लड़कों और मर्दों को माहवारी के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है?
नासिरुद्दीन
बीबीसी हिंदी के लिए
पिछले दिनों महाराष्ट्र के उल्हासनगर से एक ख़बर आई. 12 साल की लड़की को पहली बार माहवारी शुरू हुई.
माहवारी के ख़ून के धब्बे उसके कपड़े पर लगे. ख़बरों में बताया गया कि ख़ून के धब्बे को भाई ने देखा.
उसने ये सोचा ही नहीं कि 12 साल की उसकी बहन को माहवारी हो सकती है.
ख़ून के धब्बों को उसने यौन संबंधों से जोड़ लिया. यौन संबंध से बात किसी अन्य पुरुष की आयी होगी. उससे परिवार की इज़्ज़त जोड़ ली गई होगी. फिर यही उस बच्ची पर जुल्म की वजह बन गई.
ज़ुल्म ने लड़की की जान ले ली. ज़ाहिर है जब किसी स्त्री पर हिंसा होती है तो उसकी अनेक वजहें होती हैं.
पुलिस ने भाई के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर गिरफ़्तार कर लिया है. पर इस मामले में माहवारी के बारे में कम जानकारी की चर्चा बार-बार हो रही है.
आज के दौर में लड़कों को माहवारी के बारे में पता न हो ये अचरज की बात लगती है, पर सच ये है कि कई पुरुषों को माहवारी के बारे में पता नहीं है.
भले ही वे पुरुष शादीशुदा ही क्यों न हों. कई पुरुष स्त्री के ख़ून का एक ही मतलब समझते हैं. उनके लिए स्त्री के शरीर से ख़ून निकलने का मतलब यौन संबंध ही होता है.
ज़ाहिर है, जब माहवारी के बारे में पूरी तरह न पता हो तो उससे उपजी दिक़्क़तों के बारे में तो एकदम ही जानकारी नहीं होगी.
क्या लड़कों और पुरुषों को पता है कि माहवारी क़ुदरती जैविक प्रक्रिया है.
यह सामान्य है. यह बीमारी नहीं है. यह ज़्यादातर स्त्री को महीने में एक बार होता है. चक्र के रूप में चलता है. यह चक्र औसतन 28 दिनों का होता है.
वैसे, माहवारी 21 से 35 दिनों में कभी भी आ सकती है. माहवारी में गर्भाशय के अंदर से ख़ून बाहर आता है.
माहवारी शुरू होने का मतलब होता है कि स्त्री का शरीर गर्भधारण के लिए तैयार होने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है.
यह स्त्री के शरीर में हार्मोन से जुड़े बदलाव भी बताता है.
तरह-तरह की भ्रांतियों के बीच स्त्री जीवन
हमारे समाज में इसी क़ुदरती माहवारी को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां भी प्रचलित हैं. इसमें कई ऐसे रीति-रिवाज भी हैं, जो महिलाओं की ज़िंदगी को जोख़िम में डालते हैं.
कई समाजों और धर्मों में माहवारी के दौरान स्त्री को अपवित्र यानी नापाक माना जाता है.
इसलिए उन्हें पूजा-पाठ और नमाज़ से भी दूर रहना पड़ता है. रमज़ान के दिनों में रोज़ा रखने से भी परहेज़ करना पड़ता है.
इस दौरान कई जगहों पर महिलाओं को अलग-थलग रखने का रिवाज़ भी है.
माहवारी पर बात करना मतलब ‘पैड’ पर बात करना नहीं है
महिलाओं की ज़िंदगी की इस अहम बात को लड़के या मर्द रहस्य की तरह जानते हैं.
हालाँकि, टीवी पर आने वाले प्रचार और पिछले दिनों माहवारी पर बढ़ी चर्चा ने जागरूकता ज़रूर बढ़ाई है. यह जागरूकता बाज़ार की देन ज़्यादा है.
यह जागरूकता सैनिटरी पैड के दायरे तक ज़्यादा सिमटी है. यानी माहवारी जैसी कोई चीज़ होती है. इस दौरान साफ़-सफ़ाई का ख़ास ख़्याल रखा जाना चाहिए. कुछ भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. पैड इस्तेमाल करने चाहिए.
लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है. यह तो लड़कियों के प्रजनन और यौन स्वास्थ्य से जुड़ी बात है. यह सालों तक हर महीने उनकी ज़िंदगी को ख़ास दायरे में बाँधने की कोशिश करती है.