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राजस्थान : रणथंभौर टाइगर रिज़र्व में 77 बाघ हैं, इनमें से 25 टाइगर लापता हैं : रिपोर्ट

राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिज़र्व में 77 बाघ हैं. इनमें से 25 टाइगर के लापता होने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच कमेटी बनाई गई है.

राजस्थान में इस जांच के लिए कमेटी बनाने के आदेश ने सभी को चौंका दिया. आख़िर यहाँ से 25 बाघ कब और कैसे लापता हो गए? इसी बीच कमेटी गठित होने के अगले ही दिन विभाग को दस टाइगर मिल भी गए.

राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक पवन कुमार उपाध्याय ने बीबीसी को बताया, “बीते एक साल से कम समय में लापता हुए 14 में से दस बाघ पांच नवंबर को मिल गए हैं. उन्हें कैमरे में ट्रैक किया गया है.”

उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि जल्द ही अन्य चार बाघ भी मिल जाएंगे. अब एक साल से ज़्यादा समय से यहाँ से 11 अन्य बाघों के लापता होने की जांच यह कमेटी करेगी.”

क्यों बनानी पड़ी जांच कमेटी?

राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक पवन कुमार उपाध्याय ने चार नवंबर को जांच कमेटी गठित की है.

पवन कुमार उपाध्याय ने जांच कमेटी गठन के आदेश में लिखा है कि लंबे समय से बाघों के लापता होने की सूचना टाइगर मॉनिटरिंग रिपोर्ट में आ रही है.

इस संबंध में टाइगर रिज़र्व रणथंभौर के क्षेत्र निदेशक को पत्र भी लिखे गए, लेकिन कोई संतोषजनक बदलाव नहीं दिखाई दिया है.

मुख्यालय को प्राप्त हुई दस अक्तूबर 2024 की मॉनिटरिंग रिपोर्ट का हवाला देते हुए उपाध्याय ने कहा कि ग्यारह बाघों के बारे में एक साल से ज्यादा समय के बाद भी कोई सबूत नहीं मिला है.

इनके साथ ही 14 बाघों की उपस्थिति के पुख्ता सबूत एक वर्ष से कम की अवधि में नहीं मिल रहे हैं. इसीलिए लापता बाघों की तलाश के लिए जांच कमेटी बनाई है, जो दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी.

कमेटी कैसे करेगी जांच?

कमेटी में एपीसीसीएफ राजेश गुप्ता को अध्यक्ष, जयपुर के वन संरक्षक डॉ टी मोहनराज और भरतपुर के उप वन संरक्षक मानस सिंह को कमेटी सदस्य बनाया गया है.

उन्होंने बीबीसी को बताया, “हम सभी सदस्य बैठ कर जांच के लिए रणनीति तय करेंगे और हम फील्ड पर जाएंगे. लापता बाघों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए इंटेंसिव ट्रैकिंग करेंगे, जो फील्ड ऑफिसर कर भी रहे हैं. लेकिन हम यह और भी सघनता से करेंगे.”

उन्होंने कहा, “कमेटी सारे रिकॉर्ड देखेगी और फिर देखेंगे इस पर क्या इंप्रूवमेंट करने की ज़रूरत है.”

वह आगे कहते हैं, “टाइगर एक बायोलॉजिकल एंटिटी है इसलिए कई तरह के बायोलॉजिकल फैक्टर्स होते हैं. हम उनको ट्रैक करेंगे और मुझे यकीन है कि अभी दस बाघ मिले हैं, ट्रैकिंग में आगे और भी मिल जाएंगे.”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि अमूमन बारिश के दौरान एविडेंस नहीं मिलते हैं, इसलिए इसकी जाँच फ़ील्ड पर जाकर की जाएगी.

पवन कुमार उपाध्याय के मुताबिक़, जांच कमेटी जानकारी जुटाएगी कि बाघों के लापता होने के बाद रणथंभौर के क्षेत्रीय निदेशक और उप क्षेत्र निदेशक ने बाघों को ढूंढने के लिए क्या प्रयास किए.

कमेटी टाइगर मॉनिटरिंग के सभी रिकॉर्ड की विवेचना करेगी, ताकि यह पता लग पाए कि इसमें किसी अधिकारी या कर्मचारी की लापरवाही तो नहीं है.

