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ये सेंधा नमक है!

अरूणिमा सिंह
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ये सेंधा नमक है!
ये नमक हम सब के यहां यानी अवध क्षेत्र में सिर्फ व्रत में खाया जाता था । दैनिक प्रयोग में साधारण नमक खाते थे लेकिन आज की तरह पीसा नमक का पैकेट घर में नही आता था बल्कि बड़े दाने वाला नमक आता था जिसे हम सब टोर्रा नमक कहते थे।
एक दो रुपए किलो के हिसाब से बिकने वाला ये नमक घर की जरूरत के मुताबिक खरीदा जाता था।
मेरे घर में मेरे बाबा जी बारिश शुरु होने से पहले नमक की पूरी बोरी खरीद लेते थे क्योंकि मेरा लगभग तीस सदस्यों का संयुक्त परिवार था इसलिए मेरे घर में नमक की खपत भी ज्यादा थी।
तालाब से चिकनी मिट्टी लाकर बनाई गई धुंनकी (मिट्टी की टंकी)में आजी बोरी भर नमक खोल कर डाल देती थी ताकि बारिश में अधिक नमी से कम गले।
जरूरत के मुताबिक फिर मां या चाची धोकर धूप में सुखाकर दैनिक उपयोग वाले डब्बे में भर देती थी।
दाल या सब्जी में इस नमक को डालने के लिए बहुत ज्यादा हिसाब की जरूरत पड़ती थी क्योंकि इसमें एक चम्मच दो चम्मच का हिसाब नहीं चलता था बल्कि दाने के हिसाब से नमक को हथेली पर रखकर हाथ से ही तौलकर अंदाजा लगा लिया जाता था कि उपरोक्त दाल या सब्जी में कितने टोर्रा नमक पड़ेगा।
ये नमक भोजन बनाते समय मैंने भी प्रयोग किया है शुरुआत में तो मां से पूछना पड़ता था बाद में मुझे खुद एकदम सही मात्रा मे नमक डालने का अंदाजा हो गया था।
पुरोहित को दान या किसी अन्य को भिक्षा देते समय हमारे यहां सिर्फ आटा या चावल देने का विधान नही था बल्कि एक मौनी (माध्यम आकार का कटोरा) आटा संग एक मुट्ठी दाल और दो तीन टोर्रा नमक भी दिया जाता था। मां कहती थीं कि बिन नमक के अधूरा दान नही देना चाहिए।
अब तो घर में टाटा नमक के पैकेट ने धाक जमा ली है।
जो लोग जागरूक हो गए हैं उनके घर में सफेद नमक की जगह पर दैनिक उपयोग में भी सेंधा नमक का उपयोग होता है।
तस्वीर फेसबुक साभार

अरूणिमा सिंह