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राजनीतिक लाभ के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना किसी के भी हित में नहीं : पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी

भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने देश में संविधान की रक्षा और लोकतंत्र को मज़बूत बनाने पर ज़ोर देते हुए कहा है कि राजनीतिक लाभ के लिए साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना किसी के भी हित में नहीं है।

द हिंदू अख़बार में अपने एक लेख में हामिद अंसारी ने कहा हैः 25 नवंबर 1949 को संविधान की ड्राफ़्ट कमिटी का सेशन पूरा होने पर डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ड्राफ़्ट में मौजूद कमियां का ज़िक्र करते हुए कहा था कि बंधुत्व के भाव के बिना लोगों के बीच समानता और आज़ादी एक दिखावा मात्र हो कर रह जाएगी।

अंसारी ने आगे लिखाः आज़ादी, समानता, न्याय के साथ बंधुत्व का भाव हमारे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था। इस पर बेहद कम बातचीत की गई और ना ही इसे ठीक तरीक़े से परिभाषित किया गया कि देश की मज़बूती को यह किस तरह बेहतर बनाता है, जैसा कि आज़ादी, समानता और न्याय को लेकर किया गया।

आचार्य कृपलानी ही केवल ऐसे शख्स थे, जिन्होंने 1949 में इसके प्रभाव पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।

उन्होंने बताया कि प्रस्तावना में लिखी गई चीज़ें न केवल क़ानूनी और राजनीतिक सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि इसके एक नैतिक और आध्यात्मिक मायने भी है।

अगर हम लोकतंत्र को एक क़ानूनी, संवैधानिक और औपचारिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो मैं मानता हूं कि हम सभी फ़ेल हो जायेंगे। लोकतंत्र निरंकुश बन जाएगा और इसे फिर फासीवाद में बदल दिया जाएगा। हमें इसे नैतिक सिद्धांत के रूप में जीना होगा।

भारत की सबसे बड़ी सच्चाई विविधता है। इस देश में शुरू से ही हिंसा की एक परंपरा रही है, जो अलग-अलग रूप में चलती ही आ रही है। इसलिए यह ज़रूरी है कि संविधान के इन सिद्धांतों को हम सामूहिक और व्यक्तिगत व्यवहार में लाएं। बंधुत्व का भाव एक महत्वपूर्ण और ऐसी चीज़ है, जिसे हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।