साहित्य

यूं ही खुले अंबर के नीचे कभी……पूजा भूषण झा कवयित्री की रचना पढ़िये!

पूजा भूषण झा, वैशाली, बिहार

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हां तुम और मैं….✍️✍️(नई रचना)
यूं ही खुले अंबर के नीचे कभी
दूर तक खुली मैदान के बीच
बैठकर हम दोनों घंटों तक
साथ हो कभी चांदनी रात में
और बात करते रहें निरंतर
तुम और मैं, हां तुम और मैं।
कुछ दुख अपना बांटे तुमसे
कुछ सुख की बातें हो जाए
कुछ खट्टी मीठी यादों में
हम बैठे वहीं पर खो जाए
जैसे क्षितिज पर बैठे हो
तुम और मैं,हां तुम और मैं।
थोड़े -थोड़े मुस्कायें हम
थोड़े से अश्रु यह बह जाए
फिर भर अंकोर में दूजे को
एक दूजे में कहीं खो जाए
केवल वह क्षण हमारा हो
तुम और मैं, हां तुम और मैं।
बिन बोले प्रेम की बातों को
जीवन के काली रातों को
तुम मौन हृदय को समझ लेना
अपनी आंखों की भाषा से
कुछ कह देना,कुछ सुन लेना
तुम और मैं, हां तुम और मैं।
हां वह खूबसूरत पल हमेशा
समाहित हो जाते हमारे ह्रदय में
जीवन के जिए हर रंग को
समेट लेते हम उस क्षण में
शायद!जिसे फिर कह न पाते
तुम और मैं, हां तुम और मैं।
पूजा भूषण झा, वैशाली, बिहार।