विशेष

ये थी हक़ की आवाज़, नवाब शेर मोहम्मद ख़ान ने सिखों के हक़ के लिए मुग़लों से की थी बग़ावत!!

Ayaz Sherwani
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बहादुरों को इतिहास और बहादुरी की क़द्र करने वाले बरसा बरस याद रखते हैं !

खानदान के एक और इतिहास पुरुष की दास्तान !

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो साहबज़ादों श्री जोरावर सिंह और श्री फतेह सिंह को धर्म और इंसानियत के उसूलों के ख़िलाफ़ – पंजाब के उस समय के सूबेदार वज़ीर ख़ान ने – गुरु गोबिंद सिंह जी के नौकर रहे – गंगू की – ग़द्दारी के सबब, गिरफ्तार कर – दीवार में चुनवा कर – मौत की सज़ा दी !
यहाँ भी शरवानियों के बुज़ुर्ग – उस समय मलेर कोटला के जागीरदार – नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी ने – रहती इंसानियत तक के लिए – दिलेरी के साथ, ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ –

हा दा नारा ( हक़ का नारा ) – लगा कर बुलंद की !

ये बगावत की आवाज़, तन्हा, उस वक़्त बुलंद की – जब 7 बरस के साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह और 5 बरस के साहिबज़ादा फ़तेह सिंह को दीवार में चुन कर – मौत की सज़ा का ज़ालिमाना और हैवानियत का हुकुम सुनाया – तब मलेर कोटला ( पंजाब ) के जागीरदार नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी ने – भरे दरबार में तख्त, हुकूमत और ताज की ताक़त की फ़िक्र ना करते हुए – ज़ालिमाना फ़ैसले के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की, के लड़ाई बड़ों से है – मासूम बच्चों से नहीं और ना मासूमों को इस तरह की ज़ालिमाना सज़ा दी जा सकती है और वहीं – हा दा नारा – बुलंद किया ! आपने चिट्ठी / खत लिख कर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब से भी सज़ा का विरोध किया !

दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी साहब को ख़त लिख कर, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होने पर शुक्रिया अदा किया था !

1783 में सिख साम्राज्य / हुकूमत दिल्ली से दर्रा खइबर, कैंथल तक हुआ ,मगर , रियासत मलेर कोटला को आज़ाद रखा गया !

हुकूमत की ताक़त के ख़िलाफ़, कभी कभी, इतिहास में चंद लोग खड़े हो पाते हैं और अक्सर उस समय उनकी आवाज़ नहीं सुनी जाती – मगर इतिहास वही आवाज़ें लिखा करता है !

और सिख संगत ने भी बहादुरी को याद रखने का इतिहास लिखा – जब 1947 के इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले फ़साद में पंजाब जल उठा – तब सिख संगत और हिन्दु समुदाय ने मलेर कोटला का, पूरी नाकेबंदी कर , हिसार किया ( चारों तरफ से , हिफाज़त के लिए , घेर लिया ) और एक भी क़त्ल ओ गा़रतगीरी की वारदात मलेर कोटला के हुदूद में नहीं हुई – और ना ही एक भी शख्स पलायन करके सरहद पार गया !

ये थी – हक़ की आवाज़ और उसके क़द्रदान ! !

आज भी सिख संगत नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी साहब को बोहत इज़्ज़त से याद रखती है !

हक़ दा नारा – को याद रखने के लिए – मलेर कोटला में – गुरुद्वारा हा दा नारा साहिब बनाया गया – जो वहां मौजूद है !

हा दा नारा – के क़िस्से को सिख साहेबान वीर रस के वारों में गाते हैँ , वीर रस की पंजाबी कविताओं और लोक गीतों में – नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी साहब – को बड़ा मुक़ाम हासिल है !

शहर मलेर कोटला – पंजाब , में ही , नवाब शेर मौहम्मद ख़ान शरवानी साहब के और ख़ानदान के सूफ़ी बुज़ुर्ग शेख़ सदरुद्दीन हैदर शरवानी साहब का मज़ार – सब धर्मों का संगम है और सब धर्म मिल कर सूफ़ी शेख़ हैदर शरवानी का मेला लगाते हैँ !