Related Articles
मैं अपनें आस पास जितने भी लोगों को देखती हूं उनमें बिलकुल शांत और ख़ुश मुझे कोई भी नहीं दिखाई पड़ता लेकिन…
मनस्वी अपर्णा =========== #थोड़ा_है_थोड़े_की_ज़रूरत_है जावेद अख़्तर साहब का एक बड़ा मशहूर शेर है उसी से अपनी बात शुरू करती हूॅं शेर कुछ यूं है..….. सबका खुशी से फासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है ये शेर और इसका मफहूम हमारी ज़मीनी हक़ीक़त है, मैं अपनें आस पास जितने भी […]
सावन और भादो का महीना….By-राधादेव शर्मा
राधादेव शर्मा ============ पहले सावन शुरू होते ही गांव की गलियों से लेकर शहरों तक झूले पड़ते थे। महिलाएं झूला झूलतीं और गाती थीं। सावन और भादो का महीना हमें प्रकृति के और निकट ले जाता है। झूला झूलने के दौरान गाए जाने वाले गीत मन को सुकून देते हैं। झूले गांव के बगीचों और […]
”कुसुम शर्मा अंतरा” की ग़ज़ल – मैं हक़ीक़त हूं या हूं अफ़साना
Kusum Sharma Antra ============= ग़ज़ल मेरे अंदर है मेरी तन्हाई ग़म का मंज़र है मेरी तन्हाई काटती जा रही है कब से मुझे एक ख़ंजर है मेरी तन्हाई हर तरफ़ से ये वार मुझ पे करे यूं सितमगर है मेरी तन्हाई अश्क़ का इक अदद हूं क़तरा मैं और समंदर है मेरी तन्हाई शोर ओ […]