साहित्य

ये तेरा मेरा रिश्ता….इक दर्द जो घाव बनकर रहा रिसता….स्वरचित-”अभिलाषा कक्कड़”

Abhilasha Kakar 

Studied at S.D. College Ambala Cantt.

Lives in Lansing, Michigan

From Naraingarh

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तेरा मेरा रिश्ता
ये तेरा मेरा रिश्ता बढ़कर भी ना आगे बढ़ा।
इक दर्द जो घाव बनकर रहा रिसता
हर चीज़ रही अपनी जगह
बस मैं ही नहीं चल पाई अपनी तरह
इक घुटन सी देकर गया हर जाता लम्हा
वो मेरी ज़िद थी या नादानी
अब तो याद भी नहीं वजह
प्रेम का नहीं होता कोई नियम क़ायदा
ना जाने क्यूँ बंध ही नहीं पाया तुमसे वो धागा
मूड मूड कर तमन्ना देखती रही पीछे
ना था कोई इन्तज़ार ना कोई बेक़रार
माँ के आंगन में भी धूप थी कम शाम थी ज़्यादा
ये तेरा मेरा रिश्ता इक दर्द जो घाव बनकर रहा रिसता
हर रस्म दुनियादारी निभाई साथ
फिर भी नहीं बड़ा दोस्ती का हाथ
पकड़ कर बैठे रहे अपनी अपनी जमी
ज़िन्दगी हाथ से यूँही बेज़ार सी निकलती गई
बेरुख़ी का मेरी तुमने भी दिया अच्छा नज़राना
पास आने का नहीं ढूँढा कोई बहाना
कभी ना कर पाये खुलकर दिल की बात
हंसी के ठहाकों में ना बिताईं कोई शाम
कितनी अनकही बातों की मन में रही कसक
देखने वालों ने कहा हमसे नहीं अच्छे कोई हमसफ़र
काश ये सच होता जो रहा सदा दिखता
ये तेरा मेरा रिश्ता इक दर्द जो घाव बनकर रहा रिसता ॥
थी मेरे ही विचारों की लड़ाई
कभी तुम्हें तो कभी क़िस्मत को दोष देती आई
ऐ ज़िंदगी तूने तो हर गलती में भी निभाया साथ
काश ये मन के तार पहले जाते झनझना
तो तन्हाई के पलों में जवानी नहीं दी होती यूँ गुज़ार
जी चाहता है बैठ तुम्हारे आगे बहा दूँ
रो कर उदासियों का ये सैलाब
जी लूँ इस पल में आज
मिलूँ तुमसे जैसे ना हुआ हो कभी यूँ मिलना
ना जाने फिर कब हो ख़ुद से यूँ मिलना
ये तेरा मेरा रिश्ता इक दर्द जो घाव बनकर रहा रिसता

स्वरचित
अभिलाषा कक्कड़