जांच कमेटी व्यवस्था की खामियों को दूर करने के सुझाव भी देगी.

टाइगरों की मॉनिटरिंग कैसे करते हैं?

बाघों की मौजूदगी यानी उनको ट्रैक करने के लिए वन विभाग तीन तरह की तकनीक अपनाता है. यदि तीनों तरीकों से लंबे समय तक टाइगर ट्रैक नहीं होता है तो उसे लापता माना जाता है.

पवन कुमार उपाध्याय बीबीसी से कहते हैं, “हम बाघों के पैरों के निशान के ज़रिए, कैमरों में ट्रैक होने पर और साइट पर देखकर उनकी संख्या मॉनिटर करते हैं.”

वह यह भी मानते हैं कि, “अभी मॉनसून सीजन था, इस कारण भी टाइगर इधर-उधर हो जाते हैं, जिससे वह ट्रैक नहीं हो पाते हैं. लापता 25 में से दस टाइगर कैमरों में ट्रैक हो गए हैं. बाक़ी के भी जल्द ट्रैक होने की उम्मीद है.”

डॉ धर्मेंद्र खांडल यह भी कहते हैं, “बारिश के दौरान बाघ कैमरों में ट्रैक नहीं हो पाते हैं, इस मौसम में कैमरे भी ठीक से काम नहीं करते हैं.”

टाइगर कब हो जाते हैं लापता?

रणथंभौर में गै़र सरकारी संगठन ‘टाइगर वॉच’ के साथ बीते बाइस साल से जुड़कर टाइगर रिज़र्व के लिए काम करने वाले डॉ धर्मेंद्र खांडल बीबीसी से कहते हैं, “दस बाघ इनको मिल गए हैं और अब बाक़ी पंद्रह मिसिंग बता रहे हैं.”

वह कहते हैं, “जंगल में टाइगर पंद्रह से सत्रह साल तक जीवित रहता है. लेकिन, इन्होंने जो एक साल से ज्यादा समय से ग्यारह लापता बताए हैं, इनमें अधिकतर बूढे हैं और कई तो बीस से बाइस साल के हैं.”

उन्होंने कहा, “टाइगर इतने साल तक ज़िंदा नहीं रह सकता है. इनकी बॉडी नहीं मिलने के कारण इनको भी इन्होंने लापता बता दिया है.”

डॉ खांडल वन विभाग पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, “इससे पहले भी रणथंभौर में टाइगर लापता हुए हैं. वो असल में लापता थे, लेकिन अब वाले लापता नहीं हैं. वह ट्रैक नहीं हो सके हैं. विभाग के अधिकारियों की आपसी लड़ाई है.”

उन्होंने कहा, “टेरिटोरियल फाइट के कारण भी टाइगरों की मौत हो जाती है और उनकी बॉडी नहीं मिलने के कारण भी इन्हें लापता घोषित कर दिया जाता है.”

वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ सतीश शर्मा कहते हैं, “मान लीजिए एक टाइगर किसी कुंए में गिर गया या वो बीमार हो गया और गुफा में ही मर गया तो बाहर ट्रैक नहीं होगा.”

वह कहते हैं, “साइबेरिया से हमारे यहां पक्षी आते हैं और फिर वापस चले जाते हैं. वो एरियल माइग्रेशन है. ठीक इसी तरह लैंड माइग्रेशन भी होता है कि टाइगर लैंड माइग्रेशन करते हैं, जिसे यह लापता कह रहे हैं, असल में यह बाघों की प्रवृत्ति है.”

उन्होंने कहा, “फूड सिक्योरिटी, सुरक्षा की ज़रूरत और फ़ीमेल टाइगर की तलाश में भी यह माइग्रेशन होता है. हमने जंगल के इलाक़े भी नहीं छोड़े हैं, इसलिए बाघ भी माइग्रेट होते हैं.”

डॉ सतीश शर्मा कहते हैं, “टाइगर की तलाश विभाग करता ही है. लेकिन, जब वह सामने आएगा तभी ट्रैक भी होगा. इसमें समय लगता ही है.”

कहां कितने टाइगर?

साल 2022 के मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 53 टाइगर रिज़र्व हैं, जिनकी निगरानी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी करती है.

