धर्म

रमज़ान का महीना-तीन ऐसे समय हैं कि उसमें दुआ ज़रूर क़बूल होती है….!!

दोस्तो रमज़ान का पवित्र महीना है और यह वह महीना है जिसमें हम अपने ईश्वर के मेहमान होते हैं। यह मेहमानी भी दूसरी मेहमानियों की भांति सबसे सुन्दर और सबसे मीठी होती है और इसका समय भी सीमित होता है और हमको इसके महत्व को समझना चाहिए और इस छोटी अवधि से भरपूर लाभ उठाना चाहिए।

हे ईश्वर, आज के दिन मेरे रोज़े को सच्चे रोज़ेदारों की तरह स्वीकार कर, मेरी नमाज़ को सच्चे नमाज़ियों की तरह स्वीकार कर, और मुझे लापरवाही की नींद से जगा दे और मेरे गुनाहों को माफ़ कर दे, हे संसार के पालनहार और गुनाहों को माफ़ करने वाले मुझे माफ़ कर दे।

दोस्तो हम आपको और विश्व के समस्त मुसलमानों को इस मुबारक महीने की बधाई प्रस्तुत करते हैं। इस महीने में हम ईश्वर के क्षमा करने की अनुकंपाओं का लाभ उठाते हैं और अपने वजूद को बुराईयों से पाक करते हैं, ताकि हमारी आत्मा ईश्वर के मार्गदर्शन के प्रकाश से प्रकाशमय हो जाए। शुक्र है उस अल्लाह का कि जिसने रमज़ान को अपने बन्दों की हिदायत के तरीक़ों में से एक और हज़ारों महीनों से बेहतर बनाया है। इस साल बसंत के साथ, अल्लाह की महमानी का महीना आया। धन्य है वह ईश्वर का वह बंदा जो इस अवसर से लाभ उठाता है और इस वसंत को अपनी आत्मा के विकास के मौसम में बदल देता है। इस साल बसंत में बहार है, क़ुदरत की बहार है, क़ुरआन की बहार है और रूहों की बहार है, यह सब हमारे पास एक साथ आए हैं। हमारी दुआ है कि यह नया साल आप सबके लिए बरक़त का साल हो। इस नए रूहानी साल में आपका जीवन दुनिया और आख़िरत दोनों के लिए बरकतों भरा हो।

दोस्तो रमज़ान का महीना है। दावत का महीना है। अल्लाह की असीम रहमत के दस्तरख़ान पर बैठने का महीना है। इमाम सादिक़ फ़रमाते हैं कि तीन ऐसे समय हैं कि उसमें दुआ ज़रूर क़बूल होती है। पहला, हर नमाज़ के बाद का समय, दूसरा, जब बारिश हो रही हो और तीसरा जब अल्लाह अपने बन्दों पर अपनी निशानी ज़ाहिर करता है। निशानी उसे कहते हैं जो हमे हमारे लक्ष्य की ओर ले जाती है। वह सब कुछ जो हमें एक और एकमात्र ईश्वर की महानता और महिमा को दिखाती है और हमें उसका मार्गदर्शन करती है, अल्लाह की निशानियों में से रमज़ान से बहतर और स्पष्ट कौन सी निशानी हो सकती है। रमज़ान का महीना हमारे लिए एक ऐसा अवसर है कि जब हम अल्लाह के मेहमान बनते हैं।

