साहित्य

ये दिल न जाने क्या चाहता है….परवेज़

ये दिल न जाने क्या चाहता है
गरीब को खुश देखना चाहता है
भूले को राह दिखाना चाहता है
भूखे को भर पेट खिलाना चाहता है
नंगे का तन ढांकना चाहता है
ये दिल…

दुख देख कर दुनियां के रोना चाहता है
खुशी पाकर हंस जाना चाहता है
जुल्म से लड़ जाना चाहता है
कभी मज़लूम की आवाज़ बन जाना चाहता है
ये दिल…

कभी बुराई से टकरा जाना चाहता है
कभी प्यार में मिट जाना चाहता है
कभी पंछी बन उड़ जाना चाहता है
कभी बादल बन आकाश छू लेना चाहता है
ये दिल…


कभी तख्त, कभी ताज चाहता है
कभी अक़बर, कभी सिकन्दर बन जाना चाहता है
कभी मौहब्बत, कभी प्यार चाहता है
कभी तनहाईयों में गुम हो जाना चाहता है
ये दिल…

कभी वादियों में खो जाना चाहता है
कभी गुल बन महक़ जाना चाहता है
कभी लहर बन बह जाना चाहता है
कभी अब्र बन बरस जाना चाहता है
ये दिल…

कभी दौड़ कर तितलियां पकडना चाहता है
कभी पतंग बन लहराना चाहता है
कभी सबसे बेज़ार हो जाना चाहता है
कभी दिल बन धड़क जाना चाहता है
ये दिल…

कभी झूठ का सहारा ले लेना चाहता है
कभी सच बता देना चाहता है
कभी सब छिपा लेना चाहता है
कभी दूर जाके बस जाना चाहता है
ये दिल…

कभी शमा बन रोशनी दे जाना चाहता है
कभी पतंगा बन फ़ना हो जाना चाहता है
कभी दुनियां में कुछ कर जाना चाहता है
कभी हमेशा के लिये अमर हो जाना चाहता है
दिल कभी ये चाहता है, कभी वो चाहता है…
दिल है न जाने क्या-क्या चाहता है…परवेज़