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू ने अगस्त में सुझाव दिया था कि कुछ नाटो देश युद्ध को जारी रखना चाहते हैं, और युद्ध को समाप्त करने के प्रमुख मुद्दे पर अंकारा और कुछ पश्चिमी देशों के बीच दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण अंतर को रेखांकित करते हैं। यूक्रेनी संघर्ष। तुर्की ने पिछले महीने सऊदी अरब में रूस और यूक्रेन के बीच बड़े पैमाने पर कैदी अदला-बदली सौदे की दलाली करके मध्यस्थ के रूप में अपनी शक्तियों को और मजबूत किया।

यहां तक ​​​​कि जब एर्दोगन खुद को युद्ध में मुख्य शक्ति दलाल के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है, तो वह स्वीडन और फिनलैंड से नाटो के प्रस्तावों का विरोध करने वाले कुछ लोगों में से एक के रूप में अपनी स्थिति को दोगुना कर रहा है। अंकारा ने लगभग अकेले ही एक परिग्रहण प्रक्रिया को अवरुद्ध कर दिया है जिसे नाटो प्रमुख जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने पहले आश्वासन दिया था कि वे बहुत जल्दी जाएंगे, उनके प्रस्तावों को राजनीतिक और सुरक्षा मांगों के एक सेट के लिए बंधक बना लेंगे। . एर्दोगन की सूची में अंकारा पर हथियार प्रतिबंध हटाना और तुर्की अधिकारियों द्वारा आतंकवादियों के रूप में वर्गीकृत स्वीडिश और फिनिश नागरिकों का प्रत्यर्पण शामिल है। स्वीडन और फ़िनिश सरकारों ने अंकारा की कुछ मांगों को पूरा करने के लिए अपनी इच्छा का संकेत दिया है, स्वीडन ने हथियार प्रतिबंध हटाने का वचन दिया है, लेकिन दूसरों पर अपनी एड़ी खींच ली है। फ़िनिश अधिकारियों ने कथित तौर पर सितंबर में कहा था, वे उन निर्णयों को अंतिम बताते हुए, तुर्की द्वारा पहले से इनकार किए गए प्रत्यर्पण अनुरोधों को वापस नहीं लेंगे।

कैवुसोग्लू ने इस सप्ताह की शुरुआत में स्टोलटेनबर्ग के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि स्वीडन और फ़िनलैंड को नाटो की अपनी बोली पर अंकारा की आपत्तियों पर काबू पाने के लिए पहले के समझौते के तहत अपने दायित्वों को पूरा करना बाकी है। . एर्दोगन इस मामले पर आगे चर्चा करने के लिए स्वीडन के नए प्रधान मंत्री, उल्फ क्रिस्टर्सन से मिलने के लिए सहमत हुए, लेकिन जोर देकर कहा कि तुर्की अपनी मांगों में संशोधन नहीं करेगा। एबीसी न्यूज के अनुसार, उन्होंने कहा, हमारी स्थिति नहीं बदली है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई समझौता नहीं है और रियायतें देने का हमारा कोई इरादा नहीं है।

ब्लूमबर्ग ने बताया कि मामले से परिचित अधिकारियों का हवाला देते हुए, तुर्की द्वारा वर्ष के अंत तक स्वीडन की नाटो बोली को हरी झंडी दिखाने की संभावना नहीं है। जबकि फ़िनलैंड स्पष्ट रूप से अधिक ठोस स्थिति में है, अंकारा ने एक ही समय में दोनों उम्मीदवारों पर मतदान करने की योजना बनाई है, ब्लूमबर्ग ने कहा। विशेषज्ञों का कहना है कि तुर्की के जून 2023 के आम चुनाव से पहले एर्दोगन के पास हेलसिंकी और स्टॉकहोम पर अपना अनूठा प्रभाव छोड़ने का कोई कारण नहीं है, यह कहते हुए कि अंकारा की दो उम्मीदवार देशों से औपचारिक मांग रियायतों के लिए एक स्मोकस्क्रीन है, जिसमें संभवतः एफ -16 लड़ाकू जेट की बिक्री भी शामिल है। जिसे वह वाशिंगटन से निकालना चाहता है। फिनलैंड और स्वीडन की सदस्यता की पेशकश, वह पश्चिम से कुछ पाने के लिए उन दो सौदेबाजी चिप्स का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है, विश्लेषक इल्हान उजगेल ने वीओए न्यूज को बताया।