भारत के 53 टाइगर रिज़र्व 75 हज़ार वर्ग किलोमीटर भूमि पर बसे हैं. साल 2006 में पहली बार की गई गणना के दौरान भारत के टाइगर रिज़र्व में 1411 टाइगर थे.

साल 2023 की टाइगर गणना के मुताबिक, देश में 3682 बाघ हैं. साल 2018 में बाघों की संख्या 2967 थी, जिनकी संख्या में पांच साल में 24 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी गई है.

गणना के मुताबिक़ भारत में बाघों की सबसे ज़्यादा संख्या मध्यप्रदेश में 526 है, उसके बाद कर्नाटक में 524, उत्तराखंड में 442, महाराष्ट्र में 312 है.

राजस्थान के चार टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या 91 हैं. इनमें सर्वाधिक रणथंभौर में 77 बाघ हैं.

हाल ही में बाघों की हुई मौत

बाघों की मौत भी राजस्थान वन विभाग के लिए चुनौती बनी हुई है. हाल ही में रणथंभौर में तीन नवंबर को एक बाघ मृत मिला था.

यह टाइगर रणथंभौर रिज़र्व से सटे उलियाना गांव में मृत मिला, जिसके पोस्टमार्टम के दौरान पाया गया कि उसके चेहरे समेत बॉडी पर कई जगह निशान हैं, जिससे इंसानी हमले से मौत की आशंका है.

इससे पूर्व भी प्रदेश में अलग अलग-जगह बाघ मृत मिले हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ दस जनवरी 2023 को टी-57 की मौत हुई, 31 जनवरी को टी-114 और उसके शावक की मौत हुई.

9 फरवरी को टी-19 की मौत, दस मई को टी-104 की मौत, सितंबर महीने में टी -79 की मौत, 11 दिसंबर को टी-69 की मौत.

3 फरवरी 2024 को टी-99 की मौत, चार फरवरी को टी-60 और उसके शावक की मौत, सात जुलाई को टी-58 मृत मिला था.

डॉ धर्मेंद्र खांडल भी कहते हैं कि, “ज़हर देना भी बाघों की मौत का एक कारण है. रणथंभौर टाइगर रिज़र्व से सटे गांवों में क़रीब पांच सौ पालतु पशुओं को हर साल बाघ खा जाते हैं. जिन पशुओं का मुआवज़ा भी काफ़ी कम दिया जाता है.”

वह कहते हैं, “कई बार ऐसे मामले देखने को मिले हैं कि ग्रामीणों ने टाइगर को मार कर दफ़ना दिया है और किसी को मालूम ही नहीं होता. वो भी लापता में ही शुमार हो जाते हैं.”

राजस्थान में बूंदी के रामगढ़ टाइगर रिज़र्व में पंद्रह अक्तूबर को आरवीटी-2 की मौत हो गई थी. कई दिनों बाद इस बाघ का शव मिला था, जिसकी मौत के कारणों की जांच की जा रही है.

राजस्थान वन विभाग के मुख्यालय ‘अरण्य भवन’ के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “टाइगर का मिस होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.”

वो कहते हैं, “कई बार अपनी गुफा में रहने वाले बाघ अपने इलाक़े पर वर्चस्व की लड़ाई यानी टेरिटोरियल फाइट में मारे जाते हैं. कई बार जंगल में दूर निकल जाने के कारण या मृत्यु होने के बाद उनके अवशेष नहीं मिल पाते हैं.”

उन्होंने कहा, “जो ट्रैक नहीं हो पाता है वो सभी लापता कहलाते हैं. लेकिन, इस मामले में अचानक से जांच कमेटी बनाने के पीछे अधिकारियों की आपसी कलह है.”

वो कहते हैं, “यही कारण है कि चार नवंबर को 25 लापता बाघों का ज़िक्र होता है और अगले ही दिन दस बाघ ट्रैक हो जाते हैं.”

उनका आरोप है कि एक मृत मिले टाइगर की मौत मामले में जांच कर रहे वन विभाग के एक अधिकारी पर 25 लापता बाघों की जांच कमेटी के ज़रिए दबाव बनाने का प्रयास है.

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मोहर सिंह मीणा
पदनाम,जयपुर से बीबीसी हिंदी के लिए