साहित्य

यादों का पिटारा : ”माँ को अपने हिस्से का प्यार तो मिला पर उनके ना रहने पे”

Madhu Singh
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आज पीले खतों ने शांति निवास में यादों का पिटारा खोल दिया था घर की बहू सीमा आज अपने पति अमन और ससुरजी शिवकुमार के सामने किसी अपराधी की तरह खड़ी थी।

सीमा कभी अमन से तो कभी अपने ससुरजी से लगातार बोले जा रही थी

“बाबूजी मुझे माफ़ कर दीजिए।मैं तो कमरे की सफाई कर रही थी कि तभी ये मेरे हाथ में आ गया।कसम खा के कहती हूं,मैंने इसे खोल के नहीं पढ़ा।बाबूजी! प्लीज कुछ बोलिये, ऐसे चुपचाप आप दोनो का होना। मुझे डरा रहा है”

“अमन तुम तो कुछ बोलो।ऐसा क्या है,इन पीले खतों में? मैंने तो बाबू जी की मदद करने के लिए ये सब किया। इतना भारी लोहे का बक्शा अपना खुद ही उतारते साफ करते और रखते हैं।अब उनकी उम्र कहाँ रही?इतने भारी सामान उठाने की कितनी बार बोला|कि इसका सामान अलमीरे में रख दूँ पर नहीं|उनको तो इस लोहे के बक्शे से ही प्यार हैं।”

लेकिन शिवकुमार जी को तो इन पीले खतों ने उनकी पत्नी सावित्री से जुड़ी सभी यादों के पिटारे खोल दिया था वो वहाँ से बिना कुछ बोले ही चले गए।

“अमन! बाबुजी को माँजी की यादों से इतना प्यार है तो माँजी से कितना करते रहे होंगे।”

“चुप करो! सीमा तब से कुछ भी बोले जा रही हो। जानना है ना तो पढ़ लो।” अमन ने वो पीले खत सीमा के हाथ में रख दिए।

“सुनो!सीमा….तुम्हे लगता है,ना कि बाबूजी माँ से बहुत प्यार करते थे,तो ऐसा नहीं था।बाबूजी शहर में नौकरी करते थे उनकी वहाँ अलग दुनिया थी,किसी और औरत के साथ।मेरी माँ गाँव में मेरे दादा दादी की सेवा करती और इनके आने का इंतजार हर रोज करती।बाबूजी ने कभी भी माँ से प्यार किया ही नहीं था।वो तो उन्होंने अपने माता पिता के दबाव में आ के माँ से शादी कर ली।

माँ अनाथ थी मामा मामी के यहां पली बढ़ी थी बाबुजी के नाजायज रिश्ते के बारे में जानने के बाद उन्होंने विरोध करने की बजाय अपनी किस्मत मान के अपने प्यार के वापिस आने का इंतजार करना शुरू कर दिया,कि कभी तो बाबूजी को उनपर तरस आएगा।हर रोज उनको एक प्रेम पत्र लिखती पर कभी भेजने की हिम्मत नहीं हुई।लिख के अपने इस लोहे के बक्से में डाल देती। इस उम्मीद में की कोई जवाब ना आये और कही पढ़ के बाबूजी और गुस्सा हो गए तो। लेकिन उनका इंतजार इंतजार ही रह गया।उनकी लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत भी रखती। बाबूजी शराब भी खूब पीते थे। उनका ये नशा था या माँ पे भगवान का रहम की शादी के चार साल नशे की हालत में बने संबंध के बाद मेरा जन्म हुआ।

बाबूजी को जब ये बात पता चली तो वो बहुत खुश हुए क्योंकि उनकी शहर वाली प्रेमिका को बच्चा नहीं हो सकता था।

मेरे जन्म के बाद मुझसे मिलने के बहाने अब उनका गाँव आना जाना शुरू हुआ,पर माँ के लिए कुछ नहीं बदला था मां!सिर्फ बाबूजी को देख के ही खुश हो लेती। दबी आवाज़ में ये भी कह देती|

” सुनिये जी,हो सके तो शराब पीना छोड़ दीजिए।”

