साहित्य

रिटायर सरकारी अफ़सर की शक्ल फूफा जैसी निकल आती है

मुकेश नेमा
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फूफा होना रिटायर होना है और रिटायर सरकारी अफ़सर की शक्ल फूफा जैसी निकल आती है ! अफ़सरी जाते ही ,सारी रौनक़ों के साथ साथ सरकारी कार बंगला ,संतरी भी विदा ले लेते हैं।पूरी श्रद्धा से हाँ में मुंडी हिलाने वाले ,जी सर कहने वाले विलुप्त हो जाते है।इसी तरह जब भी जीजा फूफा होता है अचानक नेपथ्य में चला जाता है वो।मेले में खो गया अबोध बालक।दोनों ही परिस्थितियों में आदमी की फूंक सरक जाती है।चारों तरफ़ सन्नाटा होता है और फिर उसे सूझता ही नहीं कि वो एकाएक बदल चुकी ,उसके प्रति अचानक क्रूर हो उठी दुनिया से कैसे पेश आये।

रिटायर अफसर और फूफा।दोनों ही मामलों में आदमी शेव करना और सूट पहनना याद रखता है।पर कंधे झुक जाते हैं उसके ,वो हर ऐरे ग़ैरे आदमी को देखकर मुस्कुराने की कोशिश करता है ।हाल चाल पूछता है उसके ,पर तमाम कोशिशों के बावजूद वो लगातार अकेला होता है।आसमान से गिरता है और ज़मीन उसका इंतज़ार कर रही होती है ! समझदार लोग मान लेते हैं कि अब होनी होकर रहेगी ,ऐसे में वो धीरज बनाये रखते हैं और हिम्मत और हौसले का पैराशूट खोलना नहीं भूलते ! ऐसे में अचानक धक्का नहीं लगता और वो जीवित बने रहते है !

जिस तरह हर सरकारी अफ़सर को पता होता है कि किस दिन नौकरी ख़त्म होगी उसी तरह हर शादीशुदा आदमी को भी यह खबर होती है कि देर सबेर जीजा से फूफा होना है उसे ! पर दोनों ही हालात में आदमी यह भ्रम पाल लेता है कि उसके ठाठ कभी ख़त्म नहीं होंगे और वो उनके मज़े लूटता रहेगा।पर वक्त अपना काम करता ही है और फिर एक दिन अचानक वो पाता है कि उसकी दुनिया लुट चुकी ! नमस्ते और चरणस्पर्श करने वाले ग़ायब हो चुके और वो चौतरफ़ा फैली भाँय भाँय में बिल्कुल अकेला बचा है !

दोनों की स्थितियों में मितभाषी और अकेला हो जाता है आदमी ! कुछ दिन तो सूझता ही नहीं उसे कि करे तो क्या करे ! दिन अचानक बड़े हो जाते हैं और रात करवटें बदलते बीतती है ! बीबी अचानक दूसरे महत्वपूर्ण कामों में व्यस्त हो जाती है और बच्चो के पास हमेशा से अपने काम होते है ! नाती पोतों को वो दूसरी दुनिया का जीव लगता है और पड़ौसी उसकी इस दुर्दशा से प्रसन्न होते हैं !

लगाकर अनदेखा और अनसुना किया जाता अकेला पड़ चुका यह आदमी स्वाभाविक रूप से असहज हो जाता है।समझ नहीं पाता कि कैसी प्रतिक्रिया दे ! कुछ नियति मान लेते है इसे पर अधिकांश इस गिरावट से चिड़चिड़े हो जाते है और दूसरों के लिये परेशानी का सबब बनते है ! उसके आसपास के लोग समझ ही नहीं पाते उसकी मनोदशा ! एक खुशमिजाज आदमी को चिड़चिड़ा होते देख हैरान होते हैं और उससे दूरी बना लेते हैं !

समझदार अफ़सर रिटायर्ड होने के पहले अपनी व्यस्तता का इंतज़ाम करना नहीं भूलता ! बहुत से खुरपी थाम लेते हैं हाथ में ,फूल पत्तियों में मन लगाते हैं ।कुछ पढ़ते लिखते हैं ,अपने जैसे ही रिटायर अफ़सर ढूँढ लेते हैं और दारू पीते हुए प्रशासन में अचानक आ गई गिरावट को लेकर चिंता ज़ाहिर करने में शाम बिताते है ! इसी तरह का व्यवहार आदमी फूफा होने के बाद करता है ,वो या तो चिड़चिड़ा होकर पाँव पटकता है ,हँसी उड़वाता है अपनी या साले की लड़की की शादी में आये लिफ़ाफ़े सहेजने जैसे काम को महत्वपूर्ण मान लेता है ,और कैटरर को बेवजह डाँट कर संतुष्ट हो जाता है !

पूरी ज़िंदगी अफ़सरी करके रिटायर हो जाना और बुढ़ा कर जीजा से फूफा हो जाना यही जीवन चक्र है ! इस अवस्था को बिना चीखें चिल्लाये स्वीकार कर लेने को ही शास्त्रों में समदर्शी स्थिति कहा गया है ! जो आदमी संतोष रूपी गाय की पूँछ पकड़ ले वही इस वैतरणी को पार कर पाता है और उसे यदा कदा चरण स्पर्श जैसे स्वर्गिक सुख मिलते रहते है !
मुकेश नेमा