यह मौक़ा रोज़ा रखने का है, यह मौक़ा अल्लाह के कलाम की तिलावत है जिसका असीमित बदला है, यह क़ुरआन की तिलावत है। यह मौक़ा अपने आप में सुधार और इसी तरह की दूसरी चीज़ों का दुगना बदला है जिसका पैग़म्बरे इस्लाम सलामुल्लाह अलैह की हदीस में ज़िक्र है। हमें अल्लाह से उन चीज़ों की दुआ करनी चाहिए, दुआ करनी चाहिए कि वह हमें यह तौफ़ीक़ दे कि हम इन मौक़ों से फ़ायदा उठा सकें। यही वजह है कि कहा गया है कि अल्लाह से जो तुम्हारा पालनहार है, सच्ची नीयत और पाक मन से दुआ करो कि तुम्हें रोज़े और क़ुरआन की तिलावत का मौक़ा दे। अल्लाह से यह दुआ मांगिए। हमे इस मौक़े का बेहतरीन ढंग से फ़ायदा उठाना चाहिए। सहीफ़ए सज्जादिया की दुआ में, चौवालीसवीं दुआ में जो रमज़ान के महीने में दाख़िल होने की दुआ है, हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अल्लाह से इस तरह अर्ज़ करते हैं। वह कहते हैः और इस महीने का रोज़ा रखने में हमारी मदद कर, इस तरह कि जिस्म के अंगों से गुनाह न हो। इस तरह का रोज़ा हो। तो पता चला कि रोज़ा सिर्फ़ ख़ाने से दूरी और इन ज़ाहिरी कामों से दूर रहने का नाम नहीं है।

दोस्तो रमज़ान की अपनी विशेषताएं हैं, इसमें हमारी आत्मा, विवेक और चरित्र अध्यात्म का एक सुन्दर अनुभव करते हैं। रमज़ान का मुबारक महीना, ईश्वर की बंदगी के अभ्यास का बेहतरीन महीना है। रमज़ान के रूप में ईश्वर ने हमें अवसर प्रदान किया है कि हम उसके कार्यक्रम के मुताबिक़ कुछ प्राकृतिक एवं हलाल चीज़ों से भी एक निर्धारित समय के लिए परहेज़ करें और अपने ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जाएं। रमज़ान की शुरुआत के साथ ही जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं और ईमान वालों की रूहों पर अल्लाह की रहमत की बारिश होती है। अब आप ही सोचिए इससे ज़्यादा फ़ायदेमंद कौन सी बारिश हो सकती है। इस महीने में न केवल हर वाजिब नमाज़ के बाद, बल्कि हर सांस जो अंदर जाती है और हर सांस जो बाहर आती है, आप अपने हाथों को ईश्वर की दया की बारिश के तहत प्रार्थना करने के लिए उठा सकते हैं, आपका पूरा शरीर ईश्वर की रहमतों, दया और क्षमा की बारिश में भीग जाएगा। पैग़म्बरे इस्लाम (स) सिफ़ारिश करते हैः हे लोगो, ईश्वरीय महीना, बरकत, रहमत और क्षमा के साथ आन पहुंचा है। ऐसा महीना जो ईश्वर के निकट सर्वश्रेष्ठ महीना है और उसके दिन, समस्त दिनों से सर्वश्रेष्ठ हैं, उसकी रातें, समस्त रातों से सर्वश्रेष्ठ हैं और घंटे, समस्त घंटों से सर्वश्रेष्ठ हैं।

इसी तरह हज़रत अली फ़रमाते हैं कि दुआ ईश्वरीय दया की कुंजी है और अंधकार के लिए प्रकाश है। हमे यह कोशिश करना चाहिए कि ईश्वर की दया की वर्षा से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाएं और हमारे अस्तित्व में मौजूद अंधकार को इस अवसर में रुकावट बनने न दें। आइए इस अवसर का लाभ उठाएं और रमज़ान के पवित्र महीने की शुरुआत से ही प्रार्थना करना शुरू करें और अपनी प्रार्थनाओं के प्रकाश से अपने अस्तित्व से अंधकार को दूर करें। क्योंकि जब तक यह अंधकार की ज्वाला हमारे अस्तित्व में जल रही हैं, तब तक हम पर ईश्वर की दया की वर्षा नहीं होगी। यह हमारा कर्तव्य है कि हम प्रार्थना के माध्यम से ख़ुद को ईश्वर की दया और क्षमा के क़रीब लाएं। हम इंसानों में हर चीज़ और हर काम का एक तरीक़ा और औपचारिकता होती है, सर्वशक्तिमान ईश्वर से मांगना भी शिष्टाचार है जो हमें सबसे पहले सीखना चाहिए। दुआ का पहला शिष्टाचार स्वच्छ रहना है। दुआ के ज़रिए हम हमारे अंदर की आंतरिक गंदगी को साफ़ करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उससे रहले ज़रूरी है कि हम अपने ज़ाहिर को पाक और साफ़ करें। इसलिए कहा गया है कि दुआ करने से पहले हमे चाहिए कि स्नान करें या फिर वुज़ू करे और फिर उसके बाद अल्लाह के समक्ष हाज़िर हों और उससे दुआ करें। हज़रत अली फ़रमाते हैं कि जब भी कोई बड़ा और मुश्किल काम सामने आए तो वुज़ू करे और फिर दुआ के लिए हाथ उठाएं।

दुआ करने का दूसरा शिष्टाचार यह है कि अन्य सभी कार्यों की तरह प्रार्थना की शुरुआत ईश्वर के नाम से की जाए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि जब भी कोई बंदा बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहता है तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरे नाम से अपना कार्य की शुरुआत की है, इसलिए अब मेरे ऊपर है कि मैं उसके काम को अंजाम तक पहुंचाऊं और उसपर हर स्थिति में बरकत अता करूं। इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत है कि हर वह दुआ जो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम से शुरु होती है उसे अल्लाह नकारता नहीं है। दुआ करने का तीसरा शिष्टाचार यह है कि इसकी शुरुआत अल्लाह की प्रशंसा और स्तुति से करना चाहिए। इमाम जाफ़र सादिक़ फ़रमाते हैं कि जिस दुआ की शुरुआत अल्लाह की तारीफ़ और प्रशंसा के बिना होती है वह कहीं नहीं पहुंचती है।

इसी तरह रमज़ान के पवित्र महीने जिन दुआओं के पढ़ने पर बल दिया गया है उनमें दुआए अबू हमज़ा समाली, दुआए सहर और रमज़ान के दिनों की दुआ है। इन सभी दुआएं बहुत ही सुंदर और मनमोहक विषय पर आधारित हैं। रमज़ान के प्रातःकाल में रात की अतिशय प्रार्थना के गुण पर भी ज़ोर दिया जाता है और आख्यानों में कहा गया है कि यह इस योग्य है कि रमज़ान के पवित्र महीने की रातों में रात की अतिशयोक्ति न रह जाए। इस नमाज़ को रात के आख़िरी तिहाई में पढ़ना बेहतर है और इसमें 2 रकअत शामिल हैं।

कुल मिलाकर रमज़ान के महीने में ईश्वर का ज़िक्र और गुणगान हो रहा है, यह आत्मनिर्माण और बंदगी का महीना है, इस महीने में रोज़ेदार ईश्वर की मेज़बानी और प्रेम का लुत्फ़ उठाते हैं। इस महीने में अल्लाह की बंदगी करने वालों को इस मूल्यवान दावत का फल मिलता है। इसका मूल्यवान फल, स्वयं से संपर्क, ईश्वर से संपर्क और उसके बंदों से संपर्क करना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मुताबिक़, यह महानता, गौरव और सम्मान का महीना है और इसे अन्य महीनों पर प्राथमिकता दी गई है। बेहतर होगा प्रेम और शुद्ध नीयत के साथ इससे लाभान्वित हों और उसके सुन्दर दिनों और आध्यात्मिक सुबहों को ईश्वर से बातचीत एवं प्रेमपूर्वक दुआओं के लिए लाभ उठाएं और कल्याण प्राप्त करें। तो दोस्तो इस पवित्र महीने में हमे भी अपनी दुआओं में याद रखिएगा।