जवाब भी मिल जाता,”तुम अपने काम से काम रखा करो।”

अचानक एकदिन शहर से फोन आया कि बाबू जी की तबियत बहुत खराब हैं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सभी का रो रो के बुरा हाल था तब मैं 12 साल का था,माँ मुझे अपने साथ लेकर पहली बार शहर आयी और अस्पताल पहुचते ही डॉक्टर ने बताया कि उनकी दोनो किडनी खराब हो गयी हैं।अगर डोनर नहीं मिला तो बचना मुश्किल है।मुझे अच्छे से याद है। करवा चौथ का व्रत था माँ का उसदिन।

पहली बार अपनी सौतन से मिली लेकिन बड़ी ही शालीनता से मैं आज भी सोचता हूँ किस मिट्टी की बनी थी माँ|कभी अपने बेवफा पति से कोई शिकायत नहीं। हमें अस्पताल के बिल और कमरा दिखा के पता नहीं कहाँ चली गयी?उसके बाद वो कभी नहीं आयी।

बाबुजी की हालत देखकर माँ ने अपनी किडनी देने का फैसला किया।

डॉक्टर ने कहा,”इसके लिए हमें कुछ टेस्ट करने होंगे।” टेस्ट हुए और माँ ने बाबूजी को अपनी एक किडनी दी।

बाबूजी का ऑपरेशन सफल रहा।अस्पताल से छुट्टी मिलते हमलोग बाबूजी को गाँव ले के आ गए। इसबार बाबूजी ने कोई विरोध नहीं किया।इसके बाद ना उनकी प्रेमिका आयी ना बाबूजी ने कभी उनके बारे में बात की अब माँ बाबूजी का पूरा ख्याल रखती। इधर बाबूजी का मन भी माँ के लिए बदलने लगा था।जो भी मिलने आता बाबूजी से मां की तारीफ करते ना थकता। और बाबुजी सहमति में बस मुस्कुरा देते।पर इनसब में माँ ये भूल गयी कि आराम और सेवा की जरूरत उनको भी हैं।

ज्यादा काम होने के कारण वो अपना ध्यान और परहेज ना रख पाती,जिसकी वजह से उनकी हालत और खराब हो गयी और माँ हमसब को छोड़ के इस दुनिया से चली गयी |लेकिन जाते जाते मुझसे ये वादा भी ले लिया,कि मैं हमेशा बाबूजी का ख्याल रखु और माँ के साथ हुए व्यवहार के लिए उन्हें दोषी ना समझूँ ।आखिरी समय में माँ ने बाबूजी को अपने लोहे के बक्से की चाभी दी|ये कहते हुए की उसमें उनके लिए कुछ है।पता है सीमा वो कौन सा दिन था? करवाचौथ का और उनका जन्मदिन भी।

माँ के जाने के बाद बाबूजी ने जब माँ का दिया हुआ लोहे का बक्शा खोला और चिट्ठी पड़ी तो उनके आंसू नहीं रुक रहे थे। उन्हें पढ़ने से पहले लगा चिट्ठियों में कोई तो शिकायत होगी,पर नहीं उसमें तो एक तरफा मोहब्बत का प्यार भरा संदेश था। मेरी माँ ने कभी शिकायत नहीं की| किस्मत वाली मां नहीं सीमा किस्मत वाले बाबूजी थे। जो उनके बेवफाई के बाद भी प्यार करने वाली पत्नी मिली।उस दिन से हर साल बाबूजी माँ के लिए करवाचौथ का व्रत करते हैं। माँ को अपने हिस्से का प्यार तो मिला पर उनके ना रहने पे।

आज सीमा निरुत्तर थी उसके आंखों से लगातार अश्रुधार बह रहे थे।बात बात पर अमन को बेवफासनम कहकर ताने देने और बाबूजी जैसा बनने की सलाह देने वाली सीमा को आज सही मायने में बेवफा सनम और सच्चे प्यार दोनो का अर्थ समझ आ चुका था। हाथों में पत्र लिए वो अमन के सीने से लग के बस फूटफूटकर रोये जा रही थी।