लखनऊ:जस्टिस सच्चर ने अपनी कमैटी की रिपोर्ट में कहा था कि देश का मुसलमान आर्थिक,शैक्षिक,समाजिक,राजनीतिक तौर पर बिल्कुल पिछड़ चुका है,इसको आगे बढ़ाना सरकार की ज़िम्मेदारी है,लेकिन जस्टिस सच्चर भी चल बसे उनकी रिपोर्ट सरकार के ठण्डे बस्ते में चली गई जिस पर कोई अमल नही हुआ और न ही मुसलमानों में किसी भी प्रकार का कोई सुधार हुआ है।
इसकी जीती जागती मिसाल एक आरटीआई में सामने आई है जिसमें खुलासा हुआ है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी में 43 थाने हैं लेकिन अफ़सोसनाक बात ये है कि इसमें से किसी में भी कोई मुस्लिम थानेदार तैनात नही है,जबकि सरकार का खुल्लमखुल्ला दावा सबका साथ सबका विकास है।
लखनऊ राजधानी के थानों में तैनात शत-प्रतिशत हिन्दू थानेदारों में से 11.5 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और इतने ही प्रतिशत अनुसूचितजाति-जनजाति (एससी/एसटी) के है। वहीं राजधानी के 77 प्रतिशत थानों में अगड़ी जाति के लोग काबिज है।
यह तथ्य आरटीआई कंसलटेंट की लखनऊ की एक आरटीआई पर लखनऊ के अपर पुलिस अधीक्षक विधानसभा और जनसूचना अधिकारी द्वारा दिए जबाब से सामने आया है।
आरटीआई के जवाब में जनसूचना अधिकारी ने बताया कि लखनऊ के 43 थानों में से 18 में ब्राह्मण, 12 में क्षत्रिय, 2 में कायस्थ, 1 में वैश्य, 2 में कुर्मी, 1 में मोराई, 1 में काछी, 1 में ओबीसी, 1 में धोबी, 1 में जाटव, 1 में खटिक और 2 में अनुसूचित जाति के थानेदार तैनात हैं।
संजय कहते हैं कि प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत आबादी मुसलामानों की हैं पर लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार नहीं तैनात किया गया है। वहीं 38 प्रतिशत आबादी वाले ओबीसी का लखनऊ के थानों में प्रतिनिधित्व मात्र 11.5 प्रतिशत है।
इसी प्रकार कुल आबादी का 21 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति का होने पर भी इस राजधानी के थानेदारों की नुमाइंदगी मात्र 11.5 प्रतिशत पर ही सिमट कर रह गई है। वहीं कुल आबादी के 22 प्रतिशत पर सिमटे अगड़े राजधानी के 77 प्रतिशत थानों पर काबिज हैं।
संजय ने कहा कि सरकारों से उम्मीद तो यह की जाती है कि वे जाति-वर्ग-धर्म से ऊपर उठकर काम करेंगी पर सूबे के पुलिस थानों में बसपा की सरकारों में अनुसूचित जाति का दबदबा कायम रहता है तो सपा में यादवों का और बीजेपी में ब्राह्मण-ठाकुरों का। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सी कायम हो गई है जो लोकतंत्र के लिए घातक है।
संजय ने बताया कि वे अपनी संस्था ‘तहरीर’ की ओर से सीएम योगी को पत्र लिखकर मांग करेंगे कि सरकारी पदों पर बिना किसी भेद-भाव के समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।