साहित्य

राष्ट्रीय चाटुकार बन गये….व्यंग्य-जयचंद प्रजापति

जयचंद प्रजापति

· Allahabad ·
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व्यंग्य: राष्ट्रीय चाटुकार बन गये
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कुछ साल पहले हमें चाटुकार होने की अनुभूति हुई। मिठास मिलने लगा। आनन्द की अनुभूति हुई। कुछ लोग कहे कि चाटुकार की फीलिंग से मतलब चटोरा….जी हुजूरी..हां हुजूरी..तलवे चाटना.. दुम हिलाना..आदि गुणों का होना होता है तो हमें लगा इस मामले में हम निपुण हैं। सरकारी चाटुकार बनने की वैकेंसी का फार्म भी भरे हैं।
इस तरह से हम दुम हिलाऊं हो गये। नेताओं,अधिकारियों, उद्योगपतियों के आसपास मंडराते हुये मिल जाते हैं। इनको देखकर दुम हिलाना परम्परा है। हमारे बाप दादा किये हैं। चाटुकार थे। हम भी निर्वहन कर रहे हैं। इस तरह से चाटुकार होने का यह महान गुण आने लगा है।
जब हम बाहर जातें हैं तो चाटुकारिता चालू कर देते हैं। हम जिसको चाटते हैं वो भी अपने को चाटने लगता है कि इस चाटुकार को हमारे अंदर से कहां से खुशबू निकल रही है। हम जिसको चाट लेते हैं वो अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है।
एक बार हम एक नये नेता के तलवे चाटे तो बहुत ही सुंदर फीलिंग हुई। सेंट वगैरह लगाये थे। हमने कहा कि आप किसी दलदल में नहीं हैं लेकिन आपको बड़े नेतओं का साथ मिलते ही चाटुकार होने का अनुभव होने लगेगा।
सचमुच अगले दिन बड़े नेता जी के पैर को चाट रहा था। हमारे कटेगरी का हो गया था। संगत बहुत बड़ा कारक होता है। हमारे संगत का असर है। चाटुकार मिलनसार होता है। शंका रहित है। सफेदपोश का ही प्रतिबिम्ब होता है।
तब उस नये नेता को वीर रस का अनुभूति हुई..बड़े नेताजी उस नेता को राष्ट्रीय नेता होने का आशीर्वाद दिये। अब वह दोनो पैरों को चाट रहा है तो कुछ लोग बड़का चाटुकार कह रहे हैं। वास्तव में राष्ट्रीय टाइप का चाटुकारिता करने लगा है। हम अउर ऊ राष्ट्रीय चाटुकार बन गये हैं।
….जयचन्द प्रजापति ‘जय’ प्रयागराज