इस बात पर व्यापक सहमति है कि एर्दोगन की कुशल अनाज कूटनीति और नाटो पर कड़े संदेश आंशिक रूप से उनकी अनिश्चित घरेलू स्थिति को मजबूत करने के उद्देश्य से हैं, लेकिन काम पर एक गहरी गणना भी है। रूस और पश्चिम के बीच अंकारा की स्थिति एक बहुध्रुवीय दुनिया में संक्रमण में एक महान शक्ति नहीं तो एक अपरिहार्य शक्ति खिलाड़ी के रूप में तुर्की की एर्दोगन की विस्तृत दृष्टि से बात करती है। एर्दोगन की महत्वाकांक्षाएं, जो कई वर्षों से चली आ रही हैं और विचारधाराओं के एक उदार मिश्रण से सूचित हैं, 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से उत्पन्न नहीं हुई थीं। इसके विपरीत, रूसी-यूक्रेनी युद्ध ने अंकारा को आगे बढ़ाने के लिए एक अनुकूल भू-राजनीतिक माहौल बनाया है। एक प्रभावी बहु-वेक्टर विदेश नीति।

एक त्वरित और निर्णायक रूसी जीत ने तुर्की जैसे तटस्थ दलाल की आवश्यकता को समाप्त कर दिया होगा, जैसा कि पश्चिमी नीति निर्माताओं की मास्को के साथ सीधी बातचीत में शामिल होने की इच्छा होगी। संघर्ष की खींची गई प्रकृति, इसके बहुस्तरीय राजनीतिक रंग, और इसके गहरे आर्थिक नतीजों ने तुर्की कूटनीति के लिए अद्वितीय अवसर पैदा किए हैं, और एर्दोगन ने दिखाया है कि वह इसका अधिकतम लाभ उठाने का इरादा रखता है।
मार्क एपिस्कोपोस राष्ट्रीय हित के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर हैं।

(अंग्रेजी से ट्रांसलेटेड)
निचे पढ़ें ओरिजिनल आर्टिकिल

==============

Is Erdogan the winner of the Russian-Ukrainian war?

Turkish President Recep Tayyip Erdogan wrapped up a week of emergency diplomacy to save the beleaguered Ukrainian grain deal by doubling down on his decision to block NATO expansion, putting a fresh spotlight on the nuanced multi-vector posture of Turkey as the Russo-Ukrainian war enters its ninth month.

Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy and US Secretary of State Antony Blinken thanked Erdogan earlier this week for bringing Russia back into a multilateral deal for continued Ukrainian grain exports shortly after the Kremlin said it was leaving the agreement. The reversal follows a Tuesday phone call between Erdogan and Russian President Vladimir Putin. Erdogan secured a commitment from Putin to rejoin the deal, which was brokered by Turkey and the United Nations in July, in return for guarantees aimed at appeasement of Moscow’s growing security, political and logistical slate. grievances with the agreement.

Ankara’s resuscitation of the grain deal came shortly after Erdogan announced in October that he had accepted Putin’s earlier proposal to turn Turkey into a natural gas hub. Turkey, Erdogan said in October, will also be a hub for natural gas. At our last meeting, we agreed with Putin on this issue. We will create a hub here with Turkish gas from Russia. The technical details surrounding the proposal have not been fleshed out by the Russian side, which is actively seeking alternative gas routes amid a sharp drop in energy exports to the EU. Putin hailed Erdogan as a reliable partner when asked about the project at a press conference last week. It is easier for us to work with Turkey. President Erdogan is a man of his word… and it is easier for us to control the Black Sea, he said.

Erdogan has consistently and to a large extent successfully positioned himself as a leading mediator in Ukraine’s war, breaking ranks with NATO allies to assert a position of qualified neutrality. Although Ankara has repeatedly condemned Moscow for launching the invasion and previously backed Ukraine with deliveries of Bayraktar TB2 drones, Turkey has stood out as a strong supporter of a negotiated settlement to end the war at a time when such calls are denounced by Kyiv and some western leaders as offensive and immoral. Turkish Foreign Minister Mevlut Cavusoglu suggested in August that some NATO countries wanted the war to continue, further underscoring a stark difference in approach between Ankara and some Western countries on the key issue of ending the war. Ukrainian conflict. Turkey further bolstered its powers as a mediator by joining Saudi Arabia last month in brokering a massive prisoner swap deal between Russia and Ukraine.

Even as Erdogan strives to establish himself as the main power broker in the war, he is doubling down on his position as one of the few to resist NATO offers from Sweden and Finland. Ankara has almost single-handedly blocked an accession process that NATO chief Jens Stoltenberg previously assured would go very quickly, holding their offers hostage to a set of political and security demands. . Erdogan’s list includes lifting an arms embargo on Ankara and extraditing Swedish and Finnish nationals classified as terrorists by Turkish authorities. The Swedish and Finnish governments have signaled their willingness to meet some of Ankara’s demands, with Sweden pledging to lift the arms embargo, but have dragged their heels on others. Finnish officials reportedly said in September, they will not overturn extradition requests previously denied by Turkey, calling those decisions final.

Cavusoglu told a press conference with Stoltenberg earlier this week that Sweden and Finland had yet to meet their obligations under an earlier agreement overcoming Ankara’s objections to their NATO bids. . Erdogan agreed to meet Sweden’s new prime minister, Ulf Kristersson, to discuss the matter further, but insisted that Turkey not revise its demands. Our position has not changed, he said, according to ABC News. There are no compromises in the fight against terrorism and we have no intention of making concessions.

Bloomberg reported that Turkey is unlikely to greenlight Sweden’s NATO bid by the end of the year, citing officials familiar with the matter. While Finland is apparently on more solid footing, Ankara plans to vote on both candidacies at the same time, Bloomberg noted. Experts say Erdogan has no reason to give up his unique influence over Helsinki and Stockholm ahead of Turkey’s June 2023 general election, adding that Ankara’s formal demands from the two candidate countries are a smokescreen for concessions , possibly including the sale of F-16 fighter jets that it seeks to extract from Washington. Finland and Sweden’s offer of membership, he’s trying to use those two bargaining chips to get something from the West, analyst Ilhan Uzgel told VOA News.

There is broad consensus that Erdogan’s skilful grain diplomacy and tough messages on NATO are partly aimed at cementing his precarious domestic position, but there is also a deeper reckoning at work. Ankara’s position between Russia and the West speaks to Erdogan’s expansive vision of Turkey as an indispensable power player, if not a great power in the transition to a multipolar world. Erdogan’s ambitions, which go back many years and are informed by a eclectic mix of ideologies, were not spawned by the Russian invasion of Ukraine on February 24. On the contrary, the Russian-Ukrainian war has created a favorable geopolitical climate for Ankara to pursue an effective multi-vector foreign policy.

A quick and decisive Russian victory would have obviated the need for a neutral broker like Turkey, as would the willingness of Western policymakers to engage in direct negotiations with Moscow. The drawn-out nature of the conflict, its multi-layered political undertone, and its deep economic repercussions have cultivated unique opportunities for Turkish diplomacy, and Erdogan has shown he intends to make the most of it.
Mark Episkopos is a national security reporter for the National interest.

AFP News Agency
@AFP
·
1h
#BREAKING Russia says it has completed its retreat in Ukraine’s Kherson region

AFP News Agency
@AFP
·
1h
#UPDATE Russia said Friday it had completed its withdrawal of forces from the western bank of the Dnipro river, after Moscow said it had made the “difficult decision” to withdraw as Ukraine advances

Zhang Meifang张美芳
@CGMeifangZhang

China government official
Turkish President Recep Tayyip Erdogan said on Friday that he and President Vladimir Putin have agreed to send Russian grain to food-insecure African countries for free under the Black Sea Grain Initiative.

Amichai Stein
@AmichaiStein1

Turkish President Erdogan sent a congratulatory letter to Israeli Prime Minister-designate Netanyahu to congratulated him: “I believe that the new government will continue the co-op between the countries in all fields, in a way that will bring peace and stability to our region”

NEXTA
@nexta_tv
·
Nov 4
#Turkish President #Erdogan stated that he had agreed with #Putin to supply grain to needy countries free of charge.

Gold Telegraph ⚡
@GoldTelegraph_

Turkey has started paying for some of its natural gas from Russia in roubles.

Remember,

Three weeks ago, the Turkish President said he agreed with Russia to form a natural gas hub in Turkey.

Both countries are stockpiling gold.

Gurbaksh Singh Chahal
@gchahal

JUST IN: #BNNTurkey Reports.

Turkish President Tayyip Erdogan (
@RTErdogan
) said on Friday that he & Russian counterpart Vladimir Putin had agreed that Russian grains shipped under the Black Sea export deal will be given away for free to underprivileged African nations. #Social