साहित्य

यूँ भी तो कुछ लोग गुज़ारा करते हैं…..समीक्षा सिंह की रचनायें पढ़िये!

Samiksha Singh
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अगर हम मुहब्बत का अंजाम लिखते
तो’ हर हर्फ़ में दर्द का नाम लिखते
वफ़ा की ज़रूरत कहाँ अब किसी को
यही सिर्फ दुनियाँ में बदनाम लिखते
ख़ता – ए – खुदाई भला छोड़ दें क्यों
रहा सब खुदा का ही इलज़ाम लिखते
कभी भी, किसी से, न करना मुहब्बत
यही आख़िरी सिर्फ पैगाम लिखते
सुना है रहे आप भी सब में शामिल
मगर ‘सिंह’ कहाँ आपका नाम लिखते
________© समीक्षा सिंह | कासगंज

Samiksha Singh
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एक ग़ज़ल आप सबके लिए ………
यूँ भी तो कुछ लोग गुज़ारा करते हैं
जिन्दा है पर जी को मारा करते हैं
धन दौलत से अपनें हैं बेगाने भी
लाचारी में लोग किनारा करते हैं
आज नहीं तो कल होगी मंजिल अपनी
दिलवाले कब हिम्मत हारा करते हैं
लोगों की तो फ़ितरत ही कुछ ऐसी है
रोज तुम्हारा और हमारा करते हैं
अपने दामन के दागों को देखें तो
वो जो मेरी ओर इशारा करते हैं
सिंह मत आना दुनियां की इन बातों में
मतलब में सब लोग पुकारा करते हैं
________©® समीक्षा सिंह | भारत

Samiksha Singh
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दिनकर जी को समर्पित …………………..
सत्य को हो दोष रोपण मिथ्य की हो वंदना
अब तिमिर भी चाहता है सूर्य की आलोचना
जो अडिग है राष्ट्रपथ पर त्याग कर परिवार प्यारा
जो लिए संकल्प केवल हो तिरंगा विश्व तारा
वो कि जिसने कर दिया है देश पर जीवन समर्पित
वो कि जिसने कर दिया है योगमय संसार सारा
पापियों का लक्ष्य है बस हो उसी की भर्त्सना
अब तिमिर भी चाहता है सूर्य की आलोचना ……………
जो पढ़ाते पाठ सबको है चरित का मान होता
उन घरों में वेश्याओं की कला का गान होता
जो दिखाते झूठ को सच, भीड़ है उनके यहाँ पर
सब सियारों के लिए बस लूटना ही ज्ञान होता
नीच लोगो को सदा ही नीचता की कामना
अब तिमिर भी चाहता है सूर्य की आलोचना ……………
_______________©® समीक्षा